सीताराम येचुरी: कुशल वक्ता और उदारवादी वामपंथी राजनीति के पुरोधा
येचुरी विभिन्न मुद्दों पर राज्यसभा में अपने सशक्त और स्पष्ट भाषणों के लिए जाने जाते थे। वह बहुभाषी थे और हिंदी, तेलुगु, तमिल, बांग्ला और मलयालम भी बोल सकते थे। वह हिंदू पौराणिक कथाओं के भी अच्छे जानकार थे और अक्सर अपने भाषणों में उनका इस्तेमाल करते थे।
बहुभाषाविद्, मिलनसार और कुशल वक्ता मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीम) के पांचवें महासचिव सीताराम येचुरी, जो राजनीति के साथ-साथ फिल्मी गीतों पर भी विस्तार से अपनी बात रख सकते थे, एक ऐसे उदार वामपंथी नेता थे जिनके मित्र सभी राजनीतिक दलों में थे।पार्टी के तीन बार प्रमुख रहे येचुरी का गुरुवार को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। उन्होंने उस समय पार्टी की कमान संभाली थी जब वामपंथी दल ढलान पर था। वह 72 वर्ष के थे।
येचुरी अप्रैल, 2015 में विशाखापत्तनम में पार्टी के 21वें अधिवेशन में सीपीएम के पांचवें महासचिव बने थे और उन्होंने प्रकाश करात से पदभार संभाला था। करात अपने कट्टर रुख के लिए जाने जाते थे। अपने पूर्ववर्ती करात से बिल्कुल अलग येचुरी गठबंधन राजनीति की चुनौतियों का सामना करने में सफल रहे। वह अपने गुरु पार्टी के दिवंगत नेता हरकिशन सिंह सुरजीत के काफी करीब माने जाते थे।
येचुरी ने सुरजीत के मार्गदर्शन में काम सीखा, जो 1989 में गठित वी.पी. सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार और 1996-97 की संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान गठबंधन युग में एक प्रमुख नेता थे। इन दोनों ही सरकारों को सीपीएम ने बाहर से समर्थन दिया था। येचुरी 2004 से 2014 तक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के शासनकाल में सबसे प्रभावशाली व्यक्ति थे और उन्होंने इस सरकार के कार्यकाल के दौरान सक्रिय भूमिका निभाई थी।
चेन्नई में जन्मे और दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने वाले येचुरी, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी के भरोसेमंद सहयोगी थे। वह पहले गैर-कांग्रेसी नेता थे, जिन्हें सोनिया गांधी ने 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मुलाकात के बाद फोन किया था, जब उन्होंने प्रधानमंत्री का पद अस्वीकार कर दिया था और इसके लिए मनमोहन सिंह का समर्थन किया था।
संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम का मसौदा तैयार करने में येचुरी ने कांग्रेस नेता पी चिदंबरम के साथ काम किया था। येचुरी ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मुद्दे पर यूपीए सरकार के साथ चर्चा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, 2008 में वामपंथी दलों ने इस मुद्दे पर यूपीए-1 सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिसका मुख्य कारण उनके पूर्ववर्ती प्रकाश करात का अडिग रुख था।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने येचुरी के निधन पर दुख जताते हुए कहा, ‘‘सीताराम येचुरी एक बहुत अच्छे इंसान, बहुभाषी, व्यावहारिक प्रवृत्ति वाले धुर मार्क्सवादी, माकपा के एक स्तंभ और विलक्षण बौद्धिक क्षमता एवं हास्यबोध वाले एक शानदार सांसद थे।’’
पुराने हिंदी फिल्मी गानों, किताबों और राजनीति पर विस्तार से अपनी बात रखने के लिए चर्चित येचुरी 2017 तक 12 साल तक राज्यसभा के सदस्य रहे और विपक्ष की एक मजबूत आवाज बने रहे। वर्ष 2015 में पार्टी महासचिव का पदभार संभालने के बाद पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में येचुरी ने कहा था कि उन्हें महंगाई जैसे मुद्दों पर समर्थन वापस ले लेना चाहिए था, क्योंकि 2009 के आम चुनाव में परमाणु समझौते के मुद्दे पर लोगों को संगठित नहीं किया जा सका।
