खरी-खरी: सामाजिक पिछड़ेपन की नींद तोड़ खुली आजादी में सांस लेने को मचल रही मुस्लिम देशों की युवा पीढ़ी

अरब एवं मुस्लिम देश जो अभी तक पिछड़ेपन की गहरी नींद सो रहे थे, अब अंगड़ाई ले रहे हैं। इस 21वीं सदी में सऊदी अरब से लेकर ईरान तक युवा पीढ़ी दुनिया में सिर ऊंचा कर जीना चाहती है

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ज़फ़र आग़ा

कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली! अर्जेंटीना फुटबाल टीम और सऊदी टीम का कुछ ऐसा ही हाल था। लेकिन फीफा वर्ल्ड कप 2022 में गंगू तेली ने राजा भोज को 2-1 गोल से पीट दिया। इस बात से दुनिया आश्चर्यचकित रह गई। सच तो यह है कि कतर में चल रहा फुटबाल वर्ल्ड कप इस बार खेल के लिए कम, राजनीतिक कारणों से ज्यादा याद किया जाएगा। सऊदी अरब की टीम की ऐतिहासिक जीत से एक रोज पहले ईरानी टीम ने वह कर दिखाया जो कोई सोच भी नहीं सकता था।

आप तो जानते ही हैं कि किस प्रकार ईरानी खिलाड़ियों ने अपना राष्ट्रीय गान न गाकर अपने देश में चल रहे महिलाओं के हिजाब विरोधी आंदोलन के साथ अपना सहयोग प्रकट किया। फिर स्वयं कतर जैसे छोटे से अरब देश ने फीफा 2022 को सफलतापूर्वक चलाकर दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। सारी दुनिया का यह मानना था कि कतर जैसे रेगिस्तान में फीफा वर्ल्ड कप जैसे बड़े शो का आयोजन संभव नहीं है। लेकिन कतर में अभी तक वर्ल्ड कप पूरे आन-बान से चल रहा है।

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Simon M Bruty

संयोग से ये तीनों बातें मुस्लिम देशों से जुड़ी हैं। इन तीनों बातों का सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर अपना एक गहरा महत्व है। यह इस बात का संदेश है कि वह अरब एवं मुस्लिम देश जो अभी तक पिछड़ेपन की गहरी नींद सो रहे थे, वे अब अंगड़ाई ले रहे हैं। जी हां, इस 21वीं सदी में सऊदी अरब से लेकर ईरान तक युवा पीढ़ी अब दुनिया में सिर ऊंचा कर जीना चाहती है। आइए, जरा देखें कि इन इस्लामी देशों में क्या कोई बड़ा परिवर्तन होने वाला है। यदि हां, तो वह क्या और क्यों! 

कतर को ही लीजिए। अरब देशों में सबसे छोटा देश। वहां के मूल निवासियों की जनसंख्या कुछ लाख से अधिक नहीं। तेल की दौलत के बावजूद देश को चलाने वाले अधिकांश बाहर से आए कर्मचारी ही हैं। तेल की आमदनी के कारण कतरियों का जीवन सुख-शांति से बीत रहा है। लेकिन फिर भी कतर के अमीर शेख़ ख़ालिद बिन ख़लीफा बिन अब्दुल अज़ीज़ अल थानी ने यह ठान लिया कि सन 2022 में होने वाला फीफा वर्ल्ड कप वह अपने ही देश में करवा कर रहेंगे।


आखिर, वह अपनी धुन में कामयाब हुए। उन पर आरोप लगा कि कतर ने फीफा आयोजकों को पैसा खिलाकर वर्ल्ड कप का आयोजन कतर में करवाया है। सारी दुनिया की मीडिया में इसके खिलाफ शोर मचा। फिर सबने यह आशंका प्रकट की कि कतर के लिए यह संभव ही नहीं है कि वह फीफा वर्ल्ड कप का ठीक से आयोजन कर सके। लेकिन पिछले आठ-दस दिनों से फीफा मैचों का बिल्कुल ठीक आयोजन चल रहा है। कहीं किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं है। देश में आए हजारों फुटबाल प्रेमी भी प्रसन्न हैं कि कतर ऐसा कर कैसे पाया। इसके दो कारण हैं। पहला तो यह कि शेख़ ख़ालिद बिन ख़लीफा बिन अब्दुल अज़ीज़ अल थानी युवा शासक हैं और उनके मन में यह लालसा है कि दुनिया में कतर का नाम हो। इसी के साथ-साथ कतर की युवा पीढ़ी दुनिया के साथ 21वीं शताब्दी से एक आधुनिक पीढ़ी के रूप में जुड़ना चाहती है।  

