FIFA 2022: आखिर फुटबॉल विश्व कप पर क्यों छाया रहता है यूरोप, और क्या Qatar2022 लिखेगा नई इबारत
बीते आठ विश्व कप फाइनलिस्ट में से सात तो यूरोप से रहे ही हैं, अंतिम 16 सेमीफाइनलिस्ट में से 13 भी वहीं से आते हैं जो समझने के लिए काफी है कि लड़ाई अब कितनी टेढ़ी हो चुकी है।
कहना शायद गलत नहीं होगा कि फीफा विश्व कप दुनिया के फुटबॉल अभिजन का एक बड़ा ठिकाना रहा है। यहां से अब तक 21 खिताब निकले, लेकिन सारे के सारे महज आठ देशों ने बांट लिए। हर दिल अजीज ब्राजील के खाते में पांच पदक आए जबकि जर्मनी और इटली ने चार-चार, अर्जेंटीना, फ्रांस, उरुग्वे ने दो-दो और इंग्लैंड-स्पेन ने एक-एक पर संतोष किया।
कई अन्य टीमें करीब तक तो पहुंचीं लेकिन खिताब से दूर ही रहीं- हालांकि फुटबॉल के इतिहासकार मानते हैं कि 1974 में जोहान क्रूफ की टीम नीदरलैंड अब तक की संभवत: ‘सर्वश्रेष्ठ टीम’ रही, भले ही उसने कभी विश्व कप नहीं जीता। दुनिया पर धमक जमाने में ब्राजील, अर्जेंटीना और उरुग्वे भले ही समय-समय पर अमेरिका के पाले में संतुलन झुकाते दिखे हों लेकिन हालिया दौर में ‘पृथ्वी का सबसे बड़ा शो’ एकध्रुवीय होने का खतरा उत्पन्न करता दिखाई दिया है।
हालांकि मौजूदा ‘कतर 2022’ के संदर्भ में कोई भी इस पर सवाल उठा सकता है कि कैसे? जबकि एशियाई टीमों द्वारा अपने वजन से ऊपर उठकर किए गए पंच इसने बार-बार झेले हों!
व्यापक परिदृश्य पर नजर डालें तो शायद तस्वीर ज्यादा साफ होकर सामने आएगी।
दो दशक पहले की ही तो बात है जब ‘सांबा बॉयज’ ने आखिरी बार ‘पांचवें खिताब’ के लिए हाथ साफ किया था जबकि दिएगो माराडोना ने आखिरी बार 36 साल पहले अर्जेंटीना के लिए इसे जीता था। कहना न होगा कि बीते आठ विश्व कप फाइनलिस्ट में से सात तो यूरोप से रहे ही हैं, अंतिम 16 सेमीफाइनलिस्ट में से 13 भी वहीं से आते हैं जो समझने के लिए काफी है कि लड़ाई अब कितनी टेढ़ी हो चुकी है।
कहने में कोई संदेह नहीं कि फुटबॉल का सबसे बड़ा शो कितनी तेजी से यूरोप केन्द्रित होता गया है। टीमों की भागीदारी और आक्रामक मार्केटिंग रणनीति के साथ एक तरह से मिनी विश्वकप जैसा बन चुकी यूरो चैम्पियनशिप ने ‘कोपा अमेरिका’ को एक गरीब चचेरे भाई और इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात कि ब्राजील और अर्जेंटीना के बीच घुड़दौड़ में तब्दील कर दिया है।
यहां 2018 में शुरू हुई यूएएफए नेशंस लीग की बात करना मौजूं होगा जहां शीर्ष यूरोपीय देशों के बीच बराबरी की प्रतिस्पर्धा देखी जा सकती है, जबकि बाकी देश लीग के ब्रेक वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय मैत्री खेल में टाइम पास कर रहे होते हैं। अपार धनबल ही था कि शीर्ष यूरोपीय फुटबॉल क्लबों का दबदबा इस स्तर तक पहुंच गया कि इनमें से 12 ने पिछले साल एक अलग यूरोपीय सुपर लीग (ईएसएल) बनाने की धमकी तक दे डाली, हालांकि फैन्स का दबाव काम आया और अंतत: इनमें सदबुद्धि आई और ऐसा हो न सका।
ग्रुप 12 के नौ हैवीवेट- मैनचेस्टर यूनाइटेड, लिवरपूल, मैनचेस्टर सिटी, चेल्सी, टोटेनहम हॉटस्पर, आर्सेनल, एसी मिलान और एटलेटिको मैड्रिड कार्टेल से बाहर हो गए, लेकिन रियल मैड्रिड, बार्सिलोना और जुवेंटस इसके सक्रिय सदस्य बने रहे। अब इस सब के पीछे नाराज प्रशंसकों में पैसा हड़पने की होड़ बताया जा रहा है और यह भी कि आने वाले वर्षों में इसका कोई नया रूप देखने को मिल सकता है।
यूईएफए चैम्पियंस लीग, दरअसल साल भर चलने वाला ऐसा अवसर है जिसमें यूरोप के धनिक क्लब भाग लेते हैं और यकीनन क्लब फुटबॉल की दुनिया में इसे सबसे ज्यादा पैसा बरसाने वाला माना जाता है। फीफा क्लब विश्वकप ट्राफी एक अंतर-महाद्वीपीय शो के तौर पर कुछ इस तरह उभर कर आया है जो यूरोपीय चैम्पियंस को उनके दक्षिण अमेरिकी समकक्षों के खिलाफ खड़ा कर देता है।
