बीएसपी-एसपी की दोस्ती टूटने से उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण बदले, इस दल को होगा बड़ा फायदा
बीएसपी ने लोकसभा चुनाव परिणाम की समीक्षा के बाद उपचुनाव अकेले लड़ने की ठानी है। इससे प्रदेश के राजनीतिक हलकों में उथल-पुथल की संभावना बढ़ती दिख रही है।
बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और समाजवादी पार्टी (एसपी) की दोस्ती टूटने के बाद से उत्तर प्रदेश की सियासत के समीकरण बदल गए हैं। यह दोस्ती नहीं टूटती तो 11 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव की तस्वीर कुछ और होती। बीएसपी ने लोकसभा चुनाव परिणाम की समीक्षा के बाद उपचुनाव अकेले लड़ने की ठानी है। इससे प्रदेश के राजनीतिक हलकों में उथल-पुथल की संभावना बढ़ती दिख रही है।
35 वर्षो के इतिहास पर गौर करें तो बीएसपी केवल वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में ही केवल अपने दम पर सरकार बना पाई थी। इसके बाद से बीएसपी का ग्राफ प्रदेश में लगातार गिरता जा रहा है। वर्ष 2009 में पार्टी के 20 सांसद जरूर जीते थे। लेकिन जनाधार घटकर 27़ 42 प्रतिशत ही रह गया था। वर्ष 2014 में पार्टी शून्य पर आ गई थी। इसके बाद से बीएसपी के बड़े दिग्गज नेता पैसे का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ गए।
वर्ष 2017 में बीएसपी ने अकेले दम पर विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन जिन 11 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, वहां बीएसपी खास कुछ नहीं कर पाई थी। हालांकि वर्ष 2017 में एसपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव मिलकर लड़ा था।
कानपुर की गोविंद नगर विधानसभा सीट पर वर्ष 2017 में सत्यदेव पचौरी 1 लाख 12 हजार वोटों से विजयी हुए थे। एसपी समर्थित कांग्रेस प्रत्याशी अंबुज शुक्ला 40 हजार 520 वोट लाकर दूसरे नंबर पर रहे थे। उन्हें 22़ 02 प्रतिशत वोट मिले थे। बीएसपी प्रत्याशी निर्मल तिवारी 28 हजार 795 वोट पाकर तीसरे नंबर पर थे। अब यहां के विधायक सांसद बन गए हैं।
लखनऊ कैंट से बीजेपी की वर्तमान इलाहाबाद की सांसद रीता जोशी वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 95 हजार 402 वोट लाकर चुनाव जीती थीं। एसपी की अपर्णा यादव को 61 हजार 606 वोट मिले थे। बीएसपी प्रत्याशी योगेश दीक्षित 26 हजार 36 वोट मिले थे और 14 प्रतिशत वोट पाकर वो तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे।
टूंडला विधानसभा 2017 के चुनाव में एस.पी. सिंह बघेल 1 लाख 18 हजार 584 वोट लाकर चुनाव जीते थे। यहां पर बीएसपी के राकेश बाबू 62 हजार 514 वोट लाकर दूसरे नंबर पर रहे, उन्हें 25.81 प्रतिशत वोट मिले, जबकि समाजवादी पार्टी के शिव सिंह चाक को 54 हजार 888 वोट मिले। यह सुरक्षित विधानसभा सीट है।
चित्रकूट के मानिकपुर विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 2017 के चुनाव में आर.के. पटेल 84 हजार 988 मत से जीते थे। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी संपत पाल को 40 हजार 524 वोट मिला था, जबकि बीएसपी प्रत्याशी चंद्रभान सिंह पटेल 32 हजार 498 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे।
इसी तरह बहराइच की बलहा सीट से बीजेपी को जीत मिली थी, जबकि सुरक्षित सीट होंने के बावजूद बीएसपी यहां 28.91 प्रतिशत मत पाकर दूसरे नंबर पर थी। जबकि एसपी को 14.75 प्रतिशत वोट पाकर तीसरे स्थान पर रही। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गंगोह विधानसभा सीट बीजेपी ने जीती थी। दूसरे स्थान पर कांग्रेस रही जिसे 23.95 मत मिला था। इस सीट पर एसपी और बीएसपी के बीच कांटे की टक्कर रही। सपा यहां पर 18.42 प्रतिशत वोट पाकर तीसरे स्थान पर थी। जबकि बसपा 17.44 प्रतिशत वोट मिले और वे चौथे नंबर पर थी।
