लोकतंत्र के पन्ने: 1998 लोकसभा चुनाव, जब जयललिता ने छोड़ा बीजेपी का साथ, एक वोट से गिर गई वाजपेयी की सरकार
10 मार्च, 1998 को बारहवीं लोकसभा का गठन हुआ। बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले गठबंधन को नौ दिन बाद शपथ दिलाई गई। लेकिन यह सरकार केवल 413 दिन ही चल सकी। 13 महीने पुरानी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार को 17 अप्रैल को मात्र एक मत से सत्ता से बेदखल होना पड़ा।
11वीं लोकसभा ने तीन-तीन प्रधानमंत्री दिए, लेकिन सभी का कार्यकाल छोटा था। यह मुश्किल से डेढ़ साल चली। अल्पमत वाली इंद्र कुमार गुजराल की सरकार 28 नवंबर, 1997 को गिर गई इसके बाद चुनावों की घोषणा की गई और फरवरी 1998 में 543 सीटों के लिए चुनाव कराए गए।
इस चुनाव में भी बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और उसके 182 उम्मीदवार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। कांग्रेस एकबार फिर से दूसरे नंबर पर रही। वोट प्रतिशत बीजेपी से ज्यादा होने के बाद भी कांग्रेस को बीजेपी से 41 सीटें कम मिली। कांग्रेस के 141 उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहे। वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) को 32 सीटें मिली। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने 20 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी, तो वहीं बहुजन पार्टी के भी 5 प्रत्याशी चुनाव जीते। एआईएडीएमके को 18, आरजेडी को 17, टीडीपी को 12, समता पार्टी को 12 और काम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (सीपीआई) को 9 सीटों से संतोष करना पड़ा था। इस चुनाव में करीब 62 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था।
बारहवीं लोकसभा का गठन
10 मार्च, 1998 को बारहवीं लोकसभा का गठन हुआ। बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले गठबंधन को नौ दिन बाद शपथ दिलाई गई। लेकिन यह सरकार केवल 413 दिन ही चल सकी। 13 महीने पुरानी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार को 17 अप्रैल को मात्र एक मत से सत्ता से बेदखल होना पड़ा। यह 5वीं बार हुआ, जब लोकसभा कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और उसे पहले ही भंग कर दिया गया।
गठबंधन की राजनीति
चुनाव खत्म होने के बाद गठबंधन की रणनीति ने बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को 265 सीटों का कार्यकारी बहुमत दिला दिया। जिसके बाद 15 मार्च को राष्ट्रपति केआर नारायणन ने अटल बिहारी वाजपेयी को अगली सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। इस प्रकार 19 मार्च को अटल बिहारी वाजपेयी ने फिर से प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। लेकिन बीजेपी के नेतृत्व में मिलीजुली सरकार ज्यादा दिनों तक सत्ता सुख नहीं भोग सकी और सिर्फ 13 महीनों में सरकार गिर गई।
अटल सरकार की सहयोगी जयललिता की एआईएडीएमके लगातार तमिलनाडु सरकार को बर्खास्त करने के मांग पर समर्थन वापस लेने की धमकी दे रही थी। बीजेपी ने भी जयललिता पर आरोप लगाया कि वो ऐसा इसलिए कर रही हैं ताकि वो अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से बच सकें। दोनों पार्टियों के बीच कोई सहमति नहीं बन सकी। नतीजा ये हुआ कि जयललिता ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। 15 अप्रैल,1999 को संसद में अटल सरकार सिर्फ एक वोट से विश्वास मत हार गई। इसके बाद राष्ट्रपति के आर नारायणन ने लोकसभा भंग कर दी और ताजा चुनाव का ऐलान कर दिया।
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