कहानी 'गुप्त कांग्रेस रेडियो' और इसे चलाने वाली ऊषा मेहता के आजादी के लिए संघर्ष की

भारत छोड़ो आंदोलन में गुप्त कांग्रेस रेडियो के माध्यम से आंदोलन को सक्रियता देने में महत्वूर्ण भूमिका निभाने वाली ऊषा मेहता का जीवन प्रेरणादायी है। उन्होंने पारिवारिक और सामाजिक बेड़ियों को तोड़ स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दिया।

ऊषा मेहता की पुरानी  फोटो
ऊषा मेहता की पुरानी फोटो
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नंदिता हुड्डा

“यह कांग्रेस रेडियो है....मीडियम वेव 42.34 मीटर पर देश के किसी हिस्से से आपसे मुखातिब है...” एक 22 साल की लड़की की आवाज जब इस रेडियो पर गूंजती तो देश कान लगाकर सुनता। यह अंग्रेजी हुकूमत का दौर था और स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज को घोंटा जा रहा था, ऐसे में ‘कांग्रेस रेडियो’ संघर्ष की आवाज बना और देशवासियों को स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी हर जानकारी मिलने लगी।

इस रेडियो की शुरुआत करने और उसके जरिए आजादी के आंदोलन की जानकारी के साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों में हो रही घटनाएं लोगों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया था ऊषा मेहता ने। 9 अगस्त  1942 को जब महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देते हुए भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया तो इसे जन-जन तक पहुंचाने में ऊषा मेहता द्वारा स्थापित गुप्त कांग्रेस रेडियो ने अहम भूमिका निभाई। इस तरह भारत छोड़ो आंदोलन को सफल बनाने में ऊषा मेहता का योगदान अविस्मरणीय है।

ऐतिहासिक तथ्य है कि 1857 की क्रांति से लेकर 1942 तक आते भारत में  स्वतंत्रता के लिए कई आंदोलन हुए, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों का परस्पर संपर्क होने के साधन न होने से आंदलोनों को कामयाबी नहीं मिल सकी। अंग्रेजी शासन ने परस्पर और जन संपर्क के सारे साधनों पर कब्जा कर रखा था। अखबारों और रेडियो पर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी खबरें देने पर पाबंदी थी। लेकिन जब 1942 में जब महात्मा गांधी ने "करो या मरो" के नारे के साथ अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया, तो ऊषा मेहता ने ठान लिया था कि चाहे जो हो जाए, आंदोलन की गूंज को जन-जन तक पहुंचाया जाएगा।

ऊषा मेहता का जन्म गुजरात के सूरत में एक गांव में सरकारी जज के घर हुआ था। ऊषा सिर्फ 5 साल की थीं जब उन्होंने अहमदाबाद में पहली बार गांधी जी को देखा था। कुछ समय बाद गांधी जी ऊषा के गांव के पास खादी के महत्व को लेकर हुए एक शिविर में आए थे जिसमें बालिका ऊषा ने भी भाग लिया। महात्मा गांधी से इन दो मुलाकातों ने बालिका ऊषा के मन में आजादी के बीज बो दिए और उसके बाद ऊषा ने अपने आजाद इरादे जगजाहिर करना शुरू कर दिए।


अंग्रेजी शासन के खिलाफ ऊषा ने महज 8 साल की उम्र में पहला प्रतिरोध तब दिखाया जब उनके अध्यापक को अंग्रेजी पुलिस पीट रही थी, तो ऊषा पुलिस की लाठी पकड़ कर अपने अध्यापक को बचाने की कोशिश में खड़ी हो गई थीं। ऊषा ने अपने प्रतिरोध का परिचय दूसरी बार तब दिया जब एक अंग्रेज अधिकारी की कार से एक बच्ची कुचले जाने पर उसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे क्रांतिकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। 22 वर्षीय ऊषा उस मृत बच्ची और उसकी मां को किसी तरह भीड़ से बाहर निकाल पाने में सफल रहती हैं। इसके बाद ऊषा को कांग्रेस ने उन्हें सक्रिय रूप से आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने का न्योता दिया।

लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने का उन्हें अपने घर में ही विरोध झेलना पड़ा। उनके पिता ने भावुक होकर उन्हें आंदोलन से दूर रहने की सलाह दी और सिर पर हाथ रखकर कसम तक दिलाई। लेकिन ऊषा तो आंदोलन में रच-बस चुकी थीं। उन्होंने देश की खातिर इस कसम को तोड़ दिया। इतना ही नहीं 1942 के  भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता से हिस्सा लेते हुए ऊषा ने गांधी जी के सामने ही ब्रह्मचर्य की शपथ भी ली। अकसर होता कि कांग्रेस के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल मे डाल दिया जाता तब भी ऊषा के हौसले कमजोर नहीं पड़ते।

