अपने ही शहर हैदराबाद में गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं एक जमाने के दिग्गज भारतीय फुटबॉलर मोहम्मद हबीब

1970 में भारत की तरफ से खेलते हुए हबीब ने बैंकॉक में हुए एशियाई खेलों में भाग लिया था। उस टूर्नामेंट में भारत ने कांस्य पदक अपने नाम किया था। पिछले कुछ वर्षो से हबीब पार्किन्सन नामक बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन अपने खेल के दिनों को वे आज भी नहीं भूले हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

किसी जमाने में कोलकाता के मैदानों पर अपनी शानदार स्पोर्ट्स स्किल के दम पर डिफेंडरों के मन में खौफ पैदा करने वाले महान स्ट्राइकर मोहम्मद हबीब इन दिनों यहां एक गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। पार्किन्सन नामक बीमारी से पीड़ित हबीब आज भी हर दिन नमाज पढ़ने के लिए अपनी दोपहिया गाड़ी पर घर के पास स्थित मस्जिद में जाते हैं।

भारत के पेले बताए जाने वाले हबीब कोलकाता स्थित शीर्ष क्लब ईस्ट बंगाल, मोहन बागान और मोहम्मडन स्पोर्टिग से खेल चुके हैं। पुराने दिनों को याद करके वह अभी भी भावुक हो उठते हैं।

1970 में भारत की तरफ से खेलते हुए हबीब ने बैंकॉक में हुए एशियाई खेलों में भाग लिया था। उस टूर्नामेंट में भारत ने कांस्य पदक अपने नाम किया था। पिछले कुछ वर्षो से हबीब पार्किन्सन से पीड़ित हैं, लेकिन अपने खेल के दिनों को वे आज भी नहीं भूले हैं।

एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए हबीब ने कहा, "हमारा परिवार फुटबाल खिलाड़ियों का है। मेरे पापा एक शिक्षक और फुटबालर थे। उन्होंने हमारे स्कूल के दिनों से हमें फुटबाल सिखाई।"

उनके चार भाई मोहम्मद आजम, मोहम्मद मोइन, मोहम्मद सिद्दीक और मोहम्मद जाफर ने भी अपनी-अपनी टीम के लिए बेहतरीन फुटबाल खेली।


हबीब ने कहा, "फुटबाल हमारे लिए पैशन था। हमने अपना पूरा जीवन इस खेल को दे दिया। हमने कभी नहीं सोचा था कि हम इस स्थिति में आ जाएंगे। मैंने पूरी जिंदगी अल्लाह की बदौलत समृद्धि के साथ बिताई। हम जहां जाते हैं हमें सम्मान मिलता है।"

कोलकाता के प्रशंसक अभी भी 70 वर्षीय खिलाड़ी से प्यार करते हैं और जब भी वह शहर में जाते हैं तो खेल प्रशंसकों की भीड़ उनके हाथों को पकड़कर चूमती है। जानकी नगर कॉलोनी में स्थित उनके घर पर सभी ट्रॉफी और मेडल लगे हुए हैं जो उन्होंने जीते हैं। इसके अलावा, एक तस्वीर भी है जिसमें उन्हें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से पुरस्कार लेते हुए देखा जा सकता है। उन्हें यह पुरस्कार पिछले साल मिला।

1980 में अर्जुन अवॉर्ड जीतने वाले हबीब ने कहा, "फुटबाल हमारे लिए सबकुछ था। हमें हजारों दर्शकों के सामने खेलने में बहुत आनंद आता था।"

उन्होंने 1966 से 1983 तक कोलकाता में पेशेवर फुटबाल खेली। वह 10 नंबर की जर्सी पहनते थे। उन्होंने ईस्ट बंगाल के लिए सबसे अधिक समय तक खेला। 1977 में मोहन बागान ने ईडन गार्डन्स मैदान पर पेले के नेतृत्व में खेल रही कॉसमोस का सामना किया था।

हबीब ने कहा, "मैं वो मैच कैसे भूल सकता हूं। मुझे बड़े अंतर्राष्ट्रीय सितारों के साथ खेलकर बहुत अच्छा महसूस हुआ था।"


मैच में हबीब ने दूसरा गोल किया था और मुकाबला 2-2 से ड्रॉ रहा था। पेले भी उनके प्रदर्शन से प्रभावित हुए थे। हबीब ने कहा, "उन्होंने मुझे शुभकामनाएं दीं और गुड लक कहा। उस दिन बारिश हो रही थी इसलिए मैच ड्रॉ रहा।"

हबीब टाटा फुटबाल अकादमी (टीएफए) के मुख्य कोच भी रहे। हालांकि, उन्हें हैदराबाद में फुटबाल के नीचे जाने का गम है। इस शहर देश को कई बेहतरीन खिलाड़ी दिए हैं। उन्होंने आंध्र प्रदेश फुटबाल महासंघ में पिछले कुछ वर्षो से दो समूह के बीच जारी तकरार पर कहा, "मैं वहां नहीं जाता जहां मुझे सम्मान नहीं मिलता।" हालांकि, वह मानते हैं कि शहर अभी भी बेहतरीन फुटबाल खिलाड़ी निकाल सकता है।

हबीब ने कहा, "प्रतिभा अभी भी मौजूद है और उसे निखारने की जरूरत है, लेकिन ऐसा करने के लिए आपको रहीम साहब जैसे सच्चे लोगों की जरूरत होगी।"

वह महान फुटबाल कोच सैयद अब्दुल रहीम के बारे में बात कर रहे थे। रहीम को भारतीय फुटबाल का पितामह कहा जाता है। रहीम के बेटे सैयद शाहिद हकीम 1960 के रोम ओलम्पिक में भारत के लिए खेले थे।

(आईएएनएस इनपुट के साथ)

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