शशि कपूर : एक सुंदर, सरल और शर्मीला युवक

शशि कपूर नहीं रहे। मुंबई को कोकिला बेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में सोमवार शाम उनका निधन हो गया। सिनेमा और रंगमंच को अलग पहचान दिलाने वाले शुरुआती लोगों में से एक शशि कपूर को नवजीवन की श्रद्धांजलि

Photo  : Virendra Prabhakar/Hindustan Times via Getty Images
Photo : Virendra Prabhakar/Hindustan Times via Getty Images
user

इकबाल रिजवी

कपूर खानदान ने बॉलीवुड को एक के बाद एक कई सितारे दिये। तीन पीढ़ियों का यह सफर अब चौथी पीढ़ी तक पहुंचने वाला है। करीब चार पीढ़ियों में फैले इस सफर में एक मुसाफिर सबसे अलग नजर आता रहा, जिसका नाम था शशि कपूर। अभिनय में पिता पृथ्वी राज की तरह गंभीर, लोकप्रियता में भाई राजकपूर, शम्मी कपूर और भतीजे ऋषिकपूर से किसी मामले में पीछे ना रहने वाले शशिकपूर ने 12 साल की उम्र में कैमरे का सामना कर लिया था। राजकपूर की फिल्म ‘आग’ और ‘आवारा’ में उन्होंने बाल कलाकार के रूप में काम किया।

शशि कपूर को फिल्मों में महज इसलिये काम नहीं मिला कि वे कपूर खानादान के सदस्य थे। बल्कि इसके पीछे थी, उनके पिता पृथ्वी राज कपूर की गंभीर सोच। वह सोच कि जिसे भी सिनेमा में काम करने में दिलचस्पी हो, पहले वह सहायक के रूप में सिनेमा के विभिन्न अंगों की जानकारी हासिल करे, तब अभिनय या निर्देशन की ओर कदम बढ़ाए।

Photo : PramodThakur/Hindustan Times via Getty Images
Photo : PramodThakur/Hindustan Times via Getty Images
10 मई 2015 को शशि कपूर को दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया गया। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने यह पुरस्कार पृथ्वी थिएटर में हुए एक समारोह में दिया था। इस मौके पर उनके साथ (बाएं से) नफीसा अली, वहीदा रहमान, आशा पारेख, जीनत अमान, शबाना आजमी, रेखा, नीतू सिंह और सुप्रिया पाठक भी थीं। यह सारी अभिनेत्रियां शशि कपूर की फिल्मों की नायिकाएं रही हैं

शशि कपूर ने सिनेमा और रंगमंच दोनों में काम कर तजुर्बा हासिल किया और तब उन्हें हीरो के रूप में पहला मौका मिला फिल्म ‘धर्मपुत्र’ (1961) से। यह फिल्म बॉक्स आफिस के नियमों के मुताबिक नाकाम रही। इसके बाद ‘प्रेम पत्र’, ‘हॉलीडे इन बॉम्बे’ और अंग्रेजी फिल्म ‘द हाउस होल्डर’ में शशि कपूर ने काम किया और अपनी अभिनय प्रतिभा के लिये तारीफें भी हासिल कीं, लेकिन ये फिल्में भी हिट की श्रेणी में शामिल नहीं हो पायी।

1965 में शशि कपूर की एक फिल्म आयी ‘जब जब फूल खिले’। यह अपने समय की बेहद सफल फिल्म साबित हुई। यही वो फिल्म थी जिसका शशि कपूर को इंतजार था। इसी साल एक और सुपर हिट फिल्म ‘वक्त’ भी रिलीज़ हुई, जिसमें राजकुमार, सुनील दत्त और बलराज साहनी के साथ शशि कपूर ने भी काम किया। शशि कपूर अपनी सरल, सुंदर और शर्मीले युवक की एक अलग अभिनय शैली को लेकर आगे बढ़ ते रहे।

Photo :  Babu Ram/Hindustan Times via Getty Images
Photo : Babu Ram/Hindustan Times via Getty Images
यह फोटो दिल्ली में 20 नवंबर 1971 को ली गई थी। मौका था फिल्म ‘कल, आज और कल’ के रिलीज का। तस्वीर में शशि कपूर के दाएं हैं उनके भाई राज कपूर और बाएं हैं भतीजे रणधीर कपूर

