प्रोफेसर मुशीरुल हसन: भरपूर जिंदगी से भरे एक इतिहासकार, शिक्षक और प्रशासक का जाना

पद्म श्री प्रोफेसर मुशीरुल हसन एक ख्यातिप्राप्त इतिहासकार और जामिया के कुलपति होने के साथ-साथ भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक रहे और उनमें भरपूर जीवन और उर्जा थी।

फोटो: सोशल मीडिया
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जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय वैसा नहीं था जैसा आज हमें वो नजर आता है। उसकी बहुत साधारण इमारतें थीं और उनमें कोई आकर्षण नहीं था, लेकिन आज जो भी ओखला की तरफ जाने वाले उस रास्ते से गुजरता है वह विश्वविद्यालय की विराटता और सौंदर्य की स्वाभाविक रूप से प्रशंसा करता है। महान नेताओं के नाम पर रखे गए विश्वविद्यालय के बड़े दरवाजे उसे एक विराट रूप देते हैं और इन सबका श्रेय जाता है जामिया के पूर्व कुलपति मुशीरुल हसन को, जिनका आज निधन हो गया।

प्रोफेसर मुशीरुल हसन के भीतर जामिया को लेकर बहुत लगाव था। वरिष्ठ पत्रकार कमर आगा ने कहा, “उनके कार्यकाल के दौरान जामिया का कायाकल्प हो गया और आज यह भारत के सबसे खूबसूरत विश्वविद्यालयों में शामिल है। जामिया के लिए उनके दिल में खास जगह थी। कुलपति बनने के बाद उन्होंने एक बड़ी भूमिका निभाई। उनके पास एक दृष्टि थी और अपने विचारों और नीतियों को लागू करने में वे कभी नहीं हिचके।”

जामिया के लिए मुशीरुल हसन के लगाव को याद करते हुए जेएनयू के प्रोफेसर जयती घोष कहती हैं, “वह एक अतिसक्रिय कुलपति थे जिन्होंने जामिया के आधुनिकीकरण में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।” कुलपति के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान ही जामिया एक गुणवत्तापूर्ण संस्थान में विकसित हुआ।

पद्म श्री प्रोफेसर मुशीरुल हसन एक ख्यातिप्राप्त इतिहासकार और जामिया के कुलपति होने के साथ-साथ भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक रहे और उनमें भरपूर जीवन और उर्जा थी। कमर आगा याद करते हैं, “मैं उन्हें छात्र जीवन से जानता था जब वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मेरे सीनियर थे। वे डिबेट में बहुत अच्छे थे और अंग्रेजी या उर्दू के ज्यादातर डिबेट में पुरस्कार जीतते थे।” कमर आगा उनकी मौत से गहरे आश्चर्य में हैं और वे पुराने दिनों को याद करते हैं, “वे एमए में थे जब मैंने विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। उन्होंने वहां से इतिहास में स्नाकोत्तर किया और फिर वे आगे की पढ़ाई के लिए यूरोप चले गए। उन्होंने महासचिव पद के लिए एएमयू के छात्र संघ का चुनाव भी लड़ा था और एक कड़े मुकाबले में वे हार गए।” लोगों को ऐसा लग सकता है कि प्रोफेसर हसन एक कम्युनिस्ट थे, लेकिन कमर आगा बताते हैं कि “वे कम्युनिस्ट नहीं, बल्कि एक प्रगतिशील और घनघोर राष्ट्रवादी थे।”

यूरोप से लौटने के बाद उन्होंने जामिया में अध्यापन शुरू किया क्योंकि जामिया के साथ उनका पुराना रिश्ता था। उनके पिता जामिया में इतिहास के प्रोफेसर थे। कुछ समय के लिए उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया और फिर जामिया चले आए। उन्होंने अपनी सहपाठी जोया हसन से शादी की जो फिलहाल जेएनयू में प्रोफेसर हैं। जब वे जामिया में पढ़ाते थे तो उस वक्त वे जेएनयू में रहते थे क्योंकि जोया हसन को वहां रिहायश मिली हुई थी और इसलिए वे दोनों जगह पर लोकप्रिय थे। जैसा कि उनके दोस्त याद करते हैं मुशीरुल हसन ने जीवन के हर पहलू का आनंद उठाया। कमर आगा बताते हैं, “मुशीर का व्यक्तित्व काफी सक्रिय था, उन्होंने वृतचित्र बनाए, अंग्रेजी और उर्दू में स्तंभ लिखे, जगह-जगह व्याख्यान दिए और उन सबसे ज्यादा वे यारों के यार थे जिनका एक बहुत बड़ा दायरा था। एनडीटीवी और बीबीसी पर वे लगातार राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार प्रकट करने आते थे।”

लखनऊ से ताल्लुक रखने वाले प्रोफेसर हसन ने अपना ज्यादातर वक्त दिल्ली में गुजारा और आधुनिक भारत के इतिहास पर काफी अच्छा काम किया और राष्ट्रीय आंदोलन पर बहुत लिखा। उन्होंने कई इस्लामी संस्थाओं पर भी काम किया। वे शिक्षण और विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने राजनीतिक मुददों पर भी काम किया। राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक के तौर पर वे अभिलेखागार को जनता से जोड़ना चाहते थे।

2014 में उनका बहुत भीषण कार हादसा हुआ, हालांकि उनकी हालत काफी सुधर गई थी लेकिन तब से उन्हें बहुत मुश्किल जीवन व्यतीत करना पड़ा। उनके निधन में हमने एक महान इतिहासकार, प्रशासन, लेखक, वक्ता और कमाल का इंसान खो दिया है।

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