जन्मदिन विशेष: 77 साल के ‘शहंशाह’ की हुकूमत को 50 साल हो गए, कभी ‘नीम-नीम’ तो कभी ‘शहद-शहद’, ऐसा रहा उनका सफर
अपने पिता की कविताओं को ही नहीं बल्कि दूसरे साहित्यकारों को भी पढ़ने और जानने वाले अमिताभ को पता है कि लोगों को उनकी एंग्री मैन की छवि भाती थी। इसलिए अमिताभ एंग्री मैन की छवि का दामन तो नहीं छोड़ सके लेकिन अंदाज बदल दिया।
77 साल के शहंशाह की हुकूमत को 50 साल हो रहे हैं। शहंशाह बोले तो अमिताभ बच्चन। यह इत्तेफाक ही है कि जिस अक्टूबर माह में उन्का जन्म हुआ उसी महीने में 50 साल पहले उनकी पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी भी रिलीज हुई थी।
पचास साल पहले वे फिल्मों में सहमे सकुचाए हुए आए थे। पचास बरस सिल्वर स्क्रीन पर। इस दौरान दिलीप कुमार, देवानन्द और राजकपूर से लेकर सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान और फिर रणवीर सिंह और रनबीर कपूर तक तीन पीढ़ियों को पर्दे पर अकेले अमिताभ से मुकाबला करना पड़ा। और वक्त अभी ठहरा नहीं हैं, लेकिन अमिताभ बच्चन में अब भी वही दमखम और उसी तरीके से चलते रहने का जज़्बा दिखाई देता है।
अमिताभ के किस रंग को देखना चाहते हैं आप या पसंद करते हैं। नायक, गायक, बेतहाशा हंसाने वाला, डूब कर इश्क करने वाला या फिर विद्रोही। उनके हर रूप ने दर्शकों को गहराई तक प्रभावित किया है। फिल्में हिट और फ्लॉप होती रहीं, लेकिन अमिताभ हमेशा पसंद किए गए। अपनी पहली हिट फिल्म जंजीर से पहले लगातार 12 फ्लॉप फिल्में देने वाले अमिताभ के अंदर कुछ तो था ही जो उन्हें एक के बाद एक फिल्में मिलती रहीं।
और हिट फिल्मों को दैर में आलम ये हुआ कि जब 40 फिट ऊंचे पर्दे पर अमिताभ बच्चन कोई डायलाग बोलते तो सिनेमा हाल में बैठे दर्शक खुद को अमिताभ मान कर तालियां बजाते और फिल्म खत्म होने पर जीत का एहसास लिए सिनेमा हाल से बाहर निकलते। ऐसी कामियाबी भला किसके नसीब में आती है। हांलाकि जंजीर, दीवार, हेरी फेरी, डान, शोले, नसीब, मुकद्दर का सिकंदर, अमर अकबर एंथोनी, शक्ति और शान जैसी फिल्मों के दौर में अमिताभ ने अभिमान, मिली और अलाप जैसी फिल्में भी कीं । इन फिल्मों में गुस्से की आग से धधकते अमिताभ की जगह एक ऐसे अमिताभ से सामना होता है जो आम इंसानों की तरह है। मिताभ का यह रूप भी लोगों को पसंद था वरना कभी कभी और सिलसिला जैसी फिल्मों को अमिताभ कैसे यादगार बना देते। फिर भी फिल्म दुनिया की भेड़ चाल मिताभ से एक ही तरह की फिल्में करवाती चली गई।
इसका जो अंजाम होना था वही हुआ नब्बे के दश्क में अमिताभ की फिल्में फ्लॉफ होनी शुरू हुईं। एक दो नहीं बल्कि कई फिल्में। मान लिया गया कि अमिताभ का युग समाप्त हो चुका है, लेकिन फिर कहना पड़ेगा अमिताभ में कुछ तो था जो फिर मुख्यधारा के सिनेमा में शान के साथ वापसी की। दरअसल अमिताभ सिर्फ यूं ही अमिताभ नहीं बने अमिताभ फिल्मों के भीतर घुस जाते हैं, उसकी स्क्रिप्ट और यहां तक की कैमरे से क्या नजर आ रहा है यह भी समझते हैं। उनकी इस काबलियत को पहले के मुकाबले इस दौर के निर्देशक ज्यादा तरजीह दे रहे हैं और उसके नतीजे भी सामने आ रहे हैं।
अपने पिता की कविताओं को ही नहीं बल्कि दूसरे साहित्यकारों को भी पढ़ने और जानने वाले अमिताभ को पता है कि लोगों को उनकी एंग्री मैन की छवि भाती थी। इसलिए अमिताभ एंग्री मैन की छवि का दामन तो नहीं छोड़ सके लेकिन अंदाज बदल दिया। गुस्सैल इंसान की उनकी छवि बाग़बान में भी है, अक्स में भी है और सरकार में तो यह छवि इस तरह उभरी की राम गोपाल वर्मा ने उसके दो सीक्वल ही बना डाले। फिर भी अमिताभ चाहते थे कि उनके अभिनय के जो और रंग हैं उन्हें भी सामने ला सकें। उन्हें जैसे ही मौके मिले उनकी फिल्मों ने लोगों को हैरत में डाल दिया कि अरे अमिताभ तो ऐसा भी कर सकते हैं।
इसी कड़ी में पीकू भी आती है, भूतनाथ भी आती है, ब्लैक भी आती है और 102 नाटआउट भी आती है। उनकी इस दौर की फिल्मों पर ध्यान दें तो पाएंगे कि अमिताभ बच्चन जब सिल्वर स्क्रीन पर उभरते हैं तो उनके इर्द गिर्द का ताना बाना अपने आप इस तरीके सामने आता है कि लगता है अमिताभ बच्चन कुछ नई परिस्थितियों को नए तरीके से सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं।
अमिताभ आगे और क्या क्या दिखाएंगे ये किसे पता। उनके प्रशंसक तो यही चाहते हैं कि अमिताभ लगातार काम करते रहें और अभिनय के नए अंदाज, जुदा रंग और अलग रास्ते बनाते रहें।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
- Amitabh Bachchan
- Kaun Banega Crorepati
- अमिताभ बच्चन
- Amitabh 77th Birthday
- Amitabh Bachchan Birthday
- अमिताभ बच्चन का जन्मदिन