वर्ष 2017 के चुनाव के मुताबिक, 11 में से सात सीटों पर बीजेपी को मिले वोट एसपी-बीएसपी के वोट से ज्यादा हैं। इन 11 सीटों में से बीजेपी के पास 9 सीटें थीं, जबकि एक-एक सीट एसपी और बीएसपी के खाते में गई थी। एसपी और बीएसपी की जीती हुई सीट को छोड़ दिया जाए तो जैदपुर और प्रतापगढ़ सीट पर ही गठबंधन के कुल वोट बीजेपी से अधिक हैं।
वर्ष 2017 में मायावती ने मुस्लिम दलित एकता का गठजोड़ बनाने का प्रयास किया था, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। एसपी के गठबंधन के करने पर बीएसपी को जीरो से 10 पर जरूर पहुंच गई।
मायावती को एसपी के साथ गठबंधन करने पर यादवों के वोट उनके पाले में गिरे थे। उदाहरण के तौर पर गाजीपुर, अंबेडकर नगर, लालगंज, घोसी, जौनपुर, श्रावस्ती सीटों में यादव अगर बीएसपी को वोट ना करते इनके प्रत्याशी जीतना मुश्किल था। जौनपुर और लालगंज में यादव की बहुलता है। यहां से भी बीएसपी को जीत मिली है। अकेले जौनपुर में लगभग 15 प्रतिशत यादव मतदाता हैं। यहां से भी श्याम सिंह यादव चुनाव जीते हैं। अगर यहां पर यादव बीएसपी को वोट ना देते तो लगभग बीजेपी की ही जीत हो सकती थी।
विश्लेषकों की मानें तो एसपी-बीएसपी के अलग-अलग लड़ने से गैर भाजपाई वोटरों में भ्रम पैदा होगा, जिसका फायदा बीजेपी को मिलेगा। दूसरी ओर पिछड़े व दलित वर्ग में बीजेपी के प्रति बढ़ते मोह को कम कर पाना भी बीएसपी के लिए आसान नहीं रहेगा।
उपचुनाव के लिए खाली हुई 11 में से जलालपुर सीट बीएसपी 37 प्रतिशत मत पाकर विजयी हुई थी। इस बार लोकसभा चुनाव भी वहां से जीत गई है। इस तरह एक सीट तो पार्टी को मजबूत नजर आ रही है। इसके अलावा 2017 में तीन सीटों पर बीएसपी दूसरे स्थान पर रही थी। इनमें से बलहा में बीएसपी प्रत्याशी को 57519 (28 प्रतिशत), टूंडला में 62514 (25 प्रतिशत) और इगलास में 53200 (22 प्रतिशत) वोट मिला था। इस प्रतिशत को देखें तो बीएसपी इन चार सीटों पर लड़ाई में है।
बीएसपी के इतिहास को देखें तो पार्टी उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारती। वर्ष 2018 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने प्रत्याशी नहीं उतारे थे और एसपी को समर्थन किया था। इसी आधार पर लोकसभा चुनाव में भी गठबंधन बना।
राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं, "एसपी और बीएसपी दोनों के द्वारा चुनाव लड़ने में मुद्दे गायब हो जाएंगे। दोनों पार्टियों के पास एक-दूसरे के खिलाफ बोलने के लिए कुछ बचा नहीं है। यह ताजा प्रयोग करके अभी एक-दूसरे के खिलाफ बोल नहीं पाएंगे। इनकी चुनाव प्रचार में संभावना सीमित हो जाती है।
उन्होंने कहा कि रामगोपाल यादव का कथन सही है। अगर यादव वोट नहीं देते तो बीएसपी को महज चार-पांच से सीटों से ज्यादा नहीं मिलती। यादव का समर्थन बीएसपी को और दलितों का समर्थन एसपी को भविष्य में अब मिलने वाला नहीं है। उपचुनाव में बीएसपी अगर ठीक-ठाक प्रयास करे तो तीन से चार सीटें मिल सकती हैं। अंबेडकर नगर में फिलहाल बीएसपी मजबूत है। इसी प्रकार वर्ष 2017 में जहां पर बीएसपी दूसरे नंबर पर थी, वहां उसे कुछ सफलता मिल सकती है। फिलहाल उपचुनाव में बीएसपी को अकेले बड़ी जीत मिलना मुश्किल दिख रहा है।
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