देश की चुनाव प्रणाली की समीक्षा का यह सही वक्त: एस वाई कुरैशी
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा है कि भारत में चुनाव प्रणाली की समीक्षा करने का यह सही समय है। उन्होंने कहा कि इस प्रणाली में खामियां हैं।
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा है कि भारत में चुनाव प्रणाली की समीक्षा करने का यह सही समय है। उन्होंने कहा कि इस प्रणाली में खामियां हैं। उन्होंने कहा, ‘जिसे सबसे ज्यादा मत मिलेंगे, वह विजयी होगा वाली प्रणाली का मैं कुछ साल पहले तक बचाव करता था, जो जांच के समय कसौटी पर खरी उतरती थी। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद मुझे अपनी राय बदलनी पड़ी, क्योंकि 2104 में शून्य सीट जीतने वाली पार्टी को तीसरा सबसे बड़ा वोट-शेयर मिला था। यह पार्टी बहुजन समाज पार्टी है।’ कुरैशी का कहना है कि भारत में जारी ‘फर्स्ट-पास्ट-द पोस्ट’ (एफपीटीपी) चुनाव प्रणाली की समीक्षा की जानी चाहिए।
पूर्व चुनाव आयुक्त ने आगे कहा, ‘उत्तर प्रदेश के लगभग 20 प्रतिशत मतदाताओं ने बसपा को वोट दिया, लेकिन उनका एक सांसद भी नहीं चुना गया। यह पार्टी के लिए तो गलत हुआ ही, 20 फीसदी मतदाताओं के लिए भी अनुचित था। उन्हें एक तरह से धोखा महसूस हुआ। यह तथ्य निश्चित रूप से प्रणाली में दोष को उजागर करता है।
इस प्रणाली पर ब्रिटेन में भी बहस चल रही है, जहां से भारत ने इसे अपनाया था। पूर्व सीईसी ने कहा कि ब्रिटिश संसद में फिर से एफपीटीपी पर चर्चा की जा रही है। भारत में भी एक संसदीय स्थायी समिति पहले से ही इस मुद्दे की जांच कर रही है और सभी पार्टियों को अपने विचार लिख रही है। इसलिए मुझे लगता है कि एक वैकल्पिक व्यवस्था पर विचार करने का समय आ गया है।
हमारे पास दूसरे कौन से विकल्प हैं? यह पूछे जाने पर कुरैशी ने कहा, ‘मेरा सुझाव है कि हम जर्मन मॉडल की एक मिश्रित प्रणाली का कुछ बदलावों के साथ अनुसरण कर सकते हैं। जर्मनी में हर मतदाता दो वोट का प्रयोग करता है। एक अपने निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवार के लिए और दूसरा पार्टी के लिए। इसलिए अगर किसी पार्टी को 15 प्रतिशत मत मिलते हैं, तो उस प्रतिशत को पूरी संसद में समायोजित किया जाता है। लेकिन यह थोड़ा जटिल है। मैं कहता हूं कि नेपाल मॉडल सरल है। कुछ सीटें सीधे चुनाव से भरी जाती हैं और कुछ दलों को दे दी जाती हैं।
नेपाल में मतदाताओं को एफपीटीपी और आनुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए दो अलग-अलग मतपत्र दिए जाते हैं। नेपाल की दो सदनों वाली संसद के निचले सदन में 275 सदस्यों में से 165 सदस्य एफपीटीपी प्रणाली के माध्यम से चुने जाते हैं और 110 आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से चुने जाते हैं।
कुरैशी ने बताया, ‘जर्मन प्रणाली के विपरीत आनुपातिक प्रतिनिधित्व के बाद सीटों के परिणामों को उन सीटों के अनुपात में आवंटित किया जाता है, संपूर्ण 275 सीटों के अनुपात में नहीं। इसलिए एक चुनाव का परिणाम दूसरे चुनाव पर कम या कोई प्रभाव नहीं डालता है।
कुरैशी ने 'राइट टू रिकॉल' के विचार को भी खारिज कर दिया, जिसमें मतदाता काम नहीं करने या भ्रष्टाचार के कारण निर्वाचित उम्मीदवार को वापस बुला सकता हैं। उन्होंने कहा, ‘निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा इस अधिकार के हेरफेर की संभावना बहुत अधिक है। कोई भी लाखों फर्जी हस्ताक्षरों के साथ आ सकता है। उनकी प्रमाणिकता जांचने के लिए लाखों हस्ताक्षरों को सत्यापित कराने का कोई रास्ता नहीं है। इसके अलावा हम इतने सारे निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव के बाद फिर चुनाव नहीं करा सकते। हालांकि, पूर्व निर्वाचन आयुक्त ने कहा कि 'राइट टू रिजेक्ट' अधिकार को लागू किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ‘कोई भी नहीं (नोटा)’ का विकल्प 'राइट टू रिजेक्ट' की ओर एक कदम है।
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Published: 22 Sep 2017, 7:15 PM