‘कमजोर आत्मा वाले समर्पण कर देते हैं, लेकिन बाकी लोग मशाल को आगे ले चलते हैं’

जवाहरलाल नेहरू की किताब “भारत की खोज” का अंश। नेहरू ने इसे अहमदनगर जेल में रहते हुए लिखा था। मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई इस किताब का प्रकाशन 1946 में हुआ और हिंदी समेत कई भाषाओं में अनुवाद हुआ।

जवाहरलाल नेहरू/ फोटो: Getty Images
जवाहरलाल नेहरू/ फोटो: Getty Images
user

नवजीवन डेस्क

अक्सर कहा जाता है कि भारत अंतर्विरोधों का देश है। कुछ लोग बहुत धनवान हैं और बहुत से लोग बहुत निर्धन हैं, यहां आधुनिकता भी है और मध्ययुगीनता भी। यहां शासक है और शासित हैं, ब्रिटिश हैं और भारतीय हैं। ये अंतर्विरोध सन 1943 के उत्तरार्द्ध में अकाल के उन भयंकर दिनों में जैसे कलकत्ता शहर में दिखाई पड़े, वैसे पहले कभी नजर नहीं आए थे।

हालांकि अकाल निस्संदेह लड़ाई की स्थिति के कारण पड़ा था और उसे रोका जा सकता था, लेकिन यह बात भी उतनी ही सही है कि उसकी ज्यादा गहरी वजह उस बुनियादी नीति में थी जो भारत को दिनोंदिन गरीब बनाती जा रही थी और जिसके कारण लाखों लोग भुखमरी का जीवन जी रहे थे।

भारत में ब्रिटिश शासन पर बंगाल की भयंकर बर्बादी ने और उड़ीसा, मालाबार और दूसरे स्थानों पर पड़ने वाले अकाल ने आखिरी फैसला दे दिया। अंग्रेज निश्चय ही भारत छोडेंगे, और उनके भारतीय साम्राज्य की याद भर रह जाएगी,पर जब वे जाएंगे, तो वे क्या छोड़ेंगे-कितना मानवीय पतन और संचित दुख? तीन वर्ष पहले मृत्यु शैय्या पर पड़े टैगोर के सामने यह चित्र उभरा था: “लेकिन वे कैसा भारत छोड़ेंगे? कितनी नग्न दुर्गति? अंत में उनके सदियों पुराने प्रशासन की धारा सूख जाएगी तो वे अपने पीछे कितनी कीचड़ और कचरा छोड़ेंगे।”

अकाल और यद्ध के बावजूद, अपने जन्मजात अंतर्विरोधों से पूर्ण और उन्हीं अंतर्विरोधों और उनके परिणामस्वरूप होने वाले विनाशों से पोषण पाती हुई जीवनधारा बराबर चलती रहती है। प्रकृति अपना कायाकल्प करती है और कल के लड़ाई के मैदान को आज फूलों और हरी घास से ढक देती है, और जो खून कल बहा था वह अब धरती को सींचता है और नए जीवन को शक्ति और रूप-रंग देता है। मनुष्य, जिसके पास स्मृति का विलक्षण गुण होता है, कहानियों और यादों से निर्मित अतीत में बसता है। वह शायद ही कभी उस वर्तमान को पकड़ने का प्रयास करता हो, ‘जिसकी दुनिया रोज नई हो जाती है।’ और यह वर्तमान, इससे पहले की हमें उसका बोध हो, अतीत में खिसक जाता है। आज जो बीते हुए कल की संतान है, खुद अपनी जगह अपनी संतान, आने वाले कल को दे जाता है। द्रुतगामी विजय का अंत खून और दलदल से होता है, और जो पराजय दिखाई पड़ती है उसकी कड़ी परीक्षा में से नई शक्ति और व्यापक दृष्टि से सम्पन्न चेतना पैदा होती है। कमजोर आत्मा वाले समर्पण कर देते हैं और वे हटा दिए जाते हैं, लेकिन बाकी लोग मशाल को आगे ले चलते हैं और आने वाले कल के मार्ग-दर्शकों को सौंप देते हैं।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


Published: 18 Aug 2017, 4:07 PM