पीएम का वादा, और योगी सरकार के 100 दिन, लेकिन छुट्टा पशुओं से अब तक नहीं मिली है कोई राहत
विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम ने कहा था, "मेरे ये शब्द लिखकर रखिए, ये मोदी बोल रहा है...जो पशु दूध नहीं देता है, उसके गोबर से भी आय हो, ऐसी व्यवस्था मैं आपके सामने खड़ी कर दूंगा। एक दिन ऐसा आएगा कि छुट्टा पशु देखकर लगेगा कि यार, इसे भी बांध लो..."
अभी अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरा होने के उपलक्ष्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने करीब एक घंटा लंबा भाषण दिया, पर उसमें आवारा पशुओं या गोवंश पशुओं के बारे में वह एक शब्द नहीं बोले जबकि पशुपालकों को उम्मीद थी कि वह इस बारे में कुछ ठोस बातें कहेंगे। वैसे, पशुपालन मंत्री धर्मपाल सिंह यह दावा जरूर कर रहे हैं कि 9 लाख आवारा पशुओं को सुरक्षित आश्रय उपलब्ध कराया गया है और 1.38 लाख लोगों को प्रति पशु 900 रुपये का भुगतान किया जा रहा है। यूपी में 10 लाख से अधिक ही आवारा पशु होने का अनुमान है। इस साल के शुरू में विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा बना था।
दरअसल, 2017 में जब योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी, तो उसने अवैध होने के आरोप में कई वधशालाओं को बंद करा दिया; गोरक्षकों के नाम पर वीएचपी, बजरंग दल समेत कई संगठनों ने अवैध तस्करी के खिलाफ ऐसा अभियान चलाया कि पशुओं को इधर से उधर ले जाना लोगों की जान पर बन गया। इस वजह से पशु बाजार सूने ही हो गए। चूंकि लोग दूध न देने वाली गायों, भैसों, बछड़ों, बैलों को अब खुले में छोड़ देते हैं इसलिए आवारा पशुओं की समस्या विकराल हो गई है। माफ करें, विकराल शब्द बड़ा भले ही लगे, वास्तविक स्थिति यही है।
ये आवारा पशु फसलों को तो खा-रौंद रहे ही हैं, खेतों में ही नहीं, सड़कों तक पर लोगों को घायल कर रहे बल्कि वे कुछ लोगों की मौत के कारण भी बने हैं। इससे गुस्सा इतना अधिक है कि कई जगह ग्रामीणों ने विद्यार्थियों और शिक्षकों को भगाकर इन पशुओं को स्कूलों में बंद कर दिया। ये सब सूचनाएं सार्वजनिक होने के बावजूद विधानसभा चुनाव के दो चरणों के बाद फरवरी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सभा में ऐसा जतलाया, मानो उन्हें पता ही नहीं हो कि समस्या इतनी बड़ी हो गई और उन्हें पता ही नहीं था। उन्होंने कहा कि ‘मेरे ये शब्द लिखकर रखिए, ये मोदी बोल रहा है और आपके आशीर्वाद के साथ बोल रहा है। जो पशु दूध नहीं देता है, उसके गोबर से भी आय हो, ऐसी व्यवस्था मैं आपके सामने खड़ी कर दूंगा। एक दिन ऐसा आएगा कि छुट्टा पशु देखकर लगेगा कि यार, इसे भी बांध लो, इससे भी कमाई होने वाली है।’
यह बात दूसरी है कि ठीक दो साल पहले फरवरी, 2018 में ‘मन की बात’ में भी उन्होंने कहा था कि ‘गोबर को कचरा न समझें। पशुओं का अपशिष्ट (यानी गोबर-मूत्र) भी कमाई का जरिया हो सकता है। सरकार की गोबर धन स्कीम के जरिये इसे एनर्जी में बदलकर आय का जरिया बनाया जा सकता है।’ उन्होंने गोबरधन योजना को ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्म बनाने की बात भी कही थी।
