सिनेमा और राजनीति के कमल हासन
एक वक्त में कमल हासन हिन्दी सिनेमा के दर्शकों की जरूरत बन गए थे। वह जब भी परदे पर आए, लोगों को भरोसा था कि वे चालू किस्म की चीज नहीं करेंगे।
कमल हासन पिछले कुछ महीनों से लगातार विवादों में घिरे रहे हैं, कभी अपनी राजनीतिक टिप्पणियों की वजह से तो कभी अपने पेशेवर चुनावों की वजह से। सोशल मीडिया पर अपनी गतिविधियों की वजह से भी वे निशाने पर रहते हैं। हाल ही में हिन्दी रियलिटी शो बिग बॉस की तर्ज पर चल रहे बिग बॉस तमिल का संचालन करने को लेकर उनकी काफी आलोचना हुई।
राजनीतिक पार्टी द्रमुक के मुखपत्र मुरासोली के 75 साल पूरे होने पर हुए आयोजन में भाषण देते हुए कमल हासन ने कहा कि वे राजनीति में शामिल हो सकते हैं। उन्होंने वहां मौजूद लोगों को यह भी बताया कि 1983 में करूणानिधि ने एक टेलीग्राम के जरिये उन्हें राजनीति से जुड़ने के लिए आमंत्रित किया था। इस समारोह में तमिल के सुपरस्टार रजनीकांत श्रोताओं के साथ बैठे थे, जबकि कमल हासन मंच पर थे। रजनीकांत के भी राजनीति में शामिल होने को लेकर कयास जोरों पर हैं। यह दोनों दक्षिण भारत के ऐसे अभिनेता हैं, जिन्हें लेकर हिन्दी जगत में उत्साह बना रहता है।
दक्षिण के कई फिल्मी सितारों ने हिन्दी सिनेमा में अपनी किस्मत आजमाई है, लेकिन बहुत ज्यादा नाम नहीं हैं जो कोई खास पहचान बना पाए। ऐसा बहुत कम बार हुआ, जब हमें उनकी फिल्मों का इंतजार रहता। उनकी कमी कभी-कभार ही हमें महसूस हुई।
लेकिन एक वक्त में कमल हासन हिन्दी सिनेमा के दर्शकों की जरूरत बन गए थे। वह जब भी परदे पर आए, लोगों को भरोसा था कि वे चालू किस्म की चीज नहीं करेंगे।
फिल्म एक दूजे के लिए में पहली बार कमल हासन हिंदी सिनेमा के दर्शकों के सामने आए। 1981 में आई यह फिल्म तेलुगू फिल्म मारो चरित्र की रीमेक थी। दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित के. बालचंदर ने दोनों ही भाषाओं में इस फिल्म का निर्देशन किया था। एक दूजे के लिए की कहानी एक ऐसे प्रेमी जोड़े के बारे में थी, जो एक-दूसरे की भाषा नहीं समझते थे, लेकिन प्यार की भाषा समझते थे। फिल्म का अंत काफी दुखद था। कमल हासन और उनकी प्रेमिका का किरदार निभा रही रति अग्निहोत्री फिल्म के आखिर में इस उम्मीद में खुदकुशी कर लेते हैं कि जीते-जी तो एक-दूसरे के नहीं हो पाए, शायद मरने के बाद हो पाएं।
इस फिल्म के पहले और बाद में बनी कई फिल्मों में इसी तरह के त्रासद अंत को दिखाया गया है, लेकिन यह त्रासदी कमल हासन की शख्सियत का हिस्सा बनती चली गई, और हम कमल हासन को हमेशा एक हारे हुए प्रेमी की तरह देखने के आदी होते चले गए।
1983 में कमल हासन की एक और फिल्म सदमा आई। यह भी एक तमिल फिल्म का रीमेक थी। हिन्दी सिनेमा में एक नया एहसास जुड़ रहा था, जिसकी याद हमारे भीतर एक टीस बनकर जिंदा है। कमल हासन के चेहरे पर आते-जाते भाव हमें बेचैन कर रहे थे। श्रीदेवी का चुलबुलापन भी हमारे लिए नया था, एक पागल लड़की को संभालता सोमू भी अनदेखा था।
त्रासदी कमल हासन का पीछा नहीं छोड़ रही थी, और प्यार में हार कमल हासन की किस्मत बन चुकी थी। 1985 में आई फिल्म सागर ने भी कमल हासन की इस छवि को मज़बूत किया। वे हमारी सहानुभूति के हकदार थे, और इसके जरिए कमल हमारे नायक बनते चले गए।
