उत्तराखंडः धू-धू कर जल रहे जंगल, बारिश का इंतजार कर रही है बीजेपी की रावत सरकार

उत्तराखंड के जंगल इस समय 360 से ज्यादा जगहों पर आग की चपेट में हैं। राज्य में 28 मई से बादलों के मेहरबान होने की संभावना है। तब जाकर ये आग भी शांत होंगी। अपने कार्यकाल का एक साल पूरा कर चुकी बीजेपी की त्रिवेंद्र रावत सरकार की ये बड़ी विफलता है।

फोटोः सोशल मीडिया
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वर्षा सिंह

उत्तराखंड के जंगल आग से सुलग रहे हैं। आग बुझाने में पूरी तरह नाकाम वन विभाग स्थानीय लोगों से मदद मांग रहा है। जब जंगल की आग बेकाबू होने लगी तब राज्य सरकार को पता चला कि आग बुझाने के लिए आवंटित राशि में से आधी रकम तो जारी ही नहीं की गयी है। इसके बाद अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाने लगी। गढ़वाल से कुमाऊं तक उत्तराखंड के जंगलों में लगी भीषण आग ने साबित कर दिया है कि आग से निपटने के लिए किये गए इंतजाम महज खोखले दावे थे। विभाग के पास आग बुझाने के लिए जरूरी साधन नहीं हैं। और तो और जब जंगलों में आग लग गयी और फैलने लगी तब जाकर फायर वाचमैन की नियुक्तियों के लिये विज्ञापन जारी करने की बात की जाने लगी। आपदा जैसे हालात से निपटने के लिए त्रिवेंद्र रावत की सरकार पूरी तरह विफल साबित हुई है। अब बारिश के आने का इंतजार हो रहा है ताकि बारिश हो और जंगलों का सुलगना बंद हो।

2016 के जंगलों की आग छोड़ दें तो पिछले 17 वर्षों के दौरान इस साल जंगल की आग सबसे भीषण है। हालांकि, नुकसान के मामले में इसने 2016 को भी पीछे छोड़ दिया है। 2016 में जंगल की आग से करीब 45 लाख रुपये का नुकसान हुआ था। जबकि इस साल अब तक 58 लाख रुपये की वन संपदा को नुकसान पहुंच चुका है। 15 फरवरी से 15 जून तक चलनेवाले ‘फायर सीजन’ में अभी 20 दिन बाकी हैं। इस साल के फायर सीजन में 25 मई तक आग लगने की 1336 घटनाएं सामने आईं हैं। जिससे 2,577 हेक्टेयर वनक्षेत्र को नुकसान पहुंचा है। 2016 के बाद जंगल में लगी ये दूसरी सबसे बड़ी आग है। 2016 की आग में 4,437 हेक्टेयर वनक्षेत्र प्रभावित हुआ था।

राज्य के जंगलों में लगी आग जब बेकाबू हो गई तो वन विभाग के अधिकारियों के चेहरे पर बौखलाहट आने लगी। डीएफओ अपने-अपने क्षेत्रों में स्टाफ और संसाधनों की कमी का रोना रोने लगे। राज्य के प्रमुख वन संरक्षक जयराज आग लगने के लिए भी स्थानीय लोगों को जिम्मेदार बताते हैं और आग नहीं बुझाने के लिए भी स्थानीय लोगों को ही दोषी ठहराते हैं। इसके लिये राज्य के प्रमुख वन संरक्षक उदाहरण देते हैं कि जब घर में आग लगती है तो पहले हम खुद आग बुझाते हैं फिर फायर ब्रिगेड को बुलाते हैं। लेकिन फायर सीजन से पहले जिन इंतजामों के दावे किये गए थे, वे कारगर क्यों नहीं हुए, इस सावल पर वे कुछ नहीं कहते।

उत्तराखंडः धू-धू कर जल रहे जंगल, बारिश का इंतजार कर रही है बीजेपी की रावत सरकार

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के असिस्टेंट डायरेक्टर सुनील चंद्रा के मुताबिक प्री वॉर्निंग सिस्टम के तहत सैटेलाइट से मिलने वाली तस्वीरों के जरिये वे आग लगने से पहले और आग लगने के दौरान चेतावनी जारी कर देते हैं। उनके मुताबिक देशभर में आग लगने के सबसे ज्यादा अलर्ट उत्तराखंड के लिए जारी किये गए। इस साल 19 मई से 25 मई के बीच सात दिनों के अंतराल में उत्तराखंड में आग लगने के 4,674 अलर्ट जारी किए जा चुके हैं। जबकि इसी दौरान हिमाचल में 2,686 अलर्ट, जम्मू कश्मीर में 1,564 अलर्ट, पंजाब में 854 अलर्ट और महाराष्ट्र में 586 अलर्ट जारी किये गए हैं। यानी उत्तराखंड के जंगल देशभर में सबसे ज्यादा सुलग रहे हैं।

हालांकि, सुनील चंद्रा के मुताबिक जरूरी नहीं है कि सभी अलर्ट वास्तव में आग लगने की घटनाओं में तब्दील हों। सैटेलाइट से मिली तस्वीरों के जरिये ये आगाह करने का तरीका होता है। उत्तराखंड के लिए पिछले एक हफ्ते में जारी किये गए अलर्ट में से 550 स्थानों पर आग लगने की घटनाएं सही साबित हुईं। चंद्रा के मुताबिक जंगलों की आग को आपदा की तरह नहीं लिया जाता। एयरफोर्स या दूसरी एजेंसियों की मदद तभी ली जाती है, जब स्थिति बेकाबू हो जाती है। वे कहते हैं कि उत्तराखंड की टोपोग्राफी कठिन है। इसलिए आग बुझाने में दिक्कतें आती हैं। वहां पर अगर 50 मीटर दूर भी जंगल हो तो बीच में खाई होती है। इसलिए जंगल जलने की सूरत में आग तक पहुंचकर उसपर काबू पाने में दिक्कतें आती हैं।

जंगल की आग बुझाने में वन विभाग जब पूरी तरह नाकाम साबित हो गया तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को आग लगने की स्थिति में जिलाधिकारियों की भी जवाबदेही तय करनी पड़ी। खुद मुख्यमंत्री ने वन विभाग के अधिकारियों से पूछा कि यदि आग लगने की घटनाओं की पूरी तैयारी थी, तो फिर उस पर काबू पाने में दिक्कत क्यों आई। मुख्यमंत्री ने वन विभाग के नोडल अधिकारी वीपी गुप्ता को कड़ी फटकार भी लगाई। मुख्यमंत्री ने इस बात पर भी अधिकारियों से जवाब मांगा कि वनाग्नि की रोकथाम के लिए दिये गए 12 करोड़ के बजट का पचास फीसदी ही क्यों जारी किया गया।

उत्तराखंड के जंगल सुलग रहे हैं और अधिकारी पैसा बचाने में लगे रहे। जीरो टॉलरेंस और ट्रांसपेरेंट सिस्टम की दुहाई देने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पता ही नहीं चला कि उनके अधिकारी उनके सामने कोरे दावे कर रहे हैं। इस समय 360 से अधिक जगहों पर जंगल आग की चपेट में हैं। मौसम विभाग के मुताबिक उत्तराखंड में 28 मई से बादल कुछ मेहरबान होंगे। तभी जंगल की लपटें भी शांत होंगी। अपने कार्यकाल का एक साल पूरा कर चुकी त्रिवेंद्र सरकार की ये बड़ी विफलता है।

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