एनडीए में पहली दरार : अलग हुए राजू शेट्टी, कई छोटे दल भी छोड़ेंगे साथ
एनडीए में पहली दरार पड़ चुकी है और इसकी शुरुआत हुई है महाराष्ट्र से। महाराष्ट्र के किसानों के बीच अच्छी पैठ रखने वाले राजनीतिक दल “स्वाभिमानी पक्ष” ने एनडीए से अलग होने का फैसला कर लिया है।
घड़ा भर जाए तो छलकना और टूटना तय होता है। केंद्र में बीजेपी की अगुवाई वाले सत्तारुढ़ गठबंधन एनडीए का घड़ा भी अब टूटने लगा है। देश को अच्छे दिनों का सपना दिखाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए में पहली दरार पड़ चुकी है और इसकी शुरुआत हुई है महाराष्ट्र से। महाराष्ट्र के किसानों के बीच अच्छी पैठ रखने वाले राजनीतिक दल “स्वाभिमानी पक्ष” ने एनडीए से अलग होने का फैसला कर लिया है। कहा जा रहा है कि यह तो महज शुरुआत है, जल्द ही दूसरे दलों का भी एनडीए से मोहभंग होगा और वह इस गठबंधन से अलग होंगे।
स्वाभिमानी पक्ष के नेता और लोकसभा सांसद राजू शेट्टी ने इस बात की पुष्टि की कि उनका दल एनडीए से रिश्ते खत्म कर रहा है। नवजीवन से फोन पर हुई बातचीत में शेट्टी ने कहा : “हमारी पार्टी ने किसानों के साथ हो रहे भेदभाव, पक्षपात और मोदी सरकार के असंवेदनशील रवैये के चलते एनडीए से अलग होने का फैसला किया है।”
शेट्टी का कहना है कि, “किसान संकट के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी का रवैया बेहद असंवेदनशील रहा है। तीन साल तक हमने उन्हें वक्त दिया और वो बार-बार हमें आश्वासन देते रहे, लेकिन अब और सहन नहीं किया जा सकता। तीन साल का मोदी जी का कार्यकाल बेहद निराशाजनक है। चुनाव पूर्व उन्होंने हमसे जो भी वादे किए उसमें से एक भी पूरा नहीं किया।”
शेट्टी का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 के चुनाव से पहले उनसे निजी मुलाकात कर किसानों का समर्थन मांगा था। मोदी के साथ हुई अपनी मुलाकात को याद करते हुए शेट्टी ने कहा कि, “हमने मोदी के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन को इस शर्त पर समर्थन दिया था कि सत्ता में आने के बाद वो स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट लागू करेंगे, लागत से डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देंगे, लेकिन मोदी ने ऐसा कुछ नहीं किया।”
शेट्टी ने कहा, “मोदी जी ने मुझसे मुलाकात में निजी तौर पर भरोसा दिया था कि सत्ता में आने के बाद अकाल निवारण आयोग बनाएंगे, लेकिन आज तक कुछ नहीं किया। मैंने मोदी जी को उनके वादों को याद दिलाते हुए कई चिट्ठियां लिखीं, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। हताश होकर हमारी पार्टी ने 30 अगस्त को पुणे में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में NDA गठबंधन से अलग होने का फैसला किया है।”
यह पूछे जाने पर कि क्या कुछ और छोटी पार्टियां NDA गठबंधन से अलग हो सकती हैं शेट्टी ने कहा, “अभी तो ये शुरुआत है. देखिए आगे क्या होता है. बीजेपी के लोग छोटी पार्टियों के नेताओं पर दबाव बनाते हैं।”
एक सूत्र ने नाम न बताने की शर्त पर दावा किया है कि राजू शेट्टी ने NDA गठबंधन में बिखराव की शुरुआत कर दी है। रामदास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी भी बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन में बहुत सहज नहीं है।
एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि दलितों के मुद्दे पर बीजेपी के नेताओं का जो रवैया रहा है उसकी वजह से अठावले के मन में शिकायते तो हैं। अब देखना है कि वो कब तक सत्ता के लिए अपने जनाधार से समझौता करते हैं।
महाराष्ट्र में अगर राजू शेट्टी के बाद अठावले को एनडीए से असंतुष्ट बताया जा रहा है, तो बिहार में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी- आरएलएसपी भी गठबंधन से खफा बताई जा रही है। हालांकि पार्टी अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा को मोदी कैबिनेट में राज्य मंत्री का दर्जा मिला हुआ है, लेकिन आम चर्चा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एनडीए गठबंधन में वापसी कुशवाहा को पसंद नहीं आयी है।
बिहार की राजनीति को समझने वाले बताते हैं कि अब कुशवाहा भी ज्यादा दिन तक एनडीए में खुद को प्रासंगिक नहीं रख पाएंगे। इसकी वजह है नीतीश कुमार और उनका जातीय आधार एक होना। एक ही जातीय आधार के दो नेता एक गठबंधन में कैसे और कब तक रह पाएंगे? ये एक बड़ा सवाल है।
इससे पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भी उपेन्द्र कुशवाहा बीजेपी को आंखे दिखा चुके हैं। उपेन्द्र कुशवाहा यूपी में अपने उम्मीदवार उतारना चाहते थे, लेकिन बीजेपी के दबाव के चलते उन्हें पीछे हटना पड़ा था। उस समय नेशनल हेराल्ड से बातचीत में उन्होंने कहा था कि बीजेपी के एक बड़े नेता ने फोन कर इस बात का वचन दिया था कि अगर पार्टी यूपी में चुनाव जीतती है तो ओबीसी ही मुख्यमंत्री होगा।
आरएलएसपी से जुड़े एक सूत्र का कहना है कि, “बीजेपी ने अपना वादा पूरा नहीं किया। बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया और ओबीसी को उप मुख्यमंत्री। ये बात कहीं न कहीं हमें चुभती है। देखिए कब तक हमारा साथ चलता है.”
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