जी हां, आज देश में विषमताएं असहनीय हद तक बढ़ गई हैं!
आजादी के बाद भारत की पहचान समतावादी देश के रूप में बनी थी, पर आज स्थिति यह है कि भारत में तेजी से बढ़ती विषमताएं विश्व स्तर पर चिंता और चर्चा का विषय बन गई है।
आजादी के बाद भारत की पहचान समतावादी देश के रूप में बनी थी, पर आज स्थिति यह है कि भारत में तेजी से बढ़ती विषमताएं विश्व स्तर पर चिंता और चर्चा का विषय बन गई है। विशेषकर पिछले सात-आठ वर्षों में भारत में विषमता बहुत तेजी से बढ़ी है। विश्व विषमता रिपोर्ट 2022 ने इस ओर ध्यान आकर्षित किया है। इस रिपोर्ट को विश्व और विभिन्न देशों में समानता या विषमता के आकलन की दृष्टि से अच्छी-खासी विश्वसनीयता प्राप्त है।
इस रिपोर्ट ने बताया है कि संपत्ति के वितरण की दृष्टि से देखें तो भारत में नीचे के 50 प्रतिशत परिवारों का पास मात्र 6 प्रतिशत संपत्ति है। दूसरी ओर ऊपर के 10 प्रतिशत परिवारों के पास कुल संपत्ति का 65 प्रतिशत हिस्सा है। ऊपर के मात्र एक प्रतिशत परिवारों के पास कुल संपत्ति का 33 प्रतिशत हिस्सा है।
आय के वितरण की दृष्टि से देखें तो नीचे के 50 प्रतिशत परिवारों क पास कुल आय का मात्रा 13 प्रतिशत हिस्सा है। दूसरी ओर ऊपर के 10 प्रतिशत परिवारों के पास कुल आय का 57 प्रतिशत हिस्सा है व ऊपर के मात्र 1 प्रतिशत परिवारों के पास कुल आय का 22 प्रतिशत हिस्सा है।
यहां इस ओर ध्यान दिलाना जरूरी है कि भारतीय स्वतंत्राता समर के दौरान महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, सुभाष चंद्र बोस, मौलाना आजाद, बादशाह खान, शहीद भगत सिंह जैसे सभी अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों में इस बारे में एकमत था कि देश को सामाजिक व आर्थिक न्याय व समता की राह पर आगे ले जाना है। आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के समय में हम विषमता से समता की ओर निश्चित तौर पर बढ़े। देश अधिक समतावादी बना। पर विश्व विषमता रिपोर्ट ने बताया है कि आज वर्ष 2022 में फिर लगभग वैसी ही विषमता भारत में नजर आ रही है जैसी औपनिवेशिक समय में थी। यह एक बहुत चिंताजनक स्थिति है कि जहां हम आजादी की 75 वर्ष पूरा करने की ओर अग्रसर हैं, वहां न्याय व समता का लक्ष्य प्राप्त करने में आगे बढ़ने के स्थान पर औपनिवेशिक राज के समय जैसी स्थिति की ओर जा रहे हैं।
वैसे भी हाल के समय में कोविड के कारण लोगों की कठिनाईयां बढ़ी हैं। इस स्थिति में समतावादी नीतियों से लोगों को राहत दी जानी चाहिए थी पर विषमता बढ़ाने वाली नीतियों ने लोगों के कष्ट बढ़ाए हैं। आक्सफैम की वर्ष 2021 की विषमता रिपोर्ट में बताया गया है कि लॉकडाऊन के दौरान भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस तरह वर्ष 2021 में अरबपतियों की संपत्ति के संदर्भ में भारत अब संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस व फ्रांस के बाद छठे स्थान पर पंहुच गया है।
आक्सफैम की रिपोर्ट ने आगे बताया कि दूसरी ओर भारत के अधिकांश लोगों की आजीविका को क्षति हुई है व लगभग 25 वर्ष बाद भारत की अर्थव्यवस्था रिसेशन की स्थिति में धंस गई है। महामारी के दौरान 11 सबसे बड़े अरबपतियों की संपत्ति में जो वृद्धि हुई है उससे (उतनी धनराशि से) मनरेगा स्कीम का या केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का (अभी तक का) 10 वर्षों का खर्च चल सकता है।
भारत के सबसे धनी व्यक्ति महामारी के विकट असर से बच सके जबकि भारत के अधिकांश लोगों की कठिनाईयां बहुत बढ़ गई। अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन ने बताया कि 90 प्रतिशत लोगों का रोजगार अनौपचारिक क्षेत्र में है और इनमें से 40 करोड़ मजदूरों की गरीबी इस संकट के दौरान बढ़ सकती है। आक्सफैम की रिपोर्ट ने बताया कि भारत में सबसे धनी व्यक्ति की संपत्ति में महामारी के दौर जो वृद्धि हुई उससे 40 करोड़ अनौपचारिक मजदूरों को गरीबी से 5 महीनों के लिए बचाया जा सकता है।
अब समय आ गया है कि तेजी से बढ़ती हुई विषमता को बड़ा मुद्दा बनाया जाए व इसका विरोध करते हुए समता व न्याय की नीतियों के लिए व्यापक स्तर पर जनमत तैयार किया जाए।
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