क्या सदमा के अंतिम दृश्य को कभी भूला जा सकता है, जिसमें पागलपन से मुक्त हो चुकी श्रीदेवी अपने सोमु को पहचानती तक नहीं। जिसे आप प्यार करते हैं, वो आपको पहचान भी नहीं रहा। जिसे आप अब तक संभालते रहे, उसे आपकी कोई परवाह नहीं।
1985 में गिरफ्तार आई। अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और कमल हासन एक साथ थे। फिल्म की कहानी तो बहुत चालू थी, लेकिन इन नायकों का दर्शकों पर असर बहुत ज्यादा था। कमल हासन सुपर स्टार हो चुके थे।
एक असामान्य कहानी पर बनी फिल्म एक नई पहेली में कमल हासन, राजकुमार और हेमा मालिनी जैसे बड़े सितारों के साथ दिखे। राजकुमार फिल्म में कमल हासन के पिता हैं, जो हेमा मालिनी की बेटी पद्मिनी कोल्हापुरी से प्यार करने लगते हैं और कमल हासन खुद हेमा मालिनी से। इसका निर्देशन भी के. बालचंदर ने किया था।
कमल हासन ने हमेशा अलग किस्म के किरदार निभाए और इसे चुनौती की तरह लिया। अप्पू राजा में नाटे कद के शख्स की भूमिका करना एक जोखिम भरी बात थी। इस फिल्म ने कमल हासन को एक बड़ी क्षमता वाला अभिनेता साबित किया।
कमल हासन जितने बड़े सुपर स्टार हो चुके थे, परदे पर उनके निभाए किरदार भी उतने ही बड़े होते जा रहे थे। कहना चाहिए कि अगर किसी फिल्म में वे होते थे, तो सिर्फ वे ही होते थे। हिन्दुस्तानी और हे राम ऐसी दो फिल्में हैं, जो कमल हासन की महानायक वाली छवि को पुख्ता करती हैं।
फिल्म हिन्दुस्तानी 1996 में आई थी। वैसे आज भी आती तो उतनी ही ताजा होती जितनी उस वक्त थी। भ्रष्टाचार से लड़ता और उसे अपने तरीके से खत्म करता हुआ एक बूढ़ा आदमी फिल्म का नायक था। फिल्म में कमल हासन दोहरी भूमिका में थे। इस बूढ़े का एक बेटा भी था, जो अपनी तरक्की के लिए किसी भी हद तक भ्रष्ट हो सकता था। आखिर में उस बूढ़े को अपने बेटे तक को मारना पड़ा।
कमल हासन के यही सरोकार थे, जिसने उन्हें हे राम जैसी फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया। कमल हासन के लिए यह फिल्म बहुत अहमियत रखती थी। वे इसके निर्माता-निर्देशक और अभिनेता तीनों थे। आजादी के पहले की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म साकेत राम नाम के एक ऐसे शख्स के बारे में थी जिसकी जिंदगी में ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिसने उसके सोचने के तरीके को ही बदल दिया। हे राम आजादी की लड़ाई में शामिल साकेत राम के एक सेकुलर से सांप्रदायिक और फिर एक उदार शख्स बन जाने की कहानी है।
भले ही हे राम ने करोड़ों न कमाए हों, लेकिन अगर आप इस फिल्म को देखेंगे, तो उसके असर को जरूर महसूस करेंगे और एक नायक के तौर पर कमल हासन की क्षमता से वाकिफ भी होंगे।
सिनेमा के जरिये कमल हासन एक खास तरह की संवेदना और आधुनिकता को तो सामने लाते रहे ही हैं, उनकी राजनीतिक समझ और चेतना के कई आयाम भी उनकी फिल्मों में नजर आते हैं।
एक ऐसे समय में जब ज्यादातर फिल्मी कलाकार अपनी राजनीतिक पक्षधरता को छिपाने में ही अपनी भलाई समझते हैं और सत्ता के साथ एक सुविधाजनक रिश्ता बनाए रखते हैं, उनके बीच रहते हुए अपनी राजनीतिक सोच को बार-बार खुलेआम जाहिर करना कमल हासन के व्यक्तित्व का एक ऐसा पहलू है जिसकी निशानदेही उनकी फिल्मों में भी की जा सकती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कमल हासन कभी गलत नहीं हो सकते और यह भी नहीं कि उनमें कमियां नहीं हैं।
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Published: 11 Aug 2017, 4:51 PM