Results For "Premchand "

जब मुंशी प्रेमचंद ने परिभाषित किया ब्राह्मण को और बताए छुआछूत के दुष्प्रभाव

किताबें

जब मुंशी प्रेमचंद ने परिभाषित किया ब्राह्मण को और बताए छुआछूत के दुष्प्रभाव

गाय, गोमांस और समाज के अलावा राष्ट्रवाद पर क्या कहते थे प्रेमचंद!

विचार

गाय, गोमांस और समाज के अलावा राष्ट्रवाद पर क्या कहते थे प्रेमचंद!

प्रेमचंद: आज भी चरितार्थ होता दिखता है उनका हिंदू-मुस्लिम एकता पर लेख

शख्सियत

प्रेमचंद: आज भी चरितार्थ होता दिखता है उनका हिंदू-मुस्लिम एकता पर लेख

प्रेमचंद जयंती: यूं ही तो नहीं हैं वे आज भी प्रासंगिक!

शख्सियत

प्रेमचंद जयंती: यूं ही तो नहीं हैं वे आज भी प्रासंगिक!

पुण्यतिथि विशेष: ‘गोदान’ का अंश, जेठ के दिन हैं, खलिहानों में अनाज मौजूद है, मगर किसी के चेहरे पर खुशी नहीं

शख्सियत

पुण्यतिथि विशेष: ‘गोदान’ का अंश, जेठ के दिन हैं, खलिहानों में अनाज मौजूद है, मगर किसी के चेहरे पर खुशी नहीं

जन्मशती विशेषः रेणु का लेखन अन्याय के खिलाफ खड़ा होने का संदेश है, जिसकी आज सबसे ज्यादा जरूरत है

कहवा खाना

जन्मशती विशेषः रेणु का लेखन अन्याय के खिलाफ खड़ा होने का संदेश है, जिसकी आज सबसे ज्यादा जरूरत है

जन्मशती विशेषः मेले का इतिहास जानने के लिए रेणु के साहित्य में ही लौटना होगा

कहवा खाना

जन्मशती विशेषः मेले का इतिहास जानने के लिए रेणु के साहित्य में ही लौटना होगा

जयंती विशेष: प्रेमचंद की डायरी से ‘गोदान’ के होरी के कर्ज़ का हिसाब-किताब और देखें कुछ अन्य ऐतिहासिक दस्तावेज

शख्सियत

जयंती विशेष: प्रेमचंद की डायरी से ‘गोदान’ के होरी के कर्ज़ का हिसाब-किताब और देखें कुछ अन्य ऐतिहासिक दस्तावेज

वक्त-बेवक्त: जनतांत्रिक आकांक्षाओं के छीजने का आक्रामक दौर है यह

विचार

वक्त-बेवक्त: जनतांत्रिक आकांक्षाओं के छीजने का आक्रामक दौर है यह

प्रेमचंद के ‘गोदान’ का अंश: जेठ के दिन हैं, अभी तक खलिहानों में अनाज मौजूद है, मगर किसी के चेहरे पर खुशी नहीं

शख्सियत

प्रेमचंद के ‘गोदान’ का अंश: जेठ के दिन हैं, अभी तक खलिहानों में अनाज मौजूद है, मगर किसी के चेहरे पर खुशी नहीं