खतौली उपचुनावः बीजेपी के सामने गढ़ बचाने की चुनौती, SP-RLD के पास अवसर भुनाने का मौका
बीजेपी ने खतौली उपचुनाव में पूर्व विधायक विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी को उतारा है। उसे लगता है कि उन्हें सहानभूति मिलेगी। वहीं आरएलडी ने इलाके के बहुचर्चित चेहरों में शामिल पूर्व विधायक मदन भैया को उतारकर पश्चिम यूपी में गुर्जरों को साधने की कोशिश की है।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा में बीजेपी और एसपी-आरएलडी गठबंधन का सीधा मुकाबला है। ऐसे में पश्चिमी यूपी में गठबंधन के पास अवसर भुनाने और बीजेपी के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है। भड़काऊ भाषण मामले में दोषी ठहराए गए बीजेपी विधायक विक्रम सैनी की विधानसभा सदस्यता रद्द होने के चलते खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। बीजेपी ने 2017 में यह सीट जीती थी। यही कारण है कि बीजेपी के लिए यह प्रतिष्ठा की सीट बन गई है। जबकि आरएलडी जाट बेल्ट में अपना सियासी वर्चस्व बचाए रखने की कवायद में है।
आरएलडी ने मदन भैया को उतारकर बदला चुनाव का रुख
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आरएलडी ने खतौली के उपचुनाव में पूर्व विधायक मदन भैया को मैदान में उतारकर पश्चिम यूपी में गुर्जरों को साधने की कोशिश की है। बहुचर्चित चेहरों में मदन भैया का नाम शामिल है। बागपत की खेकड़ा विधानसभा सीट से वह चार बार विधायक रहे हैं। साल 2012 में परिसीमन हुआ तो खेकड़ा सीट का वजूद खत्म हो गया। इसके बाद अपनी सियासत को संवारने के लिए उन्होंने गाजियाबाद की लोनी सीट से 2012, 2017 और 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
बीजेपी ने विक्रम सैनी की पत्नी को उतारा
वर्तमान में बीजेपी और आरएलडी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। बीजेपी ने यहां से विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी को उतार रखा है। उसे लगता है कि उसे सहानभूति मिलेगी। हालांकि बीजेपी ने इस सीट को जीतने के लिए पूरा बूथ मैनेजमेंट कर रखा है। प्रदेश संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह खतौली चुनाव पर गहरी निगरानी बनाए हुए हैं। वो बूथ अध्यक्ष से लेकर शक्ति केंद्र के संजोयकों को मदतदाता के घर घर जाकर सरकार की उपलब्धि बताने के निर्देश दे रहे हैं। इसके साथ ही कार्यकर्ताओं को अन्य जरूरी टिप्स भी दिए जा रहे हैं।
आरएलडी जाट-गुर्जर-मुस्लिम समीकरण के दम पर जीत की कोशिश में
खतौली के रहने वाले रामशंकर कहते हैं कि इस सीट पर गन्ना किसान बहुत हैं और उनकी समस्याओं का ज्यादा हल नहीं हुआ है। हालांकि वह मानते हैं कि कानून व्यवस्था ठीक है। फिर भी जिस हिसाब से बीजेपी ने प्रचार प्रसार में ताकत झोंक रखी है उससे कांटे की टक्कर साफ नजर आ रही है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो आरएलडी ने गुर्जर समुदाय से आने वाले मदन भैया को प्रत्याशी बनाया है ताकि जाट-गुर्जर-मुस्लिम समीकरण के दम पर खतौली सीट पर जीत का परचम फहरा सके। पार्टी के जानकारों की मानें तो यदि खतौली सीट पर कामयाबी मिलती है तो लोकसभा में इसे प्रस्थापित किया जा सकता है।
एसपी-आरएलडी ने किसानों के मुद्दों पर बीजेपी को घेरा
राजनीतिक विश्लेषक अमोदकांत कहते हैं कि खतौली विधानसभा में बीजेपी और आरएलडी की आमने सामने की टक्कर है। बीजेपी इस सीट को जीतकर संदेश देना चाहती है कि उसका पश्चिम में कोई विरोध नहीं है। 2024 में वह मजबूत स्थित में लड़ेगी। इसी कारण बीजेपी ने यहां अपनी पूरी फौज उतार रखी है। उधर एसपी-आरएलडी यह सीट जीतने के पूरे प्रयास में है। इसी कारण से उसने पूरी ताकत झोंक रखी है। बार बार किसानों के मुद्दों को उठा रहे हैं।
हालांकि किसान आंदोलन के बावजूद भी एसपी और आरएलडी को 2022 के चुनाव में कोई खास सफलता नहीं मिली थी। उन्होंने कहा कि गठबंधन और बीजेपी के लिए 2024 का रिहर्सल माना जा रहा है। राजनीति आंकड़ों पर नजर डालें तो इस सीट पर मुस्लिम करीब 80 हजार, दलित 50 हजार, जाट 25 हजार, 45 हजार सैनी, गुर्जर 30 हजार, त्यागी करीब 14 हजार हैं।
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