अदम गोंडवी: ‘विधायक निवास में भुने काजुओं के साथ उतरे रामराज’ की व्याख्या करने वाला कवि
ऐसे कवियों और उनकी कविता को साहित्य के तथाकथित प्रतिष्ठित पुरस्कार नहीं मिलते। वे तो ज्यादातर शहरी, बौद्धिक और नफीस किस्म के कवियों को मिलते हैं। लेकिन जन स्मृति में कबीर, तुलसी, दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी जैसे कवियों के शब्द और कथन हमेशा जिंदा रहते हैं।
रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी हिंदी की उस धारा के कवि हैं जो हमेशा जमीन से जुड़े लोगों और उनके सरोकारों के बारे में बेहद सरल और नुकीले शब्दों में बात करती रही है। दुष्यंत कुमार की गजलों की तर्ज पर अदम गोंडवी ने भी ऐसी कविताएं लिखीं जो कतार में बिल्कुल आखीर में खड़े इंसान के बारे में बात करती हैं और उसे समझ भी आती हैं। अमूमन हिंदी कविता क्रांतिकारी मुद्दों पर बात तो करती है लेकिन ऐसे बौद्धिक या कभी-कभी इतने गद्यात्मक तरीके से कि आम जन को वह अपील नहीं करती। लेकिन अदम गोंडवी सर से पांव तक जमीन से जुड़े शख्स थे। उनकी शख्सियत और कविता दोनों इसी जमीन की मिटटी में पगी थीं।
जाहिर है ऐसे कवियों और उनकी कविता को साहित्य के तथाकथित प्रतिष्ठित पुरस्कार नहीं मिलते। वे तो ज्यादातर शहरी, बौद्धिक और नफीस किस्म के कवियों को मिलते हैं। लेकिन जन स्मृति में कबीर, तुलसी, दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी जैसे कवियों के शब्द और कथन जिंदा रहते हैं। और यही कविता की ताकत है।
साहित्यिक तौर पर अदम गोंडवी की एक बड़ी उपलब्धि ये रही कि वे बहुत तल्खी और साफगोई से उन शब्दों का इस्तेमाल करते हुए अपनी बात रखते हैं, जिन्हें अक्सर ‘साहित्यिक’ तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाता। उनकी कविताओं की कुछ पंक्तियां कुछ इस तरह हैंः
‘खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हम को पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में’
‘काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में’
‘चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा’
‘क्या कहें सरपंच भाई क्या ज़माना आ गया
कल तलक जो पांव के नीचे था रुतबा पा गया’
‘कहती है सरकार कि आपस मिलजुल कर रहो
सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो’
‘'कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएं नहीं
हुक्म जब तक मैं न दूं कोई कहीं जाए नहीं'
‘यह दरोगा जी थे मुंह से शब्द झरते फूल से
आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से.’
भाषा की रवानगी ये है कि उर्दू और हिंदी, यहां तक कि देहाती शब्द भी सहजता से कविता का हिस्सा बन जाते हैं और पता ही नहीं चलता कि वो कविता कब जबान पर चढ़ गयी!
किसी भी वाद, दल या विचारधारा का समर्थन करने की बजाय ये कविताएं सिर्फ और सिर्फ एक आम नागरिक की पीड़ा, उसका गुस्सा, आक्रामकता और बेबसी ही बयान करती हैं। उनकी कविता में करुणा है तो विडंबना भी, गुस्सा है तो असहायता का भाव भी, वो समाज को उसकी मानसिकता पर कबीर की तरह झिड़कते हैं तो इस मानसिकता में फंसे एक व्यक्ति की पीड़ा भी उतनी ही प्रभावपूर्ण तरीके से कहते हैं। एक खास फक्कड़पना है उनकी रचनाओं में जो हमारी देसी परंपरा और संस्कार का एक अंग भी है।
शायद ही किसी कवि ने इतनी बेबाकी से देश के नेताओं को लताड़ा होगा और कई मुद्दों पर समाज और राजनीति के दोगलेपन पर इतनी सटीक और तल्ख टिप्पणी की होगी जितनी अदम गोंडवी ने की है।
आज के दौर में जब जाति, धर्म यहां तक कि जेंडर की राजनीति आम जिंदगी को दूभर और बोझिल बनाए हुए है, अदम गोंडवी की कविताएं और अधिक प्रासंगिक हो गयी हैं। वे महान कवि तो नहीं, लेकिन हां आम जन के कवि थे और हमेशा अपनी बेबाक कविताओं से इस समाज को असलियत का आईना दिखाते रहेंगे।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
- Revolutionary Poet
- Hindi Literature
- Hindi Poet
- हिंदी साहित्य
- हिंदी कविता
- Adam Gondvi
- Ramnath Singh
- अदम गोंडवी
- रामनाथ सिंह
- क्रांतिकारी कवि