बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को भेजा नोटिस, कहा- बिना अनुमति नहीं होगी तोड़फोड़ की कार्रवाई
दो सितंबर को याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सवाल उठाया था कि किसी का घर सिर्फ इसलिए कैसे तोड़ा जा सकता है क्योंकि वह किसी मामले में आरोपी है।
सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अदालत के उस आदेश के कथित उल्लंघन के लिए अवमानना कार्यवाही शुरू करने के अनुरोध वाली याचिका पर असम सरकार और अन्य से जवाब मांगा, जिसमें कहा गया था कि उसकी अनुमति के बिना देश में तोड़ फोड़ की कार्रवाई नहीं होगी।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने संबंधित पक्षों से मामले में यथास्थिति बनाए रखने को भी कहा। कोर्ट ने 17 सितंबर को कहा था कि उसकी अनुमति के बिना एक अक्टूबर तक आरोपियों की संपत्तियों को ध्वस्त नहीं किया जाएगा।
असम के सोनापुर में तोड़फोड़ की प्रस्तावित कार्रवाई को लेकर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के अनुरोध वाली याचिका पर कोर्ट में सुनवाई हुई।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश का सरासर उल्लंघन हुआ है जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि उसकी अनुमति के बिना तोड़ फोड़ की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। जब पीठ ने कहा कि वह याचिका पर नोटिस जारी करेगी तो अहमदी ने अनुरोध किया कि यथास्थिति बरकरार रखी जानी चाहिए। इसके बाद पीठ ने नोटिस जारी किया और संबंधित पक्षों से यथास्थिति बनाए रखने को कहा।
कोर्ट में दाखिल कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि कई राज्यों में अपराध के आरोपियों की संपत्तियों को ध्वस्त किया जा रहा है। कोर्ट ने 17 सितंबर को इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था कि अवैध तोड़ फोड का एक भी मामला संविधान की भावना के खिलाफ है।
पीठ ने कहा था, ‘‘सुनवाई की अगली तारीख तक, हम निर्देश देते हैं कि इस अदालत की अनुमति के बिना देश भर में कहीं भी तोड़फोड़ की कारवाई नहीं की जाएगी।’’ पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई के लिए एक अक्टूबर की तारीख तय की थी।
दो सितंबर को याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सवाल उठाया था कि किसी का घर सिर्फ इसलिए कैसे तोड़ा जा सकता है क्योंकि वह किसी मामले में आरोपी है।
अदालत जमीयत उलेमा-ए-हिंद और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विभिन्न राज्यों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया कि दंगों और हिंसा के मामलों में आरोपियों की संपत्तियों को नष्ट न किया जाए।
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