मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि: संगीत जगत का वो नायाब सितारा जिसकी मखमली आवाज  की खनक के आगे फीके पड़ जाते थे साज़

मोहम्मद रफ़ी इतने उदार और दयालु थे कि गाने के लिए कभी भी अपनी फीस का जिक्र नहीं करते थे। कई मौके तो ऐसे आए कि जब उन्होंने महज एक रुपया लेकर ही संगीतकारों के लिए गाने रिकॉर्ड किए थे। रफी की पुण्यतिथि पर जानिए उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य।

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नवजीवन डेस्क

मोहम्मद रफी, इंडियान प्ले बैक सिंगिंग का वो नायब सितारा, जिसकी मखमली आवाज का सुरूर लोगों के दिलों पर आज भी चढ़ा हुआ है। Hindi उर्दू, और बंगला से लेकर भोजपुरी भाषा में गाए रफी के गीत आज भी उतने ही शौक से सुने जाते हैं, जितने कि उस दौर में सुने जाते थे। उनकी आवाज में एक ऐसी खनक थी जिसके सामने साज़ भी फीके पड़ जाते थे।

31 जुलाई इतिहास की वो तारीख है जब संगीत जगत का ये रोशन चिराग हमेशा के लिए बुझ गया और उनकी आवाज की खनक हमेशा के लिए शांत हो गई।

आज मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि पर हम आपको उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्यो के बारे में बताएंगे।

24 दिसंबर को अमृतसर के कोटला में जन्में रफ़ी के परिवार का संगीत से दूर-दूर तक भी कोई वास्ता नहीं था।

बचपन के दिनों में रफ़ी अपना ज्यादातर वक्त अपने भाई की दुकान पर ही बिताते थे।

रफी साहब को गाने का शौक उनके मौहल्ले में आने वाले एक फकीर की आवाज सुनकर लगा।

संगीत की तरफ उनके रुझान को देखते हुए उनके भाई ने उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद के पास शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने के लिए भेजा।

रफ़ी ने अपने जीवन में पहला गाना 13 साल की उम्र में गया था। एक कंसर्ट में बिजली जाने की वजह से वहां शिरकत करने आए उस जमाने के फेमस सिंगर 'के एल सहगल' ने गाने से मन कर दिया था। उस कंसर्ट में रफी की आवाज़ से खुश होकर फेमस म्यूजिक डायरेक्टर श्याम सुंदर दास ने उन्हें अपने साथ काम करने का न्यौता दिया।

बोम्बे आने के बाद रफ़ी को सबसे पहले नौशाद ने अपनी एक फिल्म गाने का मौका दिया।

राग दरबारी में फिल्म बैजू बावरा का गीत भगवान मोहम्मद रफ़ी के गाए गीतों में आज तक का सबसे कठिन गीत माना जाता है।

रफ़ी साहब ने 18 अलग भाषाओं में साढ़े चार हज़ार से भी ज्यादा गाने गाए।

मोहम्मद रफ़ी इतने उदार और दयालु थे कि गाने के लिए कभी भी अपनी फीस का ज़िक्र नहीं करते थे। कई मौके तो ऐसे आए कि जब उन्होंने महज़ एक रुपया लेकर ही संगीतकारों के लिए गाने रिकॉर्ड किए थे।

रफ़ी को भारत सरकार की और से पद्म श्री और उनके गीत क्या हुआ तेरा वादा के लिए राष्ट्रिय पुरूस्कार से नवाज़ा गया था।

31 जुलाई 1980 को रफ़ी इस दुनिया को अलविदा कह गए।

संगीतकार नौशाद ने एक इंटरव्यू में बताया था कि अपने अंतिम दिनों में उन्होंने गाना छोड़ दिया था और काफी उदास रहने लग गए थे।

रफ़ी के निधन के बाद उस ज़माने के सुपर स्टार शम्मी कपूर ने फिल्मों में काम करने से मना कर दिया था। उन्होंने कहा था कि रफ़ी के साथ मेरी आवाज भी बंद हो गई है।

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