जिन कदमों से टूटी देश की अर्थव्यवस्था की कमर, क्या उसी का जिक्र कर दावोस में वाहवाही लूटेंगे पीएम मोदी?
प्रधानमंत्री मोदी दावोस में 23 जनवरी से शुरु हो रहे विश्व आर्थिक मंच को संबोधित करेंगे। लेकिन क्या वे यहां बताएंगे कि उनके फैसलों में कितनी हड़बड़ी है और उससे आम लोगों और काम धंधों की कमर टूट गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब स्विट्जरलैंज के खूबसूरत शहर दावोस में मंगलवार यानी 23 जनवरी से शुरु हो रहे विश्व आर्थिक मंच के उद्घाटन सत्र को संबोधित करेंगे, तो शायद उन दो कदमों का जिक्र जरूर करेंगे, जिनसे देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी और आम लोगों की जिंदगी मुश्किल भरी हो गई। बेरोजगारी बढ़ गई, और काम-धंधे ठप्प हो गए। लेकिन पीएम जीएसटी लागू होने के बाद हुए नुकसान के जिक्र के बजाए यही आभास देंगे की एक देश एक टैक्स प्रणाली से कारोबार करना आसान हुआ है।
एक झटके में देश की 87 फीसदी नकदी को गैरकानूनी घोषित करने के अपने फैसले को वह कालेधन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खिलाफ उठाया गया क्रांतिकारी कदम तो बताएँगे, लेकिन यह नहीं बताएंगे कि इससे देश पाई-पाई को मोहताज हो गया था, मजदूरों को अपने गांव लौटना पड़ा था, छोटे और मझोले उद्योग धंधे बंद हो गए थे, और जितना पैसा गैरकानूनी घोषित किया था, वह सारा का सारा बैंकों में वापस आ गया था, यानी न तो कालाधन मिला था और न ही कोई भ्रष्टाचारी। आतंकवाद पर भी लगाम नहीं लगाई जा सकी, क्योंकि नोटबंदी के कुछ दिन बाद ही जम्मू-कश्मीर में मारे गए और पकड़े गए आतंकियों से नए नोट मिलने लगे थे।
वैसे दावोस में होने वाले सालाना वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम यानी विश्व आर्थिक मंच के बारे में आपको बता दें कि इस बैठक में अलग-अलग क्षेत्रों के तीन हजार से ज्यादा विश्व नेता हिस्सा लेंगे। विश्व आर्थिक मंच की इस 48वीं बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत करीब 130 विश्व नेता भी शामिल हो रहे हैं। यह सही है कि 1997 में एचडी देवेगौड़ा के बाद 20 साल बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री इस बैठक में हिस्सा ले रहा है। इस साल बैठक की थीम है ‘खंडित विश्व के लिए साझा भविष्य तैयार करना’।
लेकिन, विश्व को एकसूत्र में पिरोकर साझा भविष्य तैयार करने के मकसद से हो रहे इस विश्व सम्मेलन में शामिल होने वाले पीएम शायद यहां यह नहीं बताएंगे कि वे अपने भाषणों और बयानों में बार-बार भले ही सवा सौ करोड़ लोगों की बात करें, लेकिन देश में असमानता अपने उच्च स्तर पर है और देश के मध्यवर्ग के पास खर्च करने को पैसा नहीं है। देश की 70 फीसदी से ज्यादा पूंजी चंद लोगों के पास है। खंडित विश्व की थीम के विश्व सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में पीएम मोदी शायद यह भी नहीं बताएंगे कि उनके शासनकाल में देश में समाज कैसे खंड-खंड हुआ है, विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य चरम पर है, असहिष्णुता का बोलबाला है, पशु के लिए मानव का वध किया जा रहा है, असहमति की आवाजों का गला दबाया जा रहा है, अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी लगाई जा रही है।
प्रधानमंत्री विश्व के साझा भविष्य की बात करने वाले इस सम्मेलन में शायद यह भी न बताएं कि वे जो कुछ भी कहते हैं, उसका अर्थ कुछ और होता है। वे नहीं बताएंगे कि गुजरात चुनाव में हार को करीब देख उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व सेनाध्यक्ष के साथ पूर्व उप राष्ट्रपति तक पर आरोप लगा दिया था और फिर उनकी सरकार ने सफाई दी थी कि वे जो कहते हैं उसका अर्थ कुछ और होता है। इस मंच पर वे यह भी नहीं बताएंगे कि जिन चुनावी नारों को वे उछालते हैं, वे महज जुमले होते हैं और कभी उनकी पार्टी और कभी वे खुद ही यह स्पष्ट करते हैं। वे नहीं बताएंगे कि हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपए आने का नारा झूठा था, और सिर्फ चुनाव जीतने के लिए जुमले के तौर पर इस्तेमाल किया गया था।
वैसे इस मंच पर उनके भाषण के दौरान तालियां खूब बजने की संभावना है क्योंकि उनके साथ इस बैठक में शामिल होने के लिए भारी-भरकम लश्कर गया है, जिनमें केंद्रीय मंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों के मुखिया के अलावा सौ से ज्यादा लोगों का सरकारी अमला भी है।
पीएम मोदी के साथ जो अमला है उसमें छह केंद्रीय मंत्री- अरुण जेटली, सुरेश प्रभु, पीयूष गोयल, धमेंद्र प्रधान, एम जे अकबर और जितेंद्र सिंह के अलावा प्रमुख भारतीय कंपनियों के सीईओ भी हैं। इनमें रिलायंस के मुकेश अंबानी, अडानी समूह के गौतम अडानी, विप्रो के अजीम प्रेमजी, बजाज समूह के राहुल बजाज के अलावा ए चंद्रशेखरन, चंदा कोचर, उदय कोटक आदि शामिल हैं।
रोचक तथ्य है कि इस विश्व मंच पर जब अर्थव्यवस्था को लेकर गंभीर चर्चा होगी, तो उसे पीएम मोदी नहीं बल्कि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन संबोधित करेंगे।
इस बैठक के अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समापन भाषण देंगे। लेकिन तब तक मोदी वहां नहीं होंगे। इसलिए मोदी और ट्रंप की मुलाकात नहीं हो सकेगी।
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