यूपी चुनावः अमित शाह ने जाटों पर डाला डोरा तो जयंत चौधरी ने मुजफ्फरनगर में डाला डेरा, रोचक हुई जाटलैंड में लड़ाई
उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले दौर में मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर समेत 11 जिलों की 58 सीट पर चुनाव है, जहां जाटों की अच्छी संख्या है। माना जा रहा है कि जाटों की नाराजगी प्रदेश में बीजेपी की शुरुआत खराब कर सकती है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों को लेकर सियासत काफी तेज हो गई है। जाटों की भारी नाराजगी को देखते हुए बीजेपी उन्हें मनाने की कवायद में जुट गई है। बीजेपी में शामिल जाट नेताओं को जाटों को साधने की कवायद में लगा दिया गया है। जाटों को मनाने की कोशिशों का आलम यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खुद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 250 से ज्यादा जाट समाज के लोगों को बुलाकर उनसे बातचीत की है। इसके अलावा अमित शाह ने खुले तौर पर आरएलडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी को न्योता देकर जाटों को रिझाने की कोशिश की है। बीजेपी ने तमाम बड़े जाट नेताओं को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सक्रिय कर दिया है।
इस हलचल को देखते हुए आरएलडी के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने भी मुजफ्फरनगर में डेरा डाल दिया है। जयंत चौधरी ने आज तीन विधानसभा क्षेत्रों में कार्यक्रम किए हैं और शुक्रवार को वे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ मुजफ्फरनगर में ही एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले दौर में 11 जिलों की 58 विधानसभा सीट पर चुनाव है।यह चुनाव मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर जनपद में 10 फरवरी को होना है। इन सभी सीटों पर जाटों की अच्छी संख्या है। जाट किसान आंदोलन के बाद से बीजेपी से नाराज चल रहे हैं। बीजेपी यह बात समझती है कि जाटों की नाराज़गी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनकी शुरुआत खराब कर सकती है।
जाटों की नाराजगी बीजेपी के लिए और अधिक परेशानी का सबब इसलिए बन गई है क्योंकि जाटों का झुकाव राष्ट्रीय लोकदल की तरफ हो गया है और आरएलडी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के साथ सीधे मुकाबले में मानी जा रही समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। यह गठबंधन पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 50 से अधिक विधानसभा सीट बीजेपी से छीनने की हालत बना चुका है।
जाट पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग 45 सीटों पर अच्छी संख्या में है। यह आबादी अनुमानित तौर 17 फीसद कही जाती है। सबसे आश्चर्यजनक यह है कि मुसलमान यहां 29 फीसद हैं और दंगे के दंश को भुलाकर सपा और रालोद के गठबंधन के साथ यह संख्या 48 फीसद हो जाती है। इसके अलावा प्रत्यशियों की जातियों के गणित ने तो पूरा खेल ही पलट दिया है।
यही वजह है कि बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के घर पर जाट नेताओं के साथ बातचीत में गृह मंत्री अमित शाह ने जाटों को अपने पाले में लाने के लिए और सपा-रालोद के प्रभाव को तोड़ने के लिए अपने तरकश से कई तीर छोड़े। इस बैठक से लौट कर आए एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वहां यह भी कहा गया कि अगर जाटों ने बीजेपी को वोट नहीं दिया तो समाजवादी पार्टी की सरकार बन जाएगी और आजम खान जेल से बाहर आ जाएगा।
बीजेपी के इस वक्तव्य के पीछे की सच्चाई आंकड़ों में छिपी है। सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक 2014 में 77% जाटों ने बीजेपी को वोट दिया, 2017 के विधानसभा चुनाव में यह 39% रह गया तो 2019 के लोकसभा चुनाव में यह 91 फीसद हो गया। इसमे चौंकाने वाली बात यह है कि रालोद के अध्यक्ष दिवंगत चौधरी अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी दोनों लोकसभा चुनाव हार गए। एक और चौंकाने वाली बात यह है कि सिर्फ 4% जाटों ने 2012 के उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी को मतदान किया था। 2013 दंगे के बाद यह स्थिति बदल गई।
जाटों को लुभाने की इस कवायद के बीच रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने भी मुजफ्फरनगर में डेरा डाल दिया है। गुरुवार को उन्होंने खतौली, बुढाना और चरथावल विधानसभा में चुनावी कार्यक्रम किए और वो मुजफ्फरनगर में ही रुककर कार्यकर्ताओ से मुलाकात कर रहे हैं। इस दौरान खतौली में जयंत चौधरी ने अमित शाह के न्यौते पर पलटवार करते हुए बीजेपी पर सीधा निशाना साधा।
उन्होंने कहा कि उन्हें न्योता देने की बजाय उन 700 किसानों के परिजनों को बुलाना चाहिए था जिनकी किसान आंदोलन के दौरान शहादत हुई है। बीजेपी किसान विरोधी पार्टी है। किसान आंदोलन के दौरान उन्हें किसानों से कोई हमदर्दी नहीं हुई। गन्ना भुगतान अब तक बकाया हैं।आवारा जानवरों से किसानों की फसल बर्बाद हो रही है। बिजली कई गुना महंगी है। किसानों के युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। बीजेपी बंटवारे की सियासत करके किसानों को जाति और धर्म में बांटना चाहती है। जयंत चौधरी ने कहा कि यह वही लोग हैं जिन्होंने किसानों पर लाठी और पानी की बौछार की है, उन्हें देशद्रोही कहा है, गालियां दी है। चुनाव में हार नजदीक देखकर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। किसान सब समझता है। वो इनकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आने वाला नहीं है।
वैसे जमीनी स्तर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों और मुसलमानों के गठजोड़ को तोड़ने के लिए तमाम हथकंडा अपनाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर मुजफ्फरनगर दंगे से जुड़ी मनगढ़ंत और झूठी साम्रगी परोसी जा रही है। मुजफ्फरनगर के युवा इनाम अली के मुताबिक उसे एक व्हाटसएप ग्रुप में मुज्जफरनगर दंगे से जुड़ी 3 मिनट की एक वीडियो क्लिप मिली जो पूरी तरह नफरत से भरी हुई थी और जाटों को उकसा सकती थी। इसमें 2013 दंगे में मुसलमानों को दोषी ठहराते हुए जाटों की भावनाओं को भड़काने की कोशिश की गई थी। मेरे जाट दोस्तों ने मुझसे इस पर बात करने की कोशिश की, मगर मैंने विषय बदल दिया। इसी तरह की वीडियो क्लिप वायरल होने के बाद मुजफ्फरनगर में 2013 में दंगा भड़क गया था। अब तो डिजिटल तकनीक के उन्नत होने के कारण हालात और भी अधिक खराब हो सकते हैं।
राजपुर गांव के शिक्षक और लेखक मुकेश काकरान इस पूरे मुद्दे पर कहते हैं कि इन सब प्रयासों का बहुत अधिक असर नहीं पड़ने वाला है। दंगे के कितने भी गड़े मुर्दे उखाड़े जाएं मगर समाज जानता है कि दंगे राजनीति से प्रेरित थे और दोनों ही समाज इनसे प्रभावित हुए। उस तकलीफ को सभी ने महसूस किया। आज जो राजनीतिक दल दंगे की याद दिलाकर समाज के फिर से बंटवारे को अपना लाभ मान रहे हैं उनका दांव उल्टा भी पड़ सकता है। समाज चिढ़कर उनके खिलाफ भी वोट कर सकता है क्योंकि कोई भी समाज अब झगड़ा नहीं चाहता।
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