लेकिन नेताओं के जेल जाने से क्रांतिकारियों का परस्पर संपर्क टूट जाता, तो ऊषा को चिंता होती कि कहीं जन सूचना के अभाव में आंदोलन कमजोर न पड़ जाए। ऊषा को लगता था कि यदि 1857 में क्रांतिकारियों का आपसी संपर्क बना रहता, उन्हें समय समय पर दूसरे स्थानों की जानकारी मिलती रहती तो निश्चित रूप से वो क्रांति सफल होती। ऊषा ने ठान लिया था कि क्रांतिकारियों तक हर रोज जानकारी पहुंचाई जाएगी, गांधी समेत कांग्रेस के बड़े नेताओं के भाषणों से उन्हें प्रेरणा दी जाएगी ताकि वो कमज़ोर न पड़े और आंदोलन को मजबूती से चलाए रखें।

इसके लिए ऊषा ने "कांग्रेस रेडियो" स्थापित करने का विचार पेश किया जिसका उनके दो साथियों ने मजाक बनाया और इस विचार को मानने से इंकार करते हुए खुद को आंदोलन से अलग कर लिया, लेकिन दो अन्य साथियों ने इसमें साथ भी दिया। सवाल था कि रेडियो स्थापित करने के लिए जरूरी 4 हजार रुपए कहां से आएंगे। सभी कोशिशों के बाद भी 9 दिनों में ऊषा और उनके दोस्त केवल 551 रुपए ही जमा कर पाए। इसी बीच ऊषा की बुआ बुआ ने अपने सारे गहने ऊषा को ये कहते हुए दे दिए कि वो ज्यादा उम्र की वजह से आंदोलन में तो सक्रिय नहीं हो सकतीं, लेकिन इन गहनों से उन्हें भी देशहित में अपना योगदान का मौका मिल जाएगा। इस प्रकार ऊषा "कांग्रेस रेडियो" स्थापित करने और क्रांतिकारियों तक आंदोलन की सारी जानकारियां पहुंचाने में कामयाबी हासिल करती है।


ऊषा हर शाम कांग्रेस रेडियो को चलाने लगीं, तो उन्हें घर वापसी में देर होने लगी। पिता को ऊषा की गतिविधियों की भनक लगी तो उन्होंने उसे कमरे में बंद कर दिया और बाहर आने जाने पर पाबंदी लगा दी। लेकिन ऊषा उसी रात एक पत्र लिखकर घर छोड़ आईं और कांग्रेस कार्यालय में चली गईं। वहां उनकी मुलाकात राम मनोहर लोहिया से हुई। ऊषा ने लोहिया को कांग्रेस रेडियो के बारे में बताया जिसका इस्तेमाल कर राम मनोहर लोहिया ने आजादी के मजबूत इरादों और रणनीतियों को क्रांतिकारियों तक पहुंचाया।

रेडियो चलाने के साथ-साथ इसे अंग्रेजी शासन से छिपाकर भी रखना था। लेकिन आखिरकार अंग्रेजी शासन को रेडियो संचालन केंद्र का पता चल गया और ऊषा को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें जेल में यातनाएं दी गईं और राममनोहर लोहिया का पता बताने पर जेल से रिहाई का लालच भी दिया गया परंतु ऊषा नहीं टूटीं। उन्हें 4 वर्ष की कैद हुई।

एक समय ऐसा भी आया जब ऊषा जेल में थी तब उनके पिता भी उनके दृढ़ संकल्प के आगे झुक गए और उन्होंने अपनी बेटी को हौसला देते हुए पत्र लिखा कि उन्हें इस धरती पर सबसे ज्यादा मान सम्मान ऊषा का पिता होने पर मिला है। उन्होंने लिखा कि ऊषा तुम अब क्रांतिकारी नहीं, खुद क्रांति बन चुकी हो। तेरा संघर्ष ही वो पंख है जो हमें आजाद भारत की उड़ान पर लेकर जायेगा।

ऊषा मेहता द्वारा स्वंत्रता संग्राम में दिए गए सबसे प्रमुख सहयोग "गुप्त कांग्रेस रेडियो की स्थापना और उसके सफल संचालन" के लिए उन्हें हमेशा याद रखा जायेगा।

सिर्फ बताने की खातिर ऊषा के जीवन को उकेरती हाल ही में एक फिल्म भी आई थी जिसमें सारा अली खान ने ऊषा मेहता का किरदार निभाया था। इस फिल्म का नाम था ‘ऐ वतन, मेरे वतन’

(नंदिता हुड्डा, चंडीगढ़ महिला कांग्रेस की अध्यक्ष हैं)

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