उत्तर प्रदेश में काठा नदी को जिंदा कर रहा है ‘पानी का दोस्त’ मुस्तकीम मल्लाह, मिला ‘भगीरथ प्रयास सम्मान’

मुस्तकीम मल्लाह शामली के कैराना तहसील के एक गांव के रहने वाले हैं और इलाके में ‘पानी का दोस्त’ के नाम से जाने जाते हैं। मुस्तकीम विलुप्त काठा नदी को जिंदा करने के लिए जुनून के हद तक जुटे हैं। इलाके में उनकी ‘एक लोटा जल’ मुहिम बहुत लोकप्रियता पा चुकी है।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
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आस मोहम्मद कैफ

हाल ही में ‘रिवर्स डे’ पर दिल्ली में भारतीय नदी फोरम द्वारा प्रदान किए जाने वाला ‘भगीरथ सम्मान- 2019’ शामली के मुस्तकीम मल्लाह को दिया गया है। यह सम्मान उन्हें उनके काठा नदी को जीवित करने के प्रयासों के चलते मिला है। मुस्तकीम मल्लाह शामली जनपद के कैराना तहसील के रामडा गांव के रहने वाले हैं और इलाके में ‘पानी का दोस्त’ के नाम से जाने जाते हैं। मुस्तकीम विलुप्त हो चुकी काठा नदी को जिंदा करने के लिए जुनून के हद तक जुटे हैं। इलाके में उनकी ‘एक लोटा जल’ मुहिम बहुत लोकप्रियता पा चुकी है।

इंडिया रिवर्स डे पर दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में ‘भगीरथ सम्मान’ मिलने से मुस्तकीम मल्लाह अभिभूत हैं। उन्हें यह सम्मान विलुप्त हो चुकी काठा नदी को जीवित करने के लिए प्रयासों के लिए मिला है, हालांकि जल संरक्षण, कालिन्दी की सफाई और यमुना में उनके द्वारा स्वच्छता अभियान जैसे उनके प्रयास भी सराहे जाते हैं।

उत्तर प्रदेश में काठा नदी को जिंदा कर रहा है ‘पानी का दोस्त’ मुस्तकीम मल्लाह, मिला ‘भगीरथ प्रयास सम्मान’

मुस्तकीम बताते हैं, “शिवालिक पहाड़ियों से निकलने वाली काठा नदी झरनों के स्रोत से पैदा होती थी और कैराना से होकर गुजरती थी। हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि इस नदी में घड़ियाल होते थे और कई बार लोग उनसे भिड़ जाते थे। आजादी से पहले अंग्रेजो ने नहरों को चलाने और नदियों को बंद करने का काम किया और गंगनहर शुरू की गई। इससे काठा नदी का अस्तित्व खतरे में आ गया और इसे बंद कर दिया गया। अब नहर चूंकि ऊंचाई पर होती है और नदी गहराई में इसलिए नदी के बंद होने से भूजल स्तर प्रभावित हुआ और इससे पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। जब नदी का पानी सूख गया तो लोगो ने इसकी जमीन पर अवैध कब्जे शुरू कर दिए। मैं मल्लाह हूं, मेरी रोजी-रोटी नदी किनारे होने वाले तरबूज, खरबूजे पर निर्भर करती है। जब नदी सुख गई तो मेरे लोगो को रोजगार के लिए भटकना पड़ा।”

मुस्तकीम आगे कहते है, “मैं मल्लाह का बेटा हूं। नदी मेरे लिए मां है, पानी मेरा भाई है ,वो मुझे रोटी देती है। नदी सुख जाती है तो मेरी जिंदगी भी सूखने लगती है। मेरा समाज संकट में आ जाता है। आज मेरे लोग तरबूज और खरबूजे की खेती करने के लिए दूर-दूर नदी किनारे जाते हैं और यहां जिस नदी की गोद में हमारे पूर्वज बड़े हुए हैं वो खत्म हो चुकी है। मेरे दिल के अंदर से आवाज आई कि काठा को जिंदा होना चाहिए। हमने ‘एक लोटा जल’ मुहिम चलाई। मैं लोगो के पास जाता था और उनसे एक लोटा जल काठा में दान करने का अनुरोध करता था। मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा नही था और अफसरों में इधर-उधर घूमता रहता था। मेरी हालत यह थी कि मुझे तहसीलदार और एसडीएम में बड़ा अफसर कौन होता है, यह भी नहीं समझ आता था! मगर मैं एक बात अच्छी तरह जानता था कि किसी भी तरह काठा नदी में पानी फिर से आना चाहिए।”

