जामिया वीडियो: दावे कुछ भी हों, पर साबित हो गया कि पुलिस लाइब्रेरी में घुसी थी और छात्रों पर चलाई थीं लाठियां
जामिया की लाइब्रेरी में पुलिस घुसी थी और वहां मौजूद छात्रों पर लाठियां चलाई थीं। इस बात से दिल्ली पुलिस अभी तक इनकार करती रही, लेकिन जो वीडियो सामने आए हैं उनसे साबित होता है कि ऐसा हुआ था। अब पुलिस ने एसआईटी बनाकर जांच की बात की है।
जामिया में हुई घटना के पूरे दो महीने बाद वीडियो सामने आए हैं, जिनमें दिख रहा है कि कैसे दिल्ली पुलिस के जवान छात्रों पर लाइब्रेरी के अंदर लाठियां बरसा रहे हैं। वीडियो में साफ दिख रहा है कि 8-9 पुलिस वाले अर्धसैनिक बलों जैसी वर्दी पहने जामिया लाइब्रेरी में घुसते हैं और निहत्थे छात्रों को पीटना शुरु कर देते हैं।
इसके साथ ही दो और वीडियो सामने आ गए. एक वीडियो में दिखाया गया है कि एक व्यक्ति हाथ में पत्थर लिए हुए है और लाइब्रेरी में छिपा है। दूसरे वीडियो में दिख रहा है कि कुछ लोग, जिनमें से कुछ के हाथ में पत्थर हैं, एक कॉरिडोर में हैं। चौथा वीडियो सोमवार यानी आज सामने आया है जिसमें साफ दिख रहा है कि पुलिस वाले बेरहमी से छात्रों को पीट रहे हैं, जबकि छात्र उनसे रहम की अपील कर रहे हैं। पुलिस वाले लाइब्रेरी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हुए भी देखे जा सकते हैं।
कौन सा वीडियो पहले का है और कौन सा बाद का, यह सीक्वेंस ऑफ इवेंट साफ नहीं है और न ही यह साफ है कि ये वीडियो किसने लीक किए हैं। हालांकि पहला वीडियो जामिया कोआर्डिनेशन कमिटी ने जारी किया था, लेकिन पहले और चौथे वीडियो से दो तीन बाते साबित होती हैं-
- दिल्ली पुलिस का दावा था कि वह लाइब्रेरी में नहीं घुसी और न ही संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, लेकिन वीडियो से पुलिस का यह दावा झूठा साबित होता है
- पुलिस और सरकार के समर्थकों ने दूसरे और तीसरे वीडियो को यह कहते हुए शेयर किया कि पत्थर फेंकने वाले लाईब्रेरी में आ छिपे थे, लेकिन फिर भी पुलिस ने जो कार्रवाई की और जिस तरह लाठियां चलाई वह जस्टिफाई नहीं होता। भले ही वहां वह लोग छिपे थे जो बाहर पुलिस पर पत्थर फेंक रहे थे। लेकिन लाइब्रेरी में पुलिस ने जिस हिंसा का सहारा लिया वह गलत है
- और तीसरी बात कि छात्रों ने जामिया लाइब्रेरी में पुलिसिया जुल्म की जो कहानी सुनाई थी वह सच साबित हुई है
जामिया में पुलिस की कार्रवाई और हिंसा में 100 के करीब लोग जख्मी हुए थे। यूनिवर्सिटी ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ शिकायत भी दी थी, लेकिन कोई एफआईर दर्ज नहीं की गई। इससे साफ होता है कि दिल्ली पुलिस की कार्रवाई निष्पक्ष नहीं थी। अब तो कम से कम पुलिस को इस मामले में कार्रवाही करनी चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं को न दोहराया जाए
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