इसलिए अब इस अनुमान पर दिमाग लगाने का कोई कारण नहीं रह गया है कि उत्तर नई सहस्त्राब्दी यह यूरोपीय क्लबों का दूरगामी असर ही है जो आज विश्व कप की अर्थव्यवस्था को आकार दे रहा है। शीर्ष पांच यूरोपीय लीगों (इंग्लिश प्रीमियरशिप, ला लीगा, लीग 1, सीरी ए और बुंडेलिया) में उबर अमीरों की आमद के साथ-साथ प्लम प्रसारण डील्स ने लीग को एक ऐसी आर्थिक खुराक दे दी है जिसके बारे में 25 साल पहले तक सोचना भी अकल्पनीय था।
फोर्ब्स के अनुसार 2022-23 के लिए वैश्विक फुटबॉल में कमाई करने वाले शीर्ष दस पर नजर डालें तो पता चलता है कि सारे के सारे यूरोपीय मालिकों द्वारा नियोजित हैं। इसके अनुसार शीर्ष तीन कमाई करने वालों में से महानतम फुटबॉलर खिताब के उत्तराधिकारी काइलियन एम्बाप्पे (पेरिस सेंट जर्मन) सबसे महंगे हैं जिनकी नेट अनुमानित कमाई 128 लाख डॉलर है जिसमें से उन्हें क्लब से 110 लाख डॉलर मिलने हैं और 18 लाख डॉलर की उम्मीद नाइका, डीऑर, हुबलट, ओक्ले और पाणिनी जैसे उत्पादों से है जिनके वे ब्रांड अंबसेडर हैं।
2014 से फोर्ब्स रैंकिंग में शीर्ष दो स्थानों पर कब्जा जमाए रखने वाली मेस्सी-रोनाल्डो की जोड़ी अब क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर है। पीएसजी की राशि के साथ मेस्सी की कमाई का अनुमान 120 लाख डॉलर (65 लाख डॉलर वेतन और 55 लाख डॉलर ब्रांड एंडोर्समेंट) है जबकि देखना दिलचस्प होगा कि यूनाइटेड छोड़ने के बाद भी क्या रोनाल्डो 100 लाख डॉलर (40 लाख डॉलर वेतन और शेष ब्रांड प्रोमोशन से) का अपेक्षित लक्ष्य बरकरार रख पाते हैं।
नेमार (पीएसजी) 87 लाख डॉलर के साथ चौथे स्थान पर हैं और मो सालाह (लिवरपूल), एर्लिंग हैलैंड (मैनचेस्टर सिटी), रॉबर्ट लेवांडोवस्की (बर्सीलोना), ईडन हजार्ड (रियल मैड्रिड), इनिएस्ता और केविन डी ब्रुइन (मैन सिटी) का नम्बर इनके बाद आता है। अब सच में कोई आश्चर्य नहीं और इस बात के पर्याप्त प्रमाण भी हैं कि विश्व फुटबॉल अब यूरोप बनाम शेष का मामला बन चुका है और यह इस सिलसिला इसी रूप में जारी रहने की उम्मीद है।
एक स्वीडिश स्टडी ग्रुप के इस वर्ष मई में जारी निष्कर्षों की माने तो ब्राजील ने यूरोपीय लीगों में 1219 खिलाड़ी भेजे, हालांकि इनमें से 221 वास्तव में पुर्तगाली लीग के क्लबों में नियोजित हैं। दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता फ्रांस (178) रहा और 815 खिलाड़ियों के साथ अर्जेंटीना तीसरे स्थान पर है।
यह सब 1970 के दशक वाले चैम्पियन ब्राजीलियन परिदृश्य से बिलकुल अलग है जब पेले, टोस्टाओम रिवेलिनो या कार्लोस अलबर्टो के रूप में एक ऐसा काम्बिनेशन मौजूद था और जिसे सर्वश्रेष्ठ भी माना जाता था। पेले लंबे समय तक इसका हिस्सा थे। इटली के खिलाफ फाइनल में एक-एक गोल की गतिकी का बयान करते हुए हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा: “यह काफी मददगार था कि 1970 की उस 22 सदस्यीय टीम का हर सदस्य ब्राजील में खेला।” इनमें से पांच सैंटोस से थे, तीन बोटाफोगो और क्रूजिरो से, दो फ्लुमिनिज, कोरिंथियंस और पल्मीरास से और एक-एक फ्लेमिंगो, ग्रेमियो, साउ पाउलो, एटलेटिको और पोर्टुगुसा से था। लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है। और शायद ऐसा ही रहेगा।”
तो क्या इंग्लैंड के पूर्व स्ट्राइकर गैरी लाइनकर के उद्धरण की नई व्याख्या का वक्त आ गया है कि: “फुटबॉल एक आसान खेल है जिसमें 22 लोग 90 मिनट तक एक गेंद के पीछे भागते हैं लेकिन अंत में जीतते हमेशा यूरोपीय ही हैं।”
खैर, हम आगे देखेंगे!
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