जन्मदिन विशेष: दिलीप कुमार के एक फोन कॉल से टल गई थी भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाली संभावित जंग
वाजपेयी के कहने पर नवाज शरीफ को कॉल किया गया और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अवाक रह गए जब उन्होंने दूसरी तरफ से दिलीप कुमार की आवाज सुनी। दिलीप कुमार की आवाज का नवाज शरीफ पर जादू हुआ और भारत-पाकिस्तान के बीच जंग की संभावना टल गई और सीमा पर तनाव खत्म हो गया।
दिलीप कुमार हमेशा अपने कसे हुए अभिनय के लिए जाने जाते रहे हैं। लेकिन कितने भारतीय जानते हैं कि उन्होंने पाकिस्तान के तात्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सिर्फ एक कॉल कर भारत-पाकिस्तान की संभावित जंग को टाल दिया था? और कितने भारतीय मुस्लिम जानते हैं कि उन्होंने पिछले मुसलमानों को आरक्षण दिलवाने में किस तरह मदद की?
अभिनय स्वाभाविक रूप से दिलीप कुमार को मिला था और उन्होंने अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख खान तक हमारे समय के कई अभिनेताओं को प्रभावित किया। एक वक्त में दिलीप कुमार भारतीय सिनेमा के सबसे चमकते सितारे थे। लेकिन दिल्ली कुमार का एकमात्र प्यार अभिनय नहीं है। वे काफी सक्रिय पाठक रहे हैं और हिंदी-उर्दू के अलावा अंग्रेजी और मराठी पर उनका वैसा ही नियंत्रण रहा है। उनके पास एक गजब की लाइब्रेरी भी है।
दिलीप कुमार के परिवार ने आजादी के तुरंत बाद पेशावर से नासिक में आकर शरण ली थी। कई वर्षों तक वे देवलाली में रहे। तो जब भी वे नासिक जिले के किसी नागरिक से मिलते हैं तो स्थानीय बोली में बात करते हैं – जो मराठी पश्चिम महाराष्ट्र की भाषा है। उन्होंने कई मराठी गीतों को याद कर लिया था और सबसे ज्यादा मराठी थियेटर का पारंपरिक रूप तमाशा उन्हें पसंद था और लावण्य से वे अच्छी तरह परिचित थे। जब भी उनका मन होता वे सही सुर लावण्य गाते थे।
बहुत समय पहले उन्होंने मुझे बताया था कि वे नासिक की स्थानीय मराठी बोलते हैं और उन्हें मुंबई और पुणे की स्थानीय मराठी अच्छी तरह समझ में नहीं आती।
औरंगाबाद में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान एक बार उन्हें पता चला कि डॉ बाबासाहेब अंबेडकर शुभेदारी गेस्ट हाउस में ठहरे हुए हैं और वे उनसे मिलने चले गए थे। उनकी लंबी बातचीत हुई और संवाद के दौरान बाबासाहेब ने उनसे कहा कि वे मुस्लिम समुदाय दबे-कुचले लोगों के लिए कुछ करें। हालांकि वे अपनी पेशेवर प्रतिबद्धताओं के चलते इस काम को तुरंत शुरू नहीं कर पाए, लेकिन उनके दिमाग में लगातार डॉ अंबेडकर की यह बात चलती रही और इस तरह उन्होंने बाद में पिछड़े मुसलमानों के लिए काम करना शुरू किया।
इस्लाम जाति-व्यवस्था को स्वीकार नहीं करती क्योंकि उसमें जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। लेकिन भारत में मुस्लिम समुदाय ने यहां चल रही जाति व्यवस्था का अनुसरण किया और वे भी भारतीय जाति-व्यवस्था का हिस्सा बन गए। यही वजह है कि मंडल कमीशन ने ओबीसी की सूची में कई मुस्लिम समूहों को भी शामिल किया। ओबीसी मुस्लिम समुदाय का आंदोलन उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था करने के लिए शुरू हुआ। शुरुआत में, उच्च जाति के मुसलमानों ने इसका विरोध किया। लेकिन दिलीप कुमार मजबूती से डटे रहे जिससे ओबीसी मुस्लिम के खिलाफ यह माहौल खत्म हुआ। महाराष्ट्र में कई जगहों पर सम्मेलन हुए। दिलीप कुमार ने खुद लखनऊ, दिल्ली, हैदराबाद जैसे कई शहरों का दौरा किया और आंदोलन को अपना समर्थन दिया। पहले उन्हें तात्कालीन सीएम शरद पवार का समर्थन मिला। बाद में विलासराव देशमुख और ओबीसी समुदाय से आने वाले छगन भुजबल ने सरकार की ताकत उनके पीछे झोंक दी, ताकि वे इस काम में कामयाब हो पाएं।
जब मैंने उनसे पूछा कि उन्हें इसकी प्रेरणा और साहस कहां से मिला, उन्होंने कहा कि यह सिर्फ बाबासाहेब की वजह से नहीं हुआ और उन्होंने एक कमाल की बात बताई। दिलीप कुमार मुंबई विश्वविद्यालय की फुटबॉल टीम के सदस्य थे। अंतर-विश्वविद्यालय प्रतिस्पर्धा जीतने के बाद टीम के कप्तान बाबू ने अपने आवास पर टीम के सदस्यों को रात्रि-भोज के लिए आमंत्रित किया। बाबू ने खुद ही चिकन पकाया, लेकिन सिर्फ दिलीप कुमार ही रात्रि-भोज के लिए पहुंचे। दिलीप कुमार ने स्वाभाविक रूप से पूछा कि बाकी लोग क्यों नहीं आए। विजेता टीम के कप्तान बाबू ने तब उन्हें बताया, “यूसुफ भाई, मैं एक दलित हूं। वे मेरे द्वारा बनाया गया खाना कैसे खाएंगे?”
