बिहारः चुनाव से पहले तेजस्वी के समक्ष पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती, लालू की गैरमौजूदगी पड़ रही भारी

बिहार में आरजेडी़ के 5 विधान पार्षदों के पाला बदलने और रघुवंश प्रसाद सिंह की नाराजगी सामने आने के बाद तेजस्वी यादव के सामने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में पार्टी को एकजुट रखना सबसे बड़ी चुनौती है। इस समय अपनों को समेटना तेजस्वी के लिए जरूरी है।

फोटोः सोशल मीडिया
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मनोज पाठक, IANS

इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव और अगले महीने बिहार विधान परिषद की नौ सीटों पर होने वाले चुनाव के ठीक पहले राज्य की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के लिए मंगलवार को लगे देाहरे झटके से उबर पाना आसान नहीं है।

मंगलवार को अप्रत्याशित घटनाक्रमों के तहत जहां एक ओर आरजेडी़ के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने अचानक उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी को अल्टीमेटम दे दिया, वहीं पार्टी के 5 विधान पार्षदों ने भी इस्तीफा देकर जेडीयू का दामन थाम लिया। अब विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष राबड़ी देवी के लिए अपना पद बचाना मुश्किल नजर आ रहा है। ऐसे में आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में पार्टी के कर्ताधर्ता तेजस्वी यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखने की है।

इस बीच हालांकि तेजस्वी ने भी इस तरह के संकेत दिए हैं। तेजस्वी ने रघुवंश प्रसाद सिंह को अपना अभिभावक बताते हुए उनसे मिलने की बात कही है। लेकिन जानकार कहते हैं कि अगर तेजस्वी को यह करना ही था, तो फिर अब तक यह क्यों नहीं किया उन्होंने?

आरजेडी छोड़कर जेडीयू का दामन थाम चुके विधान पार्षद दिलीप राय ने कहा कि तेजस्वी यादव पार्टी को मनमाने तरीके से चला रहे हैं और पार्टी नेताओं की कोई राय नहीं ली जाती है। उन्होंने दावा किया कि आने वाले समय में आधे से ज्यादा विधायक पार्टी छोड़ देंगे। ऐसे में माना जा रहा है कि आरजेडी में कई असंतुष्ट विधायक भी हैं, जो पार्टी बदलने के मूड में हैं। इन्हें पार्टी में रोककर रखना तेजस्वी के लिए बड़ी चुनौती होगी।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक मणिकांत ठाकुर भी कहते हैं, "जाहिर है कि तेजस्वी के सामने अपनों को एकजुट रखना बड़ी चुनौती है। जब खुद में ही बिखराव होगा तो दूसरों के दबाव को कैसे झेला जा सकता है। अपनों को समेटना तेजस्वी के लिए आवश्यक है, नहीं तो नुकसान होगा।"

बीबीसी के पत्रकार रहे मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि, "पार्टी में जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मान सम्मान दिया गया, लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह की कीमत पर किसी भी अन्य नेता को पार्टी में लाना समझ से परे है। वरिष्ठ नेताओं को मान, सम्मान नहीं दिया गया तो यह तेजस्वी का लड़कपन साबित होगा।"

उधर, आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि रघुवंश बाबू ने पार्टी को सींचने का काम किया है और पार्टी को यहां तक पहुंचाया है। उन पर किसी प्रकार की शंका नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि अभी उनकी तबीयत खराब है, उनकी तबीयत ठीक होते ही, सबकुछ ठीक हो जाएगा।

हालांकि, तिवारी विरोधियों पर भी निशाना साधने से नहीं चूके। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि जो लेाग जनादेश की चोरी कर सकते हैं, वे खरीद-फरोख्त करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि तेजस्वी पार्टी को ठीक से आगे बढ़ा रहे हैं। वहीं, जेडीयू के नेताओं का दावा है कि आरजेडी में नेतृत्व को लेकर नाराजगी है और जल्द ही आरजेडी के कई विधायक भी पार्टी को छोड़ेंगे।

जबकि राजनीतिक गलियारे में चल रही चर्चा को सही मानें तो बिहार में विपक्षी दलों में अभी और टूट होना तय है। बनते-बिगड़ते गठबंधन के बीच कई नेता और विधायक पाला बदलने को तैयार हैं। और ये टूट केवल आरजेडी तक सीमित नहीं है, बल्कि महागठबंधन में भी टूट के प्रबल आसार बनने लगे हैं। बस आने वाले कुछ ही दिनों में साफ हो जाएगा कि कौन किधर जाता है। लेकिन इन सबके बीच इतना साफ है कि बिहार में इस समय आरजेडी समेत पूरे विपक्ष को लालू की गैरमौजूदगी भारी पड़ रही है।

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