यही कारण है कि कतर में राजा से लेकर रंक तक सबने पूरी लगन, मेहनत एवं इच्छा शक्ति से फीफा वर्ल्ड कप 2022 की पांच वर्षों तक तैयारी की और अंततः सारी दुनिया को चकित कर दिया। आज कतर बराक ओबामा की तरह दुनिया से यह कह सकता है कि ‘यस, वी कैन डू इट’ (हां, हम यह कर सकते हैं)।

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यह सामाजिक परिवर्तन का संदेश है जो कतर के नौजवान बादशाह से लेकर आम कतरी युवा पीढ़ी तक दुनिया को देना चाहते हैं। यह इस बात का भी इशारा है कि कतर सारी दुनिया की तरह 21वीं शताब्दी से जुड़कर सिर उठा कर जीना चाहता है। यह किसी भी अरब देश के लिए एक बड़ा परिवर्तन ही नहीं बल्कि एक सामाजिक क्रांति से कम बात नहीं है।  

यही हाल कुछ कतर के पड़ोसी सऊदी अरब का है। अभी कुछ दिनों पहले तक सऊदी अरब अपने कट्टरपंथी इस्लामी पिछड़े देशों में से एक माना जाता था। लेकिन सऊदी फुटबाल टीम ने मेसी जैसे विश्व ख्याति वाले खिलाड़ी की अर्जेंटीना की टीम को हराकर सारी दुनिया को झिंझोड़ दिया। यह भी इसी बात का संकेत था कि अब दुनिया सऊदी अरब को वह सऊदी अरब न समझे जो अपनी तेल की दौलत की छाया में एक कट्टरपंथी इस्लामी देश है। जिस प्रकार सऊदी टीम ने लगन, मेहनत और जोश के साथ मेसी की टीम को हराया वह भी यही संकेत दे रहा था कि अब सऊदी 21वीं शताब्दी के साथ जुड़ने को तैयार है। उसके लिए कितना ही कठिन परिश्रम करना पड़े, सऊदी युवा पीढ़ी तैयार है।  


देश में चल रही इस लहर का सेहरा वहां के युवा शासक और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान को भी जाता है। उन्होंने अपने देश में चली आ रही बहुत सारी कट्टरपंथी परंपराओं को तोड़कर जिस प्रकार सऊदी समाज को आधुनिकता से जोड़ा, उसने सऊदी युवा पीढ़ी में एक नई ऊर्जा उत्पन्न कर दी। यह वही ऊर्जा थी जो कतर में अर्जेंटीना की टीम के खिलाफ फीफा मैच के दौरान दिखाई पड़ रही थी। यह भी इसी बात का संकेत है कि सऊदी समाज भी अंगड़ाई ले रहा है और वह अब नई शताब्दी में एक नया आधुनिक जीवन जीने को व्याकुल है।  

यह तो रहा अरब देशों का दुनिया को संदेश। लेकिन इन देशों के करीब ही ईरानी फुटबाल टीम ने तो सीधा राजनीतिक संदेश देकर स्वयं ईरानी शासक मुल्लाओं एवं सारी दुनिया को हिला दिया। जिस प्रकार ईरानी टीम ने फीफा वर्ल्ड कप 2022 के उद्घाटन समारोह के दौरान अपना राष्ट्रीय गान पढ़ने से इनकार कर दिया, वह एक बड़ा राजनीतिक एवं सामाजिक संदेश था।

सब वाकिफ हैं कि ईरान में महिलाएं नकाब जबरदस्ती पहनवाने की प्रथा के खिलाफ सड़कों पर हैं। वे मुल्लाओं की इस जोर जबरदस्ती के खिलाफ जान तक की कुर्बानी दे रही हैं। लेकिन यह आंदोलन कतर में फीफा वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले एक महिला आंदोलन ही समझा जाता था। लेकिन ईरानी फुटबाल टीम ने अपने राष्ट्रीय गान पर चुप्पी साधकर अपनी सरकार को यह संकेत दे दिया कि हिजाब विरोधी महिला आंदोलन सारी ईरानी युवा पीढ़ी का आंदोलन है। औरतें हों या मर्द, सब एकजुट हैं। अब इस पीढ़ी को आजादी चाहिए ताकि वह सारी दुनिया के साथ एक आधुनिक जीवन व्यतीत कर सके। 

फीफा वर्ल्ड कप 2022 में होने वाली इन दो-तीन बातों से यह स्पष्ट है कि अधिकांश मुस्लिम देशों में एक क्रांति मचल रही है। आज इन देशों की युवा पीढ़ी घुटन से निकल खुली आजादी की सांस लेना चाहती है और वह सारी दुनिया के समान खुद भी आधुनिकता से जुड़ना चाहती है। यह एक बड़ा सामाजिक उथल-पुथल भी पैदा कर सकता है। मुस्लिम देशों में मचल रही इस क्रांति को लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता है। 

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