प्रेमचंद: आज भी चरितार्थ होता दिखता है उनका हिंदू-मुस्लिम एकता पर लेख
प्रेमचंद ने ‘हिन्दू-मुस्लिम एकता’ पर 1931 में जो लिखा, वह आज भी उसी तरह चरितार्थ होता दिख रहा है। आसान नहीं है यह समझना कि उन्होंने 92 साल पहले कैसे देख लिया था कि “हम गलत इतिहास पढ़-पढ़कर एक दूसरे के प्रति गलतफहमियां दिल में भरे हुए हैं।”
प्राचीन को दूषित करके, उसमें द्वेष और भेद और कीना भरकर, भविष्य को भुलाया जा सकता है। वही भारत में हो रहा है। यह बात हमारे अंदर ठूस दी गई है कि हिन्दू और मुसलमान हमेशा से दो विरोधी दलों में विभाजित हो रहे हैं, हालांकि ऐसा कहना सत्य का गला घोंटना है। यह बिलकुल गलत है कि इस्लाम तलवार के बल से फैला। तलवार के बल से कोई धर्म नहीं फैलता और कुछ दिनों के लिए फैल भी जाय, तो चिरजीवी नहीं हो सकता।
भारत में इस्लाम के फैलने का कारण, ऊंची जातिवाले हिन्दुओं का नीची जातियों पर अत्याचार था। बौद्धों ने ऊंच-नीच का भेद मिटाकर नीचों के उद्धार का प्रयास किया और इसमें उन्हें अच्छी सफलता मिली लेकिन जब हिन्दू धर्म ने फिर जोर पकड़ा, तो नीची जातियों पर फिर वही पुराना अत्याचार शुरू हुआ बल्कि और जोरों के साथ। ऊंचों ने नीचों से उनके विद्रोह का बदला लेने की ठानी। नीचों ने बौद्ध काल में अपना आत्मसम्मान पा लिया था। वह उच्चवर्गीय हिन्दुओं से बराबरी का दावा करने लगे थे। उस बराबरी का मजा चखने के बाद अब उन्हें अपने को नीच समझना दुस्सह हो गया।
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यह खींचतान हो ही रही थी कि इस्लाम ने नए सिद्धांतों के साथ पदार्पण किया। वहां ऊंच-नीच का भेद न था। छोटे-बड़े, ऊंच-नीच की कैद न थी। इस्लाम की दीक्षा लेते ही मनुष्य की सारी अशुद्धियां, सारी अयोग्यताएं, मानो धुल जाती थीं। वह मस्जिद में इमाम के पीछे खड़ा होकर नमाज पढ़ सकता था, बड़े से बड़े सैयदजादे के साथ एक दस्तरखान पर बैठकर भोजन कर सकता था। हिन्दू अछूत से हाथ नहीं मिला सकता, पर मुसलमानों के साथ मिलने-जुलने में उसे कोई बाधा नहीं होती। वहां कोई नहीं पूछता कि अमुक पुरुष कैसा, किस जाति का मुसलमान है। वहां तो सभी मुसलमान हैं। इसलिए नीचों ने इस नए धर्म का बड़े हर्ष से स्वागत किया और गांव के गांव मुसलमान हो गए।
जहां वर्गीय हिन्दुओं का अत्याचार जितना ही ज्यादा था, वहां यह विरोधाग्नि भी उतनी ही प्रचंड थी और वहीं इस्लाम की तबलीग भी खूब हुई। कश्मीर, असम, पूर्वी बंगाल आदि इसके उदाहरण हैं। आज भी नीची जातियों में ग़ाज़ी मियां और ताजियों की पूजा बड़ी श्रद्धा के साथ की जाती है। उनकी दृष्टि में इस्लाम विजयी शत्रु नहीं, उद्धारक था।
यह है इस्लाम के फैलने का इतिहास और आज भी वर्गीय हिन्दू अपने पुराने संस्कारों को नहीं बदल सके हैं। आज भी छूत-छात और भेद-भाव को मानते आते हैं। आज भी मंदिरों में, कुओं पर, संस्थाओं में, बड़ी रोक-टोक है। महात्मा गांधी ने अपने जीवन में सबसे बड़ा जो काम किया है, वह इस भेद-भाव पर कुठाराघात है। वर्गीय हिन्दुओं में जो एक सूक्ष्म-सी ऊपरी जागृति नज़र आती है, इसका श्रेय महात्माजी को है। तो इस्लाम तलवार के बल से नहीं बल्कि अपने धर्म-तत्वों की व्यापकता के बल से फैला। इसलिए फैला कि उसके यहां मनुष्यमात्र के अधिकार समान हैं। (‘हिन्दू-मुस्लिम एकता’ शीर्षक लेख का अंश)
- आयोजन : नागेन्द्र
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Published: 31 Jul 2023, 12:47 PM