100 दिन पूरे होने पर योगी सरकार ने गिनाईं तो कई उपलब्धियां, लेकिन क्या है उनकी हकीकत और कितने सच्चे हैं दावे?
योगी सरकार ने हाल में जोर-शोर से 100 दिन की उपलब्धियों को गिनाया। लेकिन हकीकत क्या वैसी ही है जैसा कि सरकार गिना रही है। 100 दिन के एजेंडे में शामिल रोजगार से लेकर निवेश तक के वादे अभी भी हवा-हवाई ही हैं और जमीन पर कहीं कुछ नजर नहीं आ रहा है।
योगी आदित्यनाथ सरकार के दूसरे कार्यकाल के कामकाज के 100 दिन पूरे हो गए। इस मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में पूरी दमदारी से कहा, ‘सौ दिन के लिए जो कहा था, पूरा कर दिया। बीजेपी के लोक कल्याण पत्र में शामिल 130 संकल्पों में से 97 पूरे हो गए हैं, शेष 33 भी जल्द पूरे होंगे।’
बुलडोजर से फजीहत, पक्षपाती रवैया
लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? इन दावों के उलट हकीकत की धरातल पर काफी कुछ नजर नहीं आ रहा है। पहले कार्यकाल में योगी को ‘बुलडोजर बाबा’ कहा जाने लगा था। सरकार में उनकी वापसी के बाद दूसरे राज्यों की बीजेपी सरकारें उनकी नकल करने लगी थीं। लेकिन बुलडोजर की रफ्ततार धीमी हो गई दिख रही है। प्रयागराज के अटाला में 10 जून को जुमे की नमाज के बाद हुए बवाल के मुख्य आरोपी जावदे मोहम्मद पंप का मकान ढहाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद से यूपी सरकार की न सिर्फ फजीहत हो रही बल्कि बुलडोजर के सहारे चल रही कानून-व्यवस्था पर भी सवाल उठने लगे हैं।
दरअसल, जावदे की पत्नी परवीन फातिमा ने कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा था कि प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने अवैध तरीके से मकान को ध्वस्त किया है। मकान जावदे के नाम था ही नहीं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार पर टिप्पणी करते हुए कहा, हम बुलडोजर की कार्रवाई पर रोक नहीं लगा सकते हैं लेकिन सब कुछ कानून के दायरे में होना चाहिए और सरकार को निष्पक्ष दिखना चाहिए।
इसके पहले पूरे प्रकरण में इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टटिस गोविन्द माथुर समेत कई कानूनविद द्वारा बुलडोजर संस्कृति पर सवाल उठाने के बाद भी योगी सरकार बैकफुट पर दिखी थी।
विधानसभा चुनावों के दौरान माफियाओं पर सख्ती को भाजपा ने मुद्दा बनाया था। उस वक्त तक 25 माफियाओं की संपत्ति पर बुलडोजर चलाकर 1,500 करोड़ की संपत्ति जब्त करने का दावा था। इनमें मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद मुख्य फोकस में रहे थे। 100 दिनों के कार्यकाल पर आयोजित कार्यक्रम में योगी ने दावा किया कि ‘माफियाओं से 2017 से अभी तक 2,925 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई है।’ मुख्य सचिव (कानून-व्यवस्था) अवनीश अवस्थी भी कहते हैं कि ‘50 माफियाओं की सूची तैयार की गई है। लगातार कार्रवाई हो रही है।’ लेकिन सही तो यह है कि सहारनपुर में खनन माफिया हाजी इकबाल के साथ कुछ अन्य छोड़ दें तो शेष माफियाओं की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने पर कोर्ट का खौफ साफ दिख रहा है।
विधानसभा चुनाव में मऊ के मुहम्मदाबाद गोहना के पूर्व ज्येष्ठ उप प्रमुख अजीत सिंह की हत्या के आरोपी पूर्व सांसद धनंजय सिंह पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव के दौरान काफी हमलावर थे। लेकिन धनंजय सिंह के आवास पर बुलडोजर नहीं पहुंच सका। वहीं, राजा भईया के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले गुलशन यादव के ठिकानों पर बुलडोजर जरूर चला। एनआरसी-सीएए विवाद के बाद उपद्रव करने वालों की तस्वीरें होर्डिंग-पोस्टर के जरिये सार्वजनिक कर वसूली हुई थी। इस पर खूब बवेला मचा था। प्रयागराज में हाल में उपद्रव पर 97 आरोपियों को चिह्नित कर एक करोड़ की वसूली का दावा किया गया था। पर वह हवा में ही दिख रहा है।
कोर्ट में मुंह की खा रही है बेलगाम पुलिस
