पंजाब के सीएम चन्नी के संघर्षों की दास्तान: इसी छोटे से गांव से शुरू हुई फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी
पंजाब के मकरौना कलां (बड़ा) विधानसभा चुनाव की तपिश के बीच लोगों के कौतूहल का विषय बना हुआ है। इसकी वजह है पंजाब के 16वें और देश के वर्तमान में अकेले दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का यह गांव जन्मस्थान होना।
किसी के अर्श से फर्श पर पहुंचने की कहानियां तो अनगिनत मिल जाती हैं। लेकिन फर्श से अर्श का सफर कम ही लोग तय कर पाते हैं। तभी तो वह मिसाल बन जाते हैं। पंजाब के 16वें मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के इस मुकाम पर पहुंचने की कहानी भी इसी कड़ी का हिस्सा लगती है। गांव मकरौना कलां में उनके जन्मस्थल को देखकर चन्नी की सफलता किसी किस्से-कहानी का हिस्सा ही लगती है। एक छोटे से गांव में स्थित उस घर को ले जाने वाली बेहद संकरी गली से गुजरते हुए यह कल्पना भी बेमानी लगती है कि हम वहां जा रहे हैं, जहां पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री ने जन्म लिया था।
पंजाब के रूपनगर जिले के चमकौर साहिब कस्बे से तकरीबन पांच किलोमीटर दूर स्थित गांव मकरौना कलां (बड़ा) विधानसभा चुनाव की तपिश के बीच लोगों के कौतूहल का विषय बना हुआ है। इसकी वजह है पंजाब के 16वें और देश के वर्तमान में अकेले दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का यह गांव जन्मस्थान होना। चमकौर साहिब मुख्य रोड से गांव को लिंक करने वाली एक छोटी सड़क से गुजरते हुए जिस तरह गेहूं और सरसों की लहलहा रही फसल पंजाब के मेहनतकश किसानों के पसीने और संघर्ष की कहानी बयां करती है। उसी तरह गांव मकरौला कलां की सीमा में दाखिल होते ही यह अहसास हो जाता है कि यहां जन्म लेने वाले किसी व्यक्ति ने प्रदेश के शीर्ष पद तक का सफर यूं ही तो नहीं तय कर लिया होगा।
दरअसल, एक ही नाम के दो गांव हैं। बस उनके नाम के आगे छोटा और बड़ा लगा है। वहां जाते हुए पहले छोटा मकरौना कलां आता है। छोटा मकरौना कलां में मिले करनैल सिंह, मक्खन सिंह और श्रंगारा सिंह ने बताया कि यह दोनों गांव भाई हैं। मुख्यमंत्री के बारे में बात करते हुए वह कहने लगे कि पहले तो किसी मुख्यमंत्री को इतना नजदीक से देखने का सौभाग्य नहीं मिला। वह अक्सर गांव में आते रहते हैं। पहले तो कोई मुख्यमंत्री यहां नहीं आया। चन्नी की मिलनसारिता के कायल गांव के लोग पानी-बिजली के बिल माफ होने की बात करने लगे। गांव की नलियों तक का काम उन्होंने करवाया है। पुल का पत्थर रखवा दिया है। हालांकि, गांववालों ने बताया कि पिछली बार वह बड़ा मकरौना कलां से हार गए थे, जिसकी वजह शायद जातीय समीकरण था।
कैप्टन अमरिंदर की बात करने पर वह कहने लगे कि वह तो झूठा बंदा है। वहां से निकलते ही बड़ा मकरौना कलां आ जाता है। बेहद छोटे से गांव में दाखिल होते ही अहसास हो जाता है कि यहां जन्म लेने वाले व्यक्ति की सफलता का सफर कितना मुश्किलों भरा रहा होगा। हालांकि, यह गांव (बड़ा मकरौना कलां) मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का ननिहाल है, लेकिन उनका जन्म यहीं हुआ था। गांव में मिले चन्नी के रिश्ते के भाई दर्शन सिंह ने गांव की सामाजिक स्थिति के बारे में बताया कि गांव की आबादी तकरीबन एक हजार है। इसमें रविदासिया, सिख, वाल्मीकि, कुम्हार और ब्राम्हण सभी हैं। जिसमें रविदासिया समाज की तादाद ज्यादा है। दर्शन सिंह ही उस घर की देखभाल करते हैं, जहां चन्नी ने जन्म लिया था।
दर्शन सिंह ने गांव में हो रहे विकास कार्यों के बारे में बताया कि दो किले जमीन में यहां स्टेडियम बन रहा है। दो किले में स्कूल बन रहा है। गलिया, नालियां, सड़कें सब कुछ चन्नी ने बनवाई हैं। एक छोटी सी बेहद संकरी गली से निकलते हुए दर्शन सिंह ने उस घर को दिखाया। वहां गली में मिल गई महिलाओं बलजिंदर कौर, कुलविंदर कौर, मनप्रीत कौर व हरप्रीत कौर का कहना था कि हमारे लिए तो गर्व की बात है कि यहां जन्म लेने वाला व्यक्ति प्रदेश का मुखिया है। मिड-डे-मील वर्कर के तौर पर काम कर रही इन महिलाओं का कहना था कि हमारी नौकरियां पक्की हो जाएंगी तो हम फिर बोलेंगे साडा चन्नी है। गांव से निकल मुख्य सड़क पर पहुंचने पर कोल्हू से गन्ने का रस निकाल गुड़ बना रहे गुलजार के पास भी अपनी कहानी थी।
गुलजार का कहना था कि हमारे यहां से कई बार मुख्यमंत्री गुड़ ले जा चुके हैं। रोड से निकलते हुए यहां रुके हैं। हार-जीत अपनी जगह है, लेकिन मिलने-जुलने में उनका कोई जवाब नहीं है। राज्य का मुखिया ऐसा ही होना चाहिए। यह कहानी उसी तरह है जैसे कोई पंजाब आए बिना और यहां के खेत-खलिहान देखे बिना यह नहीं समझ सकता कि कृषि कानूनों के खिलाफ यहां के किसान इतना आंदोलित क्यों थे। वैसे ही जमीन पर सच अपनी आंखों से देखे और अनुभव किए बिना किसी बेहद सामान्य व्यक्ति के मुख्यमंत्री के ओहदे तक पहुंचने की कहानी समझना भी मुमकिन नहीं है। पंजाब अभी तक 1947 में देश आजाद होने के बाद से लेकर अब तक 75 साल में 16 सीएम देख चुका है। इनमें 13 सिख और 3 हिंदू मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इनमें एक महिला सीएम राजिंदर कौर भट्ठल 82 दिन और एक दलित सीएम चरणजीत सिंह चन्नी 111 दिन तक सीएम रहे हैं। सबसे ज्यादा 5 बार सबसे युवा और सबसे बुजुर्ग सीएम बनने का रिकार्ड प्रकाश सिंह बादल के नाम है। यह भी रिकार्ड है कि गोपीचंद भार्गव 1964 में जब तीसरी बार बहुमत में आए तो सिर्फ 15 दिन सीएम रहे थे। 2022 में एक बार फिर पंजाब नया इतिहास लिखने के लिए तैयार है।
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