जब दिलीप कुमार ने यह किस्सा सुनाया तो उनकी आंखें भींग गईं और उनकी आवाज भारी हो गई थी।
इसके अलावा एक और बात भी हुई थी। अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे। नवाज शरीफ पाकिस्तान में सत्ता का नेतृत्व कर रहे थे। भारत और पाकिस्तान के बीच जबरदस्त तनाव चल रहा था। अचानक दिलीप कुमार के बांद्रा स्थित आवास पर फोन की घंटी बजने लगी। उधर वाजपेयी फोन पर थे। उन्होंने जल्दी दिलीप कुमार को दिल्ली आने के लिए कहा। डॉ जाहिर काजी के साथ दिलीप कुमार देश की राजधानी के लिए रवाना हुए। डॉ काजी उनके करीबी दोस्त और डॉक्टर थे। डॉ काजी स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से आते थे और खुद उनकी पत्नी भी स्वतंत्रता सेनानी थीं।
वाजपेयी के कहने पर नवाज शरीफ को कॉल किया गया और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अवाक रह गए जब उन्होंने दूसरी तरफ से दिलीप कुमार की आवाज सुनी। वे दिलीप कुमार के जबरदस्त प्रशंसक हैं। दिलीप कुमार की फिल्मों के कई गीत और संवाद नवाज शरीफ के दिल में बसे हुए हैं। दिलीप कुमार की आवाज का नवाज शरीफ पर कमाल का जादू हुआ और भारत-पाकिस्तान के बीच जंग की संभावना टल गई और सीमा पर तनाव खत्म हो गया। वाजपेयी ने एक बहुत सीधा लेकिन चालाक तरीका अपनाया और दिलीप कुमार के कुटनीतिक इस्तेमाल से दोनों देश एक बड़े सशस्त्र संघर्ष से बच गए।
अपने लंबे जीवन में पत्नी सायरा बानो का सहयोगा दिलीप कुमार को लगातार मिलता रहा। आज वे लगातार मां की तरह उनका ख्याल रखती हैं। उन्होंने दिलीप कुमार की कई सामाजिक गतिविधियों में उनका साथ दिया। सायरा बानो ने पूरी तरह अपना जीवन अपने पति को समर्पित कर दिया। वे एक कमाल की अभिनेत्री हैं लेकिन उससे भी ज्यादा उनकी संगिनी हैं।
दिलीप कुमार निस्संदेह एक महान अभिनेता हैं लेकिन उनके भीतर का मानवतावादी और राष्ट्रवादी कई ज्यादा महत्व रखता है। दबे-कुचले मुसलमानों के लिए उनका योगदान अतुलनीय है। हिन्दू-मुस्लिम एकता को स्थापित रखने में उनकी भूमिका भी बहुत अहम रही है।
केंद्र सरकार को उनके जैसी महान शख्सियत को सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न देकर सम्मान करना चाहिए। आज 11 दिसंबर को दिलीप कुमार का जन्मदिन है। हम दिलीप कुमार और सायरा बानो दोनों को शुभकामना देते हैं और इस कमाल की जोड़ी अपना सलाम पेश करते हैं।
(लेखक पूर्व पत्रकार हैं)
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