राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विवाद: मंत्रालय की कार्यप्रणाली से विजेताओं में नाराजगी, राष्ट्रपति कार्यालय भी खफा
स्मृति ईरानी के नेतृत्व वाले सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में अनावश्यक रूप से राष्ट्रपति भवन को विवादों में घसीट लिया है।
3 मई को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह से 50 से ज्यादा (कुछ खबरों के अनुसार 68 लोग) विजेताओं के दूर रहने के बाद समारोह में कई विजेताओं के नामों की घोषणा नहीं की गई। यहां तक कि उन विजेताओं के लिए निर्धारित सीटों को इवेंट मैनेजमेंट टीम के लोगों द्वारा भर दिया गया, जिसे सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा समारोह के आयोजन की जिम्मेदारी दी गई थी। हालांकि, सरकार ने यह कहते हुए किसी भी विवाद से इंकार कर दिया कि जो लोग नहीं आए उनकी संख्या काफी कम थी और सभी बड़े पुरस्कारों के विजेता समारोह में आए थे।
इस बीच खबर आ रही है कि राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह विवाद की सारी जिम्मेदारी राषट्रपति भवन पर डालने को लेकर राष्ट्रपति भवन सूचना और प्रसारण मंत्रालय से नाराज है। राष्ट्रपति भवन ने समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के कार्यक्रम को लेकर 3 सप्ताह पहले ही मंत्रालय को जानकारी दे दी थी। द टेलीग्राफ की एक खबर के अनुसार, इस पूरे मामले में सूचना और प्रसारण मंत्रालय की भूमिका को लेकर राष्ट्रपति भवन ने अपनी अप्रस्न्नता से पीएमओ को अवगत कराया है।
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता आखिरी क्षणों में की गई उस घोषणा के खिलाफ विरोध कर रहे थे, जिसमें कहा गया था कि 65 साल पुराने पुरस्कार समारोह में पहली बार 90 प्रतिशत से ज्यादा विजेताओं को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों पुरस्कार नहीं दिया जाएगा, बल्कि उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी और उनके कनिष्ठ मंत्री राज्यवर्धन राठौर के हाथों पुरस्कार मिलेगा। इसके कारण में कहा गया कि राष्ट्रपति अपने अतिव्यस्त कार्यक्रम के कारण एक घंटे से ज्यादा देर तक समारोह में नहीं रुक पाएंगे। ये समय इससे पहले के राष्ट्रपतियों द्वारा दिए जाने वाले समय से 2 घंटे कम है। साथ में यह भी कहा गया कि राष्ट्रपति कोविंद ने पिछले साल राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से प्रोटोकॉल का पालन किया है।
भारत के राष्ट्रपति कितने पुरस्कार देते हैं? यह सवाल राष्ट्रपति भवन के इस बयान से काफी अहम हो जाता है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पुरस्कार समारोहों में एक घंटे से एक मिनट भी ज्यादा नहीं रुकने के प्रोटोकॉल का पालन करते हैं। राष्ट्रपति के प्रेस सचिव के अनुसार, इन समारोहों में कई पुरस्कार समारोह भी शामिल हैं और इसलिए राष्ट्रपति सख्ती से 'एक घंटे से ज्यादा नहीं' के नियम का पालन करते हैं।
क्या यह संभव है कि भारत के राष्ट्रपति इस तरह के अत्यधिक निमंत्रण स्वीकार कर रहे हैं? निश्चित तौर पर कोई नहीं जानता कि पिछले साल जुलाई में पद संभालने के बाद से उन्होंने कितने पुरस्कार समारोहों में भाग लिया है। लेकिन 3 मई को नई दिल्ली में जब उन्होंने 140 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेताओं में से केवल 11 विजेताओं को पुरस्कार दिया तो इस प्रोटोकॉल ने उन्हें अनावश्यक रूप से एक विवाद में खींच लिया है।
राष्ट्रपति कोविंद के पूर्ववर्तियों ने, जिनमें से कुछ उनसे अधिक उम्र के थे, पहले कई अवसरों पर अपने हाथों से सभी पुरस्कार प्रदान किया करते थे। कोविंद (72) से 10 साल बड़े पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 2013 से हर साल ऐसा शायद इसलिए करते रहे कि कोविंद की तुलना में उनका कार्यक्रम कम व्यस्त हुआ करता था।
इस बात का अर्थ यह नहीं है कि राष्ट्रपति कोविंद परंपरा से अलग हटकर नहीं चल सकते हैं। यह पूरी तरह से संभव है कि स्वास्थ्य या चिकित्सा कारणों से वह एक घंटे से अधिक समय तक खड़े या बैठ नहीं हो सकते हों। लेकिन उस स्थिति में, राष्ट्रपति के लिए सभी पुरस्कार विजेताओं के साथ चाय पर मुलाकात करना और समारोह से जाने से पहले उनके साथ फोटो खिंचवाना, एक स्वीकार्य और सम्मानित तरीका होता। केवल 11 'शीर्ष' पुरस्कार विजेताओं को सम्मान प्रदान करने के लिए उनका सहमति देना 129 पुरस्कार विजेताओं के लिए न्यायोचित नहीं था।
यह भी स्पष्ट नहीं है कि राष्ट्रपति ने सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्व गायक को क्यों पुरस्कार दिया, लेकिन सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका को नहीं दिया। क्यों उन्होंने सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए तो पुरस्कार दिया, लेकिन सर्वश्रेष्ठ सिनेमामोग्राफी और पटकथा के लिए नहीं?