अपने संघर्ष के बारे में उन्होंने आगे कहा, “इसके लिए टेक्निकली मुझे वैज्ञानिक उमर सैफ ने बहुत मदद की। प्रयास तो हम एक दशक से कर रहे थे, मगर जब 2017 में आईआईटी रुड़की से जल विद्वान प्रोफेसर गुप्ता आए और उन्होंने हमें सराहा और कहा कि उनके 600 वैज्ञानिक इस पर काम करेंगे, तब हमें पता चला कि सिर्फ हम ही नहीं चाहते हैं कि काठा जिंदा हो।” मुस्तकीम बताते हैं कि तमाम मखलूक खुदा की बनाई हुई हैं। नदियों की गंदगी उनकी जान ले रही है। यहां पीने का पानी भी अशुद्ध हो चुका है। हालात ये हैं कि एक बार उनके गांव में काला पीलीया नाम की बीमारी फैल गई जिससे पूरा गांव प्रभावित हुआ और कोई घर नहीं बचा। भूजल स्तर यहां पूरी तरह गिर चुका है। नदियों का साफ जल करोड़ों जिंदगी बचा सकता है।

काठा नदी के अलावा मुस्तकीम मामूर झील का अस्तिव बचाने में कामयाब हुए हैं। इसके अलावा उनके प्रयासों से कालिन्दी नदी और यमुना की सफाई पर भी काम हुआ है। इसके लिए भी स्थानीय स्तर पर वो काफी सराहे जाते हैं। शामली के अनुज सैनी बताते हैं कि मुस्तकीम मल्लाह को क्षेत्र के लोग पानी का दोस्त कहने लगे हैं। वो जल संरक्षण और नदी शुद्धिकरण की दिशा में अच्छा काम कर रहे हैं। पिछले दिनों यमुना में काला पानी आने के कारण बहुत से जीव-जंतुओं को मौत हो गई थी, जिसके बाद मुस्तकीम ने यमुना की गंदगी दूर करने के लिए भरसक प्रयास किये।


अपने प्रयासों से मुस्तकीम लाखों लीटर जल संरक्षण करने में कामयाब हो चुके हैं। वो कहते हैं कि काठा नदी को यमुना के 'ओवरफ्लो' से आसानी से जीवित किया जा सकता है। बाढ़ के पानी से होने होने वाली तबाही से भी इस प्रकार मुक्ति मिल जाएगी और काठा के जीवित होने के तमाम फायदे भी होंगे। साल 2010 से मुस्तकीम मल्लाह पूरी तरह इस मुहिम के हो गए। इस दौरान उन्होंने कई लघु बांध बनाए और जल संरक्षण किया। साल 2014 से भारतीय नदी फोरम ने देश भर में नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास करने वालों को भगिरथ सम्मान देने का निर्णय लिया तो मुस्तकीम सबसे कम उम्र में यह सम्मान पा गए।

मुस्तकीम की मानें तो अक्सर काठा नदी को जीवित करने के अभियान के संयोजक मुस्तकीम के गांव के लोग फावड़ा उठाकर खुद काठा की सफाई में जुट जाते हैं। मुस्तकीम कहते हैं, "सरकारी स्तर पर उन्होंने अत्यधिक प्रयास किए हैं। कोई दरवाजा नहीं छोड़ा, मगर अब तक सरकार से ज्यादा सहयोग आम लोगो का मिला है।” मुस्तकीम काठा में लघु बांध के जरिये बारिश का करोड़ों लीटर पानी संचित करने में भी कामयाब हुए हैं।

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