इसी तरह सेना में तैनात गोरखपुर के चौरीचौरा निवासी धनंजय यादव की मौत के बाद मार्च महीने में खूब उपद्रव हुआ था। जिला प्रशासन ने 67 लोगों को नामजद कर 2.36 लाख रुपये के वसूली की कवायद शुरू की। वसूली तो नहीं हुई, अलबत्ता हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को ड्यूटी के दौरान मारे गए जवानों के दाहसंस्कार में संजीदगी दिखाने की नसीहत जरूर दे डाली। सहारनपुर में लॉकअप में मुस्लिम युवकों की पिटाई का वीडियो वायरल होने के बाद से ही पुलिस की फजीहत हो रही है। पिटाई के वीडियो को ट्ववीट कर दवेरिया से भाजपा विधायक शलभ मणि त्रिपाठी ने लिखा था, ‘बलवाईयों को रिटर्न गिफ्ट।’ लेकिन जिन युवकों की पिटाई हुई, उनमें से आठ के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। लिहाजा सभी को जेल से इज्जत के साथ छोड़ना पड़ा।
सपा नेता जियाउल इस्लाम का कहना है कि ‘योगी सरकार सत्ता में बने रहने और नफरत की राजनीति को लगातार बूस्टर डोज दे रही है। इसके साथ ही वह अपने हिसाब से कानून की व्याख्या कर रही है। इसके पहले भी जितने लोगों का चौराहों पर पोस्टर लगाकर वसूली की कोशिश हुई थी, वह बेकार साबित हुई थी।’ विधानसभा चुनाव में छुट्टा पशुओं का मुद्दा भी खूब उछला था लेकिन अब तक कोई ठोस योजना नहीं दिखा है।
100 दिन में 20 हजार सरकारी नौकरी का वादा-दावा भी हवाई
100 दिनों का एजेंडा तय करते हुए खुद योगी ने 20 हजार सरकारी पदों को भरने का ऐलान किया था। लेकिन 100 दिनों की उपलब्धियां गिनाते हुए खुद योगी ने 10 हजार सरकारी नौकरी देने की बात कही। आम आदमी पार्टी के नेता विजय श्रीवास्तव का कहना है कि ‘रोजगार, निवेश, कानून-व्यवस्था से लेकर जन कल्याणकारी योजनाओं को लेकर सरकार सिर्फ हवाई आंकड़े जारी कर रही है।’
बीते 3 जून को लखनऊ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में आयोजित ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में 80 हजार करोड़ के निवेश की आधारशिला रखी गई थी। योगी का दावा है कि निवेश प्रस्तावों से 5 लाख प्रत्यक्ष और 20 लाख को अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। लेकिन यहां सवाल है कि निवेश प्रस्ताव कितने जमीन पर उतरे हैं? उदाहरण के लिए, योगी आदित्यनाथ के जिले गोरखपुर में 2,828 करोड़ का निवेश प्रस्ताव है। इनमें फाइव स्टार होटल का भी प्रस्ताव है जिसका काम 3 साल पहले से चल रहा है। शेष प्रस्ताव में उद्यमी में गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण जमीन तक मुहैया नहीं करा सका है।
नोएडा भी अभी तक है खाली हाथ
सर्वाधिक निवेश की परियोजनाएं गौतमबुद्ध नगर के लिए थीं। यहां 45,529 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की आधारशिला रखी गई। इंडस्ट्रियल एंटरप्रेन्योर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष पीके तिवारी कहते हैं कि ‘सुनने में करोड़ों का निवेश अच्छा जरूर लगता है, लेकिन जमीन पर भी यह दिखना चाहिए। गौतमबुद्ध नगर में सिर्फ बड़े उद्यमी ही निवेश कर रहे हैं। छोटे उद्यमियों का बुरा हाल है।’
इस बार भी योगी की मंत्रियों से केमेस्ट्री अच्छी नहीं दिख रही है। डिप्टी सीएम बृजेश पाठक जिस तरह अस्पतालों का दौरा कर रहे थे, वह योगी खेमे को रास नहीं आ रहा था। अब पाठक स्वास्थ्य विभाग में हुए ट्रांसफर को लेकर नाराज हैं। उन्होंने अपर मुख्य सचिव (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य) को जिस भाषा में पत्र लिखा है, उसे लेकर भाजपा के ही एक वर्ग में खास हलचल है। इसके साथ ही पीएम मोदी के करीबी ए के शर्मा को नगर विकास विभाग और ऊर्जा जैसा अहम विभाग मिला हुआ है। लेकिन योगी की शर्मा से अनबन जग जाहिर है। यही वजह है कि दोनों मंत्रियोों ने योगी के गृह जिले गोरखपुर से दूरिया बना रखी हैं।
कांग्रेस नेता शरद कुमार सिंह कहते हैं, ‘मंदिर-मस्जिद से 1.20 लाख माइक उतरवाने या आवाज धीमा कराने का दावा हो या फिर किसानों को गन्ना मूल्य भुगतान का या फिर स्कूली छात्राओं को स्कूटी और लैपटॉप देने का मामला- सब कुछ फाइलों में ही दिख रहा है। उलटे पीएम सम्मान निधि, राशन कार्ड आदि के नाम पर गरीबों का उत्पीड़न किया जा रहा है।’
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