1920 में आधिकारिक रूप से भारत ने रखा था ओलंपिक में कदम, जानें 96 सालों में कब, क्या मिला
1984 के लॉस एंजेलिस, 1988 के सियोल ओलंपिक और 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भारत ने कोई पदक नहीं जीता जबकि 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस ने भारत के लिए टेनिस में कांस्य पदक जीता। यह नए युग की शुरुआत थी।
जापान की राजधानी टोक्यो में इस साल जुलाई-अगस्त में 29वें ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों का आयोजन होना है। 1896 में ग्रीस में आधुनिक ओलंपिक खेलों का आगाज हुआ था। भारत ने 1920 में पहली बार आधिकारिक तौर पर ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था। इस लिहाज से भारत इस साल अपने ओलंपिक अभियान के 100 साल पूरे कर रहा है।
1900 के पेरिस ओलंपिक में नार्मन पिचार्ड ने ब्रिटिश शासन वाले भारत के लिए पुरुषों की 200 मीटर तथा 200 मीटर बाधा दौड़ में रजत पदक जीता था। पिचार्ड ब्रिटिश शासन के नुमाइंदे थे। इसी कारण ओलंपिक इतिहासकार पिचार्ड के प्रदर्शन को भारत के पदकों में शामिल नहीं करते। हालांकि 1894 में गठित अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) पिचार्ड द्वारा जीते गए पदकों को भारत की झोली में मानता है।
1900 से 2016 तक भारत ने ओलंपिक में अब तक कुल 28 पदक जीते हैं। अगर इनमें से पिचार्ड के पदकों को निकाल दिया जाए तो इनकी कुल संख्या 26 हो जाएगी। इसमें 9 स्वर्ण (हॉकी में 8 और एक निशानेबाजी में अभिनव बिंद्रा) के अलावा पांच रजत और 12 कांस्य शामिल हैं। खेलों की बात की जाए तो भारत ने हॉकी में कुल 11 पदक जीते हैं जबकि निशानेबाजी में चार पदक जीते हैं। इसके अलावा भारत ने कुश्ती में पांच, बैडमिंटन और मुक्केबाजी में दो-दो तथा टेनिस और भारोत्तोलन में एक-एक पदक जीता है।
1900 ओलंपिक में सिर्फ पिचार्ड ने 'भारत' का प्रतिनिधित्व किया था। 1920 ओलंपिक में भारत ने 6 खिलाड़ियों का दल भेजा था जबकि 1924 में यह संख्या 15 हो गई। इसी तरह 1928 में 21, 1932 में 30, 1936 में 27, 1948 में 79, 1952 में 64, 1956 में 59, 1960 में 45, 1964 में 53, 1968 में 25, 1972 में 41, 1976 में 20, 1980 में 76, 1984 में 48, 1988 में 46, 1992 में 53, 1996 में 49, 2000 में 65, 2004 में 73, 2008 में 56, 2012 में 83 और 2016 में 118 खिलाड़ियों ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
सिलसिलेवार तरीके से बात करें तो पेरिस के बाद भारत ने सेंट लुइस (1904), लंदन (1908) और स्टॉकहोम (1912) ओलंपिक में हिस्सा नहीं ले सका। इसके बाद सर दोराबजी टाटा और बॉम्बे के गवर्नर जॉर्ज लॉयड ने भारत को आईओसी की सदस्यता दिलाई और फिर भारत ने 1920 के एंटवर्प (बेल्जियम) ओलंपिक में पहली बार अपनी आधिकारिक टीम भेजी। इस टीम में पुर्मा बनर्जी (100 मीटर, 400 मीटर), फादेप्पा चांगुले (10 हजार मीटर और मैराथन) तथा सदाशिव दातार (मैराथन) के अलावा कुमार नावाले (कुश्ती) और रणधीर सिंदेश (कुश्ती) ने भारत का प्रतिनिधित्व किया।
इस साल भारत को कोई पदक नहीं मिला। पुर्मा को 100 मीटर में पांचवां, 400 मीटर में चौथा स्थान मिला जबकि सदाशिव और फेदप्पा अपने इवेंट्स में क्वालीफाई नहीं कर सके। कुश्ती में कुमार को पहले राउंड में हार मिली जबकि रणधीर कांस्य पदक के मुकाबले में हारे। यह अच्छी शुरुआत थी लेकिन इसके बाद भारतीय ओलंपिक अभियान अपने चरम को प्राप्त नहीं कर सका और अगले 96 सालों में सिर्फ 26 पदक अपनी झोली में डाल सका।