‘नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे’, ‘प्यार किये जा’, ‘हसीना मान जाएगी’, ‘जहां प्यार मिले’, ‘शर्मीली’, ‘आ गले लग जा’ और ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ जैसी फिल्मों ने शशि कपूर की इसी छवि को मजबूत बनाया। वे हिंदी सिनेमा के बहुत सुंदर अभिनेताओं में से एक थे और हिंसक रोल के लिये बिल्कुल मिस फिट थे, लेकिन उनका सौभाग्य था कि हिंसा के दौर की फिल्मों में उन्हें कई मल्टी स्टारर फिल्में ऐसी भी मिलीं, जो हिंदी सिनेमा के इतिहास में अमर हो गयीं। जैसे ‘दीवार’, ‘कभी कभी’ और ‘सिलसिला’।

हांलाकि शशि कपूर ने ‘फकीरा’, ‘सुहाग’ और ‘चोर मचाए शोर’ जैसी कई फिल्मों में हाथ पैर भी चलाए और लोगों ने उन्हें स्वीकार भी किया, लेकिन शशि कपूर के अंदर का अभिनेता उन्हें हमेशा लीक से हट कर फिल्में करने को प्रेरित करता रहा। इसी का नतीजा थी ‘उत्सव’, ‘सिद्धार्थ’, ‘जुनून’, ‘विजेता’ और ‘मुहाफिज’ जैसी फिल्में जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर न सिर्फ शशि कपूर, बल्कि भारतीय सिनेमा को भी चमक प्रदान की।

Photo : Pramod Thakur/Hindustan Times via Getty Images)
Photo : Pramod Thakur/Hindustan Times via Getty Images)
मई 2015 में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड मिलने पर उनके साथ तस्वीरें खिंचवाते करिश्मा कपूर, रणबीर कपूर, रेखा, नीतू सिंह और ऋषि कपूर

अपने पूरे कैरियर में तमाम अभिनेत्रियों के साथ काम करने वाले शशि कपूर महिलाओं में बेहद लोकप्रिय थे, लेकिन कभी किसी विवाद में नहीं घिरे इसकी अहम वजह थी उनका प्रेम विवाह। इंग्लैंड की रहने वाली जेनिफर केंडिल, जो अंग्रेजी रंगमंच से गहराई से जुड़ी थीं। जेनिफर को पृथ्वी थियेटर के एक नाटक के दौरान देख कर शशि कपूर उन्हें दिल दे बैठे और दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया। जब उनकी पहली फिल्म ‘धर्मपुत्र’ रिलीज हुई, तब शशि कपूर एक बेटे के पिता बन चुके थे।

सिनेमा की चमक दमक के बीच जिंदगी गुजारने वाले शशि कपूर ने अपनी पत्नी के साथ मिल कर पिता की स्थापित नाट्य कंपनी, पृथ्वी थियेटर को पुनर्जीवित किया। यह रंगमंच को लेकर उनके अथाह प्रेम का नतीजा था। अस्सी के दश्क में जब शशि कपूर की फिल्मों को व्यावसायिक रूप से सफलता मिलना कम होने लगा, तभी उनकी पत्नी का 1984 में निधन हो गया। इसके बाद शशि कपूर बुरी तरह से टूट गए। उनके दोनो बेटों कुणाल कपूर ‘(विजेता)’ और करण कपूर ‘(लोहा)’ ने भी फिल्मों में काम किया, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। जबकि, बेटी संजना, मां की तरह रंगमंच को समर्पित रहीं। 1989 में शशि कपूर की चार फिल्में ‘फर्ज की जंग’, ‘मेरी जुबान’, ‘ऊंच- नीच’, ‘बंदूक दहेज के सीन पर’ रिलीज हुईं। सभी फिल्में बुरी तरह नाकाम रहीं, साथ ही अभिनेता के रूप में शशि कपूर की छवि भी लगभग समाप्त हो गयी।

इसके बाद शशि कपूर बिखरते चले गए। उन्हें लगने लगा कि न तो वे पिता की तरह यादगार अभिनय का कोई कारनामा अंजाम दे पाए, न ही भाई राजकपूर की तरह बेमिसाल फिल्में बना सके। घोर निराशा में शशिकपूर को कई बीमारियों ने घेर लिया। पिछले कुछ सालों से शशि कपूर गुमनामी की हालत में व्हील चेयर पर निर्भर हो गए थे। 2014 में जब उन्हें सिनेमा के सबसे बड़े पुरस्कार दादा साहब फाल्के से सम्मानित किया गया, तो वे फिर चर्चा में आए। 18 मार्च 1938 को जन्मे शशि कपूर का 4 दिसंबर 2017 को निधन हो गया। इसके साथ ही सिनेमा के एक युग का भी अंत हो गया।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia