वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन : भारतीय महिलाओं को प्राथमिकता देना जरूरी

हैदराबाद में 28 से लेकर 30 नवंबर तक भारत और अमेरिका की संयुक्त मेजबानी में वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन (जीईएस) का आयोजन किया जा रहा है। इस साल के सम्मेलन का विषय ‘वूमेन फर्स्ट, प्रॉस्पेरिटी फॉर ऑल’ है।

फाइल फोटो
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फ्रैंक एफ. इस्लाम

हैदराबाद में 28 से लेकर 30 नवंबर तक भारत और अमेरिका की संयुक्त मेजबानी में वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन (जीईएस) का आयोजन किया जा रहा है। यह सम्मेलन पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के दिमाग की उपज है और इस वर्ष इस सम्मेलन के 8वें संस्करण का आयोजन होने जा रहा है। इससे पहले यह सम्मेलन इस्तांबुल, दुबई और सिलिकॉन वैली समेत अन्य स्थानों पर आयोजित हो चुका है। इस साल के सम्मेलन का विषय 'वूमेन फर्स्ट, प्रॉस्पेरिटी फॉर ऑल' है।

सम्मेलन में भारत और खासतौर से हैदराबाद को सूचना प्रौद्योगिकी, मीडिया एवं मनोरंजन, स्वास्थ्य सेवा जैसे अनेक क्षेत्रों में महिलाओं की अभूतपूर्व प्रगति और उपलब्धियों को दर्शाने का शानदार मौका मिलेगा।

यह सम्मेलन इस बात पर ध्यान देने का भी मौका देगा कि भारतीय महिला उद्यमियों को प्राथमिकता देने के लिए भारत में काफी कुछ किए जाने की जरूरत है।

मोदी प्रशासन ने महिला उद्यमियों पर कुछ ध्यान दिया है।

उदाहरण के तौर पर अप्रैल में प्रशासन ने स्टैंड-अप इंडिया योजना शुरू की थी, जिसके तहत महिला उद्यमियों और अनुसूचित जाति और जनजाति के उद्यमियों को 10 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक का ऋण देने का प्रावधान है।

लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि ऋण लेने वाले इन लोगों में महिला उद्यमियों की संख्या कितनी होगी? यह एक बड़ा सवाल है, क्योंकि भारत में महिला उद्यमियों की कमी है और विभिन्न अध्ययनों में साबित हुआ है कि भारत में महिला उद्यमी विश्व में सबसे अधिक वंचित हैं।

पिछले कुछ वर्षो में महिला व्यवसायियों की संख्या बढ़ने के बावजूद, भारत में आज भी उद्यमिता पुरुषों का ही अधिकार क्षेत्र माना जाता है।

नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत के मात्र 14 प्रतिशत व्यापारिक प्रतिष्ठान महिलाओं द्वारा संचालित हैं। इसी अध्ययन में यह खुलासा भी हुआ कि महिलाओं द्वारा संचालित अधिकांश व्यापार (79 प्रतिशत) स्वयं वित्त पोषित होते हैं।

यह अध्ययन विचलित करने वाला है और भारतीय महिला उद्यमियों की दुनियाभर की उद्यमियों से तुलना के परिणाम इससे भी अधिक परेशान करने वाले हैं।

वर्ष 2015 में वैश्विक उद्यमिता एवं विकास संस्थान (जीईडीआई) ने महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने की स्थितियों के लिहाज से देशों की रैंकिंग करते हुए महिला उद्यमिता सूचकांक की एक रपट जारी की थी। 77 देशों की इस सूची में भारत का स्थान काफी निचले पायदान यानी 70वें स्थान पर रहा।

मेरा मानना है कि भारत में निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों को भारतीय महिला उद्यमियों की अप्रयुक्त अपार क्षमता का लाभ उठाने और उन्हें प्राथमिकता देने की जरूरत पूरी करने के लिए एक व्यापक और एकीकृत त्रिआयामी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए, जो निम्नलिखित हैं :

- महिलाओं को उद्यमी बनाने के लिए शिक्षित और सशक्त करना

- उनके उद्यमों को समर्थन प्रदान करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन मुहैया कराना

- उद्यम में सफल बनाने के लिए उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करना

महिलाओं को उद्यमी बनाने के लिए बहुआयामी शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। उन्हें केवल 'किताबी ज्ञान' नहीं दिया जाना चाहिए, बल्कि किसी व्यवसाय को चलाने की कार्यकुशलता और क्षमता भी उन्हें प्रदान की जानी चाहिए।

इसमें महिलाओं को ऐसे क्षेत्रों में शामिल करने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, जिनमें आज काफी कम महिला उद्यमी हैं, जैसे कि सूचना प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और इंजीनियरिंग।

कई अध्ययनों से साबित हुआ है कि उभरते बाजारों में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में ऋण प्राप्त करने में काफी ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसे देखते हुए विश्व बैंक ने महिलाओं को अपना व्यापार शुरू करने और बढ़ाने के लिए इस साल एक महिला उद्यमिता वित्तीय पहल (वे-फाई) शुरू की थी। भारत को भी वे-फाई की तर्ज पर कार्यक्रम विकसित करने चाहिए।

अमेरिका में सर्विस कोर ऑफ रिटायर्ड एक्जीक्यूटिव्ज (स्कोर) नामक एक गैर लाभकारी संगठन है, जो उद्यमियों को मुफ्त सलाह सेवा उपलब्ध कराता है। भारत भी महिला उद्यमियों को समर्पित स्कोर जैसा ही कोई कार्यक्रम शुरू कर सकता है।

इस कार्यक्रम में मार्गदर्शन के लिए सभी क्षेत्रों के सेवानिवृत्त और सक्रिय पेशेवरों को नियुक्त किया जा सकता है।

कुल मिलाकर, वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन भारत के उद्यमियों की उपलब्धियों और देश की अर्थव्यवस्था में उनके महत्वपूर्ण योगदान पर ध्यान आकृष्ट करेगा। इस सम्मेलन को महिला उद्यमियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए एक मैग्नीफाइंग ग्लास के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

अगर ऐसा किया जाता है और महिला उद्यमियों को प्राथमिकता दी जाती है, तो वे देश के आर्थिक विकास में इतना महत्वपूर्ण योगदान दे पाएंगी कि उससे सभी को लाभ होगा और वे भारत को प्राथमिक दर्जे पर रखेंगी।

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