'यूपी में का बा...' से आखिर क्या-क्या पूछ लिया नेहा ने कि सरकार और दरबारी कलाकार उन मुद्दों से मुंह चुरा रहे हैं?
बीजेपी आईटी सेल और पार्टी समर्थकों के ट्रोलिंग की वजह से नेहा को फेसबुक लाइव कर जवाब देने पड़ रहे हैं लेकिन वह ऐसा नहीं भी करतीं, तो उनके गाने ही जवाब हैंः ‘वोट देहब तोहके त सवाल पूछब केह से?’ (मतलब, वोट तुम्हें देंगे, तो सवाल किससे करेंगे?)
सीताराम देवरिया के हैं। मुंबई में टैक्सी चलाते हैं। यह पूछने पर कि गांव से कितना जुड़े हैं, वह कहते हैंः “हम तो सीधे जुड़े ही हैं लेकिन ई नेहा सिंह राठौर ने एकदम से जोड़ दिया है। लगता ही नहीं कि कोई अपरिचित हैं। एकदमे हमारीबात बोल रही हैं।“ फिर, लगभग झुंझला कर बोलेः “अगर यूपी में कुछ होता, तो हम काहे आते यहां धक्का खाने? जो बोल रहे हैं ‘सब बा’, वह खुद काहे रह रहे हैं मुंबई में? रहें यूपी में जाके और कमा के दिखाएं।” यह पूछने पर कि वोट डालने जा रहे हैं, तो बोलेः “बिलकुल!’ किसे जिताएंगे के सवाल पर कहाः “यह तो न बताएंगे लेकिन इतना तय है कि योगी बाबा को हराएंगे।“ फिर, खुद ही बोल पड़े, “वह तो ठीक ही पूछ रही हैं- यूपी में का बा?”
सच्चाई यह है कि नेहा सिंह राठौर के ‘यूपी में का बा?’ गाने से पहले ही बीजेपी के रवि किशन ने गा दिया थाः‘यूपी में सब बा’, यानी बीजेपी ने यह अनुमान लगा लिया था कि जनता की तरफ से ऐसा सवाल जरूर आएगा जिससे योगी आदित्यनाथ सरकार की पोल खुल सकती है। सवाल की आशंका से भयभीत बीजेपी हड़बड़ाहट में अपने ही ‘जवाब’ से फंस गई।
रवि किशन और नेहा सिंह राठौर- दोनों ही कलाकार हैं। रवि किशन अपनी कलाकारी से पैसा कमाते हैं और सत्ता-सुख के लिए बीजेपी में हैं। नेहा राठौर पैसा कमाने के लिए कलाकारी नहीं करतीं और सत्ता उन्हें शत्रु की तरह देखती है। सरल-सहज शब्दों में सोहर, छठ और दूसरे लोकगीत गाने वाली नेहा ने कहा भी है कि ‘हम लोकगायिका हैं, हम ऐसे छोड़ तो नहीं सकते।’ उन्होंने यह भी कहा कि भोजपुरी में महेंदर मिसिर और भिखारी ठाकुर ने जिस तरह सामाजिक मुद्दों पर लिखा और गाया, वह वही काम कर रही हैं।
सरकार की पूरी मशीनरी नेहा के गाने के विरोध में गाने बनाने में लगी है। पर जब कोई उन गानों को सुने तो समझेगा कि उसमें नेहा के किसी सवाल का कोई जवाब नहीं है। क्यों सरकार और उसके दरबारी कलाकार उन मुद्दों से मुंह चुरा रहे हैं? आखिर क्या- क्या पूछ लिया नेहा ने? उनके मुद्दे देखिएः बेरोजगारी, हाथरस बलात्कार, कोरोना की अव्यवस्था और मौतें, किसान आंदोलन और मंत्री के बेटे की गुंडागर्दी, मॉब लिंचिंग आदि।
जौनपुर की केराकत तहसील से आते हैं विपिन। टैक्सी चलाते थे। ऑर्गेनिक खेती की धूम देखी तो गाड़ियां बेचकर खेत बड़ा कर लिया और ऑर्गेनिक फार्मिंग में जुट गए। लेकिन अब दिक्कत आ रही है। संसाधन और महंगाई आगे नहीं बढ़ने दे रहे। सरकार से नाराज हैं, हालांकि विपक्ष से भी ज्यादा खुश नहीं हैं। छुट्टा मवेशी इनकी बड़ी मुश्किल हैं। कहते हैंः ‘नेहा राठौर तो हमारी बात कह रही हैं। वह भी जो विपक्ष नहीं कह पा रहा।’ बताते हैंः ‘गांवों में नेहा खूब सुनी जा रही हैं लेकिन उसे गाली देने वाले भी कम नहीं हैं।’ ‘यूपी में सब बा’ ही सच होता, तो इतने बड़े पैमाने पर यहां से लोगों का रोजगार की तलाश में पलायन क्यों होता? जौनपुर के हर घ रका कम-से-कम एक आदमी तो मुंबई में है ही। कोई खुशी-खुशी तो घर नहीं छोड़ना चाहता है!’