हमेशा विवादों में रहने वाली सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी और उनके मंत्रालय ने अब तक इस मामले को लेकर कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया है। इस समारोह के लिए राष्ट्रपति भवन द्वारा आवंटित समय के बारे में मंत्रालय के अनजान होने की कोई गुंजाइश नहीं है। हालांकि, ईरानी की तरफ से ऐसा ही दावा करने की बात कही जा रही है।
पुरस्कार विजेताओं को बुधवार को जब दो चरणों के समारोह के बारे में जानकारी मिली और उन्होंने इसका विरोध किया, तो उन्हें शांत करने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्री विज्ञान भवन पहुंचीं। बताया जा रहा है कि वहां उन्होंने राष्ट्रपति द्वारा आखिरी समय में कार्यक्रम बदलने की बात कहते हुए अपनी असमर्थता जताई। इस बात की पुष्टी पुरस्कार विजेताओं में से एक विजेता ने की है।
उस पुरस्कार विजेता ने बताया, "सूचना और प्रसारण मंत्री ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उन्हें धमकी दे रहा हूं। मुझे उनकी आक्रामकता ने अचंभित कर दिया गया और मैंने इस बात से इनकार किया कि मेरे मन में ऐसा कोई विचार है। उन्हें शांत करने के लिए मैंने उनसे पूछा कि अगर वह हमारी जगह होतीं तो क्या करतीं।" इस पर सूचना और प्रसारण मंत्री ने मजाक उड़ाते हुए जवाब दिया कि वह सिर्फ एक आम अभिनेता थीं और यह बात कोई मायने नहीं रखती।
लेकिन स्पष्ट रूप से यह बात विजेताओं में से उन 68 लोगों के लिए मायने रखती थी, जिन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्री और उनके कनिष्ठ मंत्री से पुरस्कार स्वीकार करने से इंकार करते हुए समारोह से दूर रहने का फैसला किया।
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार देने का विचार भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बनने वाली अच्छी फिल्मों की पहचान करना था। ऐसी फिल्मों को जब तक राष्ट्रीय पुरस्कार नहीं मिल जाता, तो उन्हें शायद व्यावसायिक सफलता और बड़ा दर्शक वर्ग नहीं मिल सकता है। एक अन्य नाराज पुरस्कार विजेता ने कहा, "हम क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों में एक अच्छी फिल्म बनाने के लिए वर्षों संघर्ष करते हैं, हम एक अच्छी फिल्म बनाने के लिए अपने जीवन के 3 से 4 साल लगा देते हैं, लेकिन भारत के राष्ट्रपति हमारे काम को सम्मान देने के लिए दो घंटे नहीं निकाल सकते हैं?"
पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माताओं के साथ हुए अपमान, भयानक भेदभाव और उन्हें विश्वास में लेने में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की विफलता का विरोध करने के लिए समारोह से दूर रहे। ऐसा संभव ही नहीं है कि समारोह के लिए राष्ट्रपति भवन द्वारा आवंटित समय के बारे में मंत्रालय को अंधेरे में रखा गया हो। उन्होंने पूछा कि निमंत्रण भेजते समय मंत्रालय ने ये बात क्यों नहीं बताई।
कई पुरस्कार विजेता खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। कुछ लोगों ने कहा कि अगर पुरस्कार विजेताओं को इसा बात का पहले से पता होता, तो वे अपने परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों की यात्रा और अन्य खर्चों पर अपना पैसा खर्च नहीं करते, जो पुरस्कार समारोह में होना चाहते थे।
नाराज पुरस्कार विजेताओं में से एक ने शिकायत करते हुए कहा कि जो भी उन्होंने कमाया था, उसका लगभग आधा हिस्सा सरकार द्वारा कर के रूप में वापस ले लिया गया है। उन्होंने कहा, "वे कम से कम सिर्फ इतना कर सकते थे कि हमारे साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करते और हमें अपने आत्म सम्मान को बनाए रखने की इजाजत देते।"
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