येचुरी विभिन्न मुद्दों पर राज्यसभा में अपने सशक्त और स्पष्ट भाषणों के लिए जाने जाते थे। वह बहुभाषी थे और हिंदी, तेलुगु, तमिल, बांग्ला और मलयालम भी बोल सकते थे। वह हिंदू पौराणिक कथाओं के भी अच्छे जानकार थे और अक्सर अपने भाषणों में खासकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर हमला करने के लिए उन संदर्भों का इस्तेमाल करते थे। वह नरेन्द्र मोदी सरकार और इसकी उदार आर्थिक नीतियों के सबसे मुखर आलोचकों में से एक रहे।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में सीपीएम की केंद्रीय समिति ने कांग्रेस के साथ किसी भी तरह के गठबंधन के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था, यहां तक कि पार्टी के महासचिव येचुरी ने इस्तीफे की पेशकश भी की थी। हालांकि, 2024 के आम चुनाव के दौरान, जब एकजुट विपक्ष के लिए बातचीत शुरू हुई और विपक्षी दल एक साथ मिलकर ‘इंडिया’ गठबंधन बनाने लगे, तो सीपीएम इसका एक हिस्सा थी और येचुरी गठबंधन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे।
राजनीति में उनका सफर ‘स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (एसएफआई) से शुरू हुआ था, जिसमें वह 1974 में शामिल हुए और अगले ही साल पार्टी के सदस्य बन गए। आपातकाल के दौरान कुछ महीने बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से रिहा होने के बाद वह तीन बार जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। वर्ष 1978 में वह एसएफआई के अखिल भारतीय संयुक्त सचिव बने और उसके तुरंत बाद अध्यक्ष बने।
येचुरी ने विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास तक मार्च किया था और उन्हें इस्तीफे की मांग करते हुए एक ज्ञापन सौंपा था। उन्होंने एक घटना को याद करते हुए कहा था कि वह प्रधानमंत्री के आवास के गेट पर उनके इस्तीफे की मांग करते हुए ज्ञापन चिपकाने के इरादे से गए थे और जब उन्हें अंदर बुलाया गया और इंदिरा गांधी स्वयं उनसे मिलने आईं तो वह आश्चर्यचकित रह गए।
पार्टी में उनका उत्थान बहुत तेजी से हुआ। वह 1985 में सीपीएम की केंद्रीय समिति के लिए चुने गए और 1992 में 40 वर्ष की आयु में पोलित ब्यूरो के लिए चुने गए। वह 19 अप्रैल 2015 को विशाखापत्तनम में पार्टी के 21वें अधिवेशन में सीपीएम के पांचवें महासचिव बने और उन्होंने प्रकाश करात से उस समय पदभार संभाला जब पार्टी ढलान की ओर थी। पार्टी 2004 में 43 सांसदों से घटकर 2014 में नौ सांसदों तक सिमट गई थी। इसके बाद उन्हें 2018 और 2022 में फिर से इस पद के लिए चुना गया।
12 अगस्त 1952 को चेन्नई में एक तेलुगु भाषी परिवार में जन्मे येचुरी के पिता सर्वेश्वर सोमयाजुला येचुरी आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम में इंजीनियर थे और उनकी मां कल्पकम येचुरी सरकारी अधिकारी थीं। वह हैदराबाद में पले-बढ़े, लेकिन 1969 में उनका परिवार दिल्ली आ गया। मेधावी येचुरी ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाओं में अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया और उसके बाद दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया।
उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एक बार फिर प्रथम श्रेणी के साथ स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की, लेकिन कुछ समय तक भूमिगत रहने और विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने के बाद आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी के कारण वह अपनी पीएचडी की डिग्री पूरी नहीं कर सके।
येचुरी के परिवार में उनकी पत्नी सीमा चिश्ती हैं। उनके बेटे आशीष येचुरी का 2021 में कोविड-19 के कारण निधन हो गया था। उनकी बेटी अखिला येचुरी एडिनबर्ग विश्वविद्यालय और सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं और उनका एक बेटा दानिश येचुरी भी है। येचुरी की शादी पहले इंद्राणी मजूमदार से हुई थी।
‘पीटीआई’ को हाल में दिए एक साक्षात्कार में येचुरी ने 2024 के चुनाव परिणामों को बीजेपी के लिए झटका बताया था और साथ ही अपनी पार्टी के मामूली रूप से बेहतर प्रदर्शन पर चिंता भी जताई थी।
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