हालांकि बीजेपी आईटी सेल और पार्टी समर्थकों के ट्रोलिंग की वजह से नेहा को दुखी होकर फेसबुक लाइव कर जवाब देने पड़ रहे हैं लेकिन वह ऐसा नहीं भी करतीं, तो उनके गाने ही जवाब हैंः ‘वोट देहब तोहके त सवाल पूछब केह से?’ (मतलब, वोट तुम्हें देंगे, तो सवाल किससे करेंगे?) यानी, जैसा कि होना चाहिए, वह कलाकार की जिम्मेदारी निभाते हुए प्रतिपक्ष की भूमिका में हैं। गोदी मीडिया, आईटी सेल और भक्तों की भीड़ उन्हें बदनाम करने पर तुली है। सरकार के भक्तों की राजनीतिक समझ इतनी ही है कि वे उसके चेहरे के मुंहासों पर उसे ट्रोल कर रहे हैं, तो कोई कहता है कि उसे यूपी में सुघड़ ‘भतार’ मिला।
दिलचस्प यह है कि इन सबके बावजूद वह अपना संतुलन नहीं खोतीं और सवाल पूछने की निरंतरता बनाए रखतीं हैं। सरकार-समर्थक यह भी आरोप लगा रहे हैं कि वह पैसा लेकर सरकार का विरोध कर रही हैं। इस पर नेहा ने सही ही चुटकी ली कि ‘बेरोजगारी की बात करने पर बेरोजगार लोग पैसा देगा?’ परिपक्व कलाकार की तरह नेहा यह भी साफ कर रही हैं कि ‘वह सरकार की कमियां गिना कर हिट नहीं होना चाहती हैं। सरकार कुछ ऐसा करे कि कोई मुद्दा ही न हो तो वह उनकी वंदना करेंगी।’
सवालों को दबाने की सरकारी प्रवृत्ति पर भी वह कहती हैंः ‘आप अगर सवाल नहीं पूछेंगे तो हमारे नेताओं और सत्ताधीशों पर आपका कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा। हम सभी भेड़-बकरियों की तरह हांक दिए जाएंगे।’
यह अनायास नहीं है कि नेहा की इस पहल को बड़े पैमाने पर स्वीकृति मिली है। साहित्यकार और चर्चित आलोचक वीरेन्द्र यादव कहते हैंः ‘इस एक अकेली युवा लोकगायिका ने ‘यूपी में का बा...’ और अन्य गीतों के माध्यम से जिस तरह लाखों लाख लोगों के बीच प्रतिरोध की मानसिक भूमि तैयार की है, वह एक ज्वलंत उदाहरण है। बिना किसी सांगठनिक और सांस्थानिक मदद के अकेली गायिकी के बल पर सत्ता तंत्र को चुनौती देते हुए जिस तरह रातों-रात नेहा ने जनस्वीकृति प्राप्त की है, वह उसकी मुद्दों की गहरी समझ और लोकगायन को प्रतिबद्ध सार्थकता देने का परिणाम है। सचमुच नेहा ने आज के दौर में उसी भूमि का का निर्वहन किया है जो एक एक दौर में शील, नागार्जुन और वामिक जौनपुरी सरीखे जनकवियों और अवामी शायरों ने किया था।’
नेहा ने एक साथ कई मोर्चे खोल रखे हैं। आप उन्हें फेसबुक, इंस्टा, ट्विटर, यूट्यूब के अलावा विभिन्न चैनलों के बहस-मुबाहिसे और सोशल मीडिया लाइव पर देख सकते हैं। हर जगह उन्हें घेरने और लहुलुहान करने की कोशिश होती है लेकिन नेहा अपने विचार में इतनी स्पष्ट हैं कि उन सारे हमलों को परास्त करके नित नए गाने बना रही हैं। प्रेमचंद से अभिव्यक्ति उधार लेकर कह सकते हैं कि नेहा के गाने मशाल की तरह राजनीति के आगे चलने वाली सच्चाई हैं। वह सत्ता परिवर्तन की लड़ाई में गीत-संगीत के धारदार इस्तेमाल की उस गुम हो चुकी परंपरा की याद भी दिला रही हैं जब हमारे सामने पटना की सड़कों पर डफली बजाते जन कवि नागार्जुन और धर्मवीर भारती की ‘मुनादी’ के सार्वजनिक पाठ के अक्स गुजरने लगते हैं।
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