1924 में पेरिस में एक बार फिर ओलंपिक का आयोजन हुआ और इस साल भी भारत की झोली खाली रही। भारत को अपना पहला पदक एम्सटर्डम ओलंपिक (1928) में मिला और वह भी सीधे स्वर्ण। हॉकी टीम ने भारत को पदक दिलाया। इसके बाद भारतीय हॉकी टीम ने लॉस एंजेलिस (1932), बर्लिन (1936), लंदन (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबर्न (1956) ओलंपिक खेलों में लगातार स्वर्ण पदक जीते।
1952 ओलंपिक भारत के लिए खास है क्योंकि इस साल कासाबा दादासाहेब जाधव ने भारत के लिए पहला व्यक्तिगत मेडल जीता। जाधव ने कुश्ती के फ्रीस्टाइल 57 किग्रा वर्ग में कांस्य जीता था।
भारतीय हॉकी टीम हालांकि 1960 के रोम ओलंपिक में अपने खिताब की रक्षा नहीं कर पाई और फाइनल में पाकिस्तान से 0-1 से हारकर रजत से संतोष करने पर मजबूर हुई। टोक्यो (1964) में भारत ने एक बार फिर वापसी की और अपने खिताब की रक्षा करते हुए स्वर्ण जीता। हालांकि 1968 के मैक्सिको सिटी और 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में भारत को सिर्फ कांस्य पदक मिला।
1976 के मांट्रियल ओलंपिक में भारत की झोली खाली रही लेकिन 1980 के मास्को ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने फिर से स्वर्ण पर निशाना साधा। यहां से भारतीय हॉकी का स्वर्ण काल खत्म हो गया। इसके बाद भारत को हॉकी में अब तक कोई पदक नहीं मिला है।
1984 के लॉस एंजेलिस, 1988 के सियोल ओलंपिक और 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भारत ने कोई पदक नहीं जीता जबकि 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस ने भारत के लिए टेनिस में कांस्य पदक जीता। यह नए युग की शुरुआत थी।
इसके बाद सिडनी में 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने भारोत्तोलन में कांस्य जीतकर नया अध्याय लिखा। भारत ने अब तक हॉकी के अलावा कुश्ती (जाधव), टेनिस (पेस) और भारोत्तोलन (मल्लेश्वरी) में व्यक्तिगत पदक जीते थे। ये सभी कांस्य थे लेकिन 2004 के एथेंस ओलंपिक में कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर ने निशानेबाजी में रजत जीतकर नए युग की शुरुआत की।
बीजिंग ओलंपिक भारत के लिए सबसे सफल रहा क्योंकि इसमें अभिनव बिंद्रा ने भारत के लिए पहला और अब तक का एकमात्र व्यक्तिगत स्वर्ण जीता। बिंद्रा ने यह पदक निशानेबाजी में हासिल किया। इसके अलावा सुशील कुमार ने कुश्ती और विजेंदर सिंह ने मुक्केबाजी में कांस्य जीते। मुक्केबाजी में भारत का खाता पहली बार खुला।
लंदन में भारत ने अपने किसी एक ओलंपिक में सबसे अधिक पदक जीते। भारत ने इस साल दो रजत (कुश्ती में सुशील और निशानेबाजी में विजय कुमार) और चार कांस्य (मुक्केबाजी में एमसी मैरीकोम, बैडमिंटन में सायना नेहवाल, कुश्ती में योगेश्वर दत्त और निशानेबाजी में गगन नारंग) जीते।
रियो ओलंपिक (2016) में भारत ने एक रजत (बैडमिंटन में पीवी सिंधु) और एक कांस्य (कुश्ती में साक्षी मलिक) जीता। अब भारतीय खिलाड़ी 100वें साल के जश्न को शानदार तरीके से मनाना चाहेंगे। भारत की 100 से अधिक खिलाड़ियों का दल टोक्यो भेजने की तैयारी है। इनमें से भारत को बैडमिंटन, कुश्ती, मुक्केबाजी और निशानेबाजी में पदक मिल सकते हैं।
(आईएएनएस इनपुट के साथ)
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