लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा में आगे रहे राजेंद्र सायल का निधन

छत्तीसगढ़ में हजारों बंधुवा मजदूरों के पुनर्वास में राजेंद्र सायल की प्रमुख भूमिका थी। छत्तीसगढ़ के महासमुंद और आसपास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में बंधक मजदूर थे पर उनकी आवाज दबी हुई थी। राजेंद्र सायल ने उनका संगठन बनाने और उनकी रिहाई में अग्रणी भूमिका निभाई।

फोटोः सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

प्रखर मानवाधिकार कार्यकर्ता राजेंद्र सायल का निधन हो गया है। राजेंद्र सायल की मृत्यु से लोकतांत्रिक अधिकारों का एक बड़ा रक्षक हमसे छिन गया। उन्होंने छत्तीसगढ़ में कई मोर्चों पर लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए साहस और सूझबूझ की भूमिका निभाई और मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के मुख्य पदों पर रहे।

उनकी एक प्रमुख भूमिका हजारों बंधुवा मजदूरों के पुनर्वास में रही थी जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार हुआ। छत्तीसगढ़ के महासमुंद और आसपास केे क्षेत्र में बड़ी संख्या में बंधक मजदूर थे पर उनकी आवाज दबी हुई थी। राजेंद्र सायल ने उनका संगठन बनाने और उनकी रिहाई में अग्रणी भूमिका निभाई। यह कार्य कठिनाईयों और जोखिमों से भरा हुआ था, पर इन चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार करते हुए उन्होंने बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। बाद में जब सुप्रीम कोर्ट ने इन बंधुवा मजदूरों के पुनर्वास के विस्तृत निर्देश जारी किए तो राजेंद्र सायल की पहल पर ही देश के अनेक अग्रणी सामाजिक कार्यकर्ता इस जिम्मेदारी से जुड़े और बड़ी संख्या में बंधक मजदूरों को एक नया जीवन प्राप्त हो सका।

शंकर गुहा नियोगी के नेत्तृत्व में एक ऐसा मजदूर आंदोलन छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले और आसपास के क्षेत्र में चला था जिसने दूर-दूर तक अपनी उपलब्धियों के आधार पर ध्यान आकर्षित किया था। न केवल अनेक मजदूरों का जीवन स्तर सुधर सका, अपितु नशे के विरोध, शिक्षा, पर्यावरण सजगता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बहुत कार्य इस श्रमिक संगठन ने किये। शंकर गुहा नियोगी के विभिन्न संघर्षों में राजेन्द्र सायल सदा उनके समर्थक और हितैषी के रूप में उनके साथ रहे और विशेषकर कठिन समय में उनको महत्त्वपूर्ण सहायता उपलब्ध करवाई।


अनेक ईसाई संगठनों में राजेन्द्र सायल और उनकी पत्नी शशि सायल का विशेष सम्मान था क्योंकि अपने धर्म को वे मजदूरों और निर्धन वर्ग के संघर्षों से जोड़ना चाहते थे। और साथ में सांप्रदायिक सद्भावना के प्रबल हिमायती थे। सांप्रदायिक सद्भावना के लिए उन्होंने बहुत कार्य किया और आजीवन सांप्रदायिकता का जमकर विरोध करते रहे। राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंसाफ’ संस्था में राजेंद्र सायल और शशि सायल ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दंपत्ति के दो बेटे आग्नेय और अक्षेय वकील हैं।

रचनात्मक कार्यों में तरह-तरह के तकनीकी और दस्तकारी प्रशिक्षण में उनका और शशि जी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। राजेंद्र अनेक क्षेत्रों की अनेक महत्त्वपूर्ण संस्थाओं में नेतृत्व की स्थिति में रहे और उनके मार्गदर्शन में इन संस्थाओं ने काफी प्रगति की। शशि जी के नेत्तृत्व में अनेक महिला-संगठनों ने बहुत सार्थक भूमिका निभाई और इस कार्य को मजबूत करने में राजेद्र जी का सहयोग सदा मिलता रहा।

उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण कानूनी लड़ाईयां कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा में लड़ीं और साथ में जमीनी स्तर के संघर्षों से जुड़े रहे। अपने क्षेत्र की स्थानीय समस्याओं से जूझते रहने के साथ उन्होंने अनेक सार्थक राष्ट्रीय स्तर के प्रयासों में भी योगदान दिया। एक कवि के रूप में भी उनकी अच्छी पहचान थी। लोकतंत्र की रक्षा के संघर्ष राजेंद्र सायल को सदा याद रखेंगे।

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Published: 27 Jan 2020, 10:11 PM