खैर, विधानसभा चुनाव के चार माह बाद भी लोग प्रधानमंत्री की बातों पर अमल की बाट जोह रहे हैं। यह बात दूसरी है कि मोदी ने जो बात तब कही थी, वह, दरअसल, उसी तरह की है जैसी छत्तीसगढ़ की भूपेश बघल सरकार ‘गोधन न्याय योजना’ के तहत अमल में ला रही है। इसके तहत आवारा पशुओं द्वारा फसल नष्ट करने पर प्रति एकड़ 3,000 रुपये की क्षतिपूर्ति दी जाती है जबकि दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गोयठे या गोहरी की खरीद की जाती है।
जौनपुर में मड़ियाहू के रहने वाले रूपचंद यादव कहते हैं, ‘हमें याद है कि प्रधानमंत्री ने यह तक कहा था कि दोबारा सत्ता में आते ही 100 दिनों के अंदर किसानों की सबसे बड़ी समस्या छुट्टा पशु से निजात दिला देंगे। फिलहाल तो कुछ दिखता नहीं।’ देवरिया के भटनी में गोशाला चलाने वाले मुकेश कुमार कहते हैं, ‘अपने पहले कार्यकाल में योगी सरकार ने बेसहारा या निराश्रित गोवंश पालने वाली गोशालाओं को प्रति मवेशी 30 रुपये प्रतिदिन देने की घोषणा की थी। इसमें से भी तीस प्रतिशत काटकर हमें प्रतिदिन प्रति मवेशी 22 रुपये ही मिल पाए और वह भी साल में एक बार एकमुश्त। यह भुगतान भी बीते पांच साल में सिर्फ तीन बार ही हुआ है।’
गोबर धन योजना तो छोड़िए, हाल में की गई भूसा बैंक या बायो-गैस प्लाांट योजनाओं के बारे में भी मुकेश को कोई जानकारी नहीं है। दो-तीन लोगों से फोन पर तस्दीक करने के बाद मुकेश कहते हैं, ‘देखिए, हमें क्या किसी को कोई जानकारी नहीं है।’ किसी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी ने भी उनसे इस योजना के बाबत कोई संपर्क नहीं किया है। वैसे, यह बात तो किसी भी गोशाला में जाकर देखी जा सकती है कि या तो पशुओं की संख्या काफी कम है या इतनी अधिक है कि वे समा नहीं पा रहे; उनके भोजन-पानी की व्यवस्था मुश्किल से ही हो पा रही है और उनकी चिकित्सा की व्यवस्था न के बराबर है। इसीलिए सरकारी गोशालाओं में आए दिन गोवंश के मौतों की खबरें आम हैं।
गाजीपुर में सुरभि डेयरी चलने वाले विपिन चतुर्वेदी बताते हैं कि काऊ शेड योजना के लिए उन्होंने कोशिश खूब की लेकिन एक साल से अटके हुए हैं। रही बात गोबर धन, भूसा बैंक या ऐसी किसी योजना की, तो हमसे न तो किसी भाजपा नेता ने संपर्क किया, न किसी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी ने। वह बताते हैं कि गोबर स्थानीय स्तर पर किसान से कम दाम पर खरीदते जरूर हैं लेकिन जब जिले में जैविक खाद बनाने का कोई प्लाांट या योजना ही नहीं तो कोई क्या लाभ उठाएगा। वह इस बात पर भी चिंतित हैं कि जिस तरह खुदरा बाजार पर धीरे-धीरे ऑनलाइन कंपनियां कब्जा करती जा रही हैं, आने वाले दिनों में कहीं इधर भी वैसा ही न दिखने लगे।
बरेली के प्रवीण मिश्रा बताते हैं कि जब प्रधानमंत्री ने गोबर से धन कमाने का मंत्र दिया, तो कई लोगों ने तो साहूकार से कर्ज लेकर कई गायें खरीद लीं। लेकिन अब उनकी जान सांसत में है क्योंकि न तो दूध का उचित मूल्य मिल रहा है न ही गोबर का।
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