द्वारका और केदारनाथ से फुरसत मिले तो भूख और प्रदूषण से मरते लोगों की भी फिक्र कर लें प्रधान सेवक जी
सोमनाथ से विश्वनाथ और केदारनाथ तक विकास की बातें करते प्रधानमंत्री कब सामाजिक विकास के लिए काम करना शुरू करेंगे, यह तो तभी पता चलेगा, जब समाज, भूख और पर्यावरण की मार के बाद भी जिंदा रहा ।
जब सारे टीवी समाचार चैनल दिनभर केदारनाथ और मोदी जी को दिखाने में व्यस्त थे और प्रधान सेवक अंहकारी भाव से अपने हाथ से केदारनाथ के पुनरूद्धार का दावा कर रहे थे, उसी समय एक उपेक्षित सी खबर भी चल रही थी। पूरे विश्व में प्रदूषण से होने वाली असामायिक मृत्यु के संदर्भ में भारत पहले स्थान पर है, और यहां वर्ष 2015 के दौरान प्रदूषण से 25 लाख से भी अधिक व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु आंकी गई है।
प्रतिष्ठित जर्नल लैंसेट के ताजा अंक में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि वर्ष 2015 के दौरान पूरे विश्व में 90 लाख से अधिक व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु केवल प्रदूषण के कारण हुई, यह संख्या एड्स, टी.बी. और मलेरिया से होने वाली संयुक्त कुल मृत्यु के तीन गुना से भी अधिक है। लैंसेट कमीशन ऑन पॉल्युशन एण्ड हेल्थ के अध्ययन के अनुसार प्रदूषण के कारण मौतों के संदर्भ में 25 लाख से अधिक मृत्यु के साथ भारत पहले स्थान पर और 18 लाख मृत्यु के साथ चीन दूसरे स्थान पर है।
इससे पहले खबर आई थी, विश्व में भूखे और कुपोषित व्यक्तियों की संख्या के संदर्भ में हमारा देश विश्व में पहले स्थान पर है। अगस्त में एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित लेख के अनुसार अकेले ओजोन की अधिक सांद्रता के कारण प्रतिवर्ष 4 लाख से अधिक व्यक्ति हमारे देश में दम तोड़ देते हैं और यह संख्या विश्व में सर्वाधिक है।
इस वर्ष के पूर्वांर्ध में प्रकाशित स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर/2017 नामक रिपोर्ट के अनुसार हवा में पी.एम. 2.5 और ओजोन की अधिक सांद्रता के कारण हमारे देश में वर्ष 2015 के दौरान कुल 11,98,200 व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु हुई, जो विश्व के सभी देशों के संदर्भ में सर्वाधिक है।
इन सब अध्ययनों का एक ही निष्कर्ष है - प्रदूषण और भूख के मामले में भारत दुनिया के निकृष्ठतम देशों में शुमार है। इसके मायने हमारे-आपके लिये हो सकते हैं पर सरकार या किसी संबंधित सरकारी विभाग या मंत्रालय का कोई सरोकार नहीं है। यदि सरोकार होता तो पिछले तीन वर्षों से लगातार हरेक अध्ययन एक ही निष्कर्ष के साथ नहीं आते। हाँ, संबंधित मंत्रालय और विभाग ऐसे रिपोर्टां को नकारने से नहीं चूकते। इनकी दलीलें चाहे किसी के गले से उतरें या न उतरें।
प्रदूषण से मुक्ति पाने की सरकार की तरफ से कोई इच्छाशक्ति नहीं दिखाई पड़ती। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में वर्तमान में दो मंत्री हैं और दोनों पेशे से चिकित्सक रह चुके हैं। फिर भी अब तक कोई ऐसी ठोस योजना का प्रारूप् नहीं आया है जिससे वाकई में किसी भी प्रकार का प्रदूषण कम हो सकें। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का काम प्रदूषण नियंत्रण के लिये योजनायें बनाना है पर वैज्ञानिक और तकनीकी तौर पर इतना दीवालिया विभाग देश भर में दूसरा नहीं होगा। केन्द्रीय बोर्ड बस एक काम अच्छी तरह जानता है - मंत्रालय, न्यायालय और जनता को किस तरह गुमराह किया जा सकता है।
बड़े गैर सरकारी संगठन के लोग केंद्रीय बोर्ड और मंत्रालय की विभिन्न कमेटियों में शामिल रहते हैं और इनके अनेक प्रोजेक्ट टेबल पर फलते-फूलते हैं। जाहिर है, ऐसे संगठन भी केन्द्रीय बोर्ड या मंत्रालय के खिलाफ कुछ नहीं कहेंगे। जनता इतनी जागरूक नहीं है जो प्रदूषण और इसके प्रभावों की बारीकियां समझ सकें। जाहिर है, विश्व स्तर पर पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों के मामले में सबसे पिछड़े देशों में शुमार हैं।
येल युनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित एनवायर्नमेंटल परफार्मेंस इंडेक्स 2016 में हमारा स्थान 155वां था, जबकि कुल देशों की संख्या 180 थी। इस तरह की खबरें इतना तो बता ही देती हैं कि किसी भी सामाजिक मुद्दे पर सरकार आंखें मूंद कर बैठी हैं और भविष्य की कोई योजनायें भी नहीं हैं।
सोमनाथ से विश्वनाथ और द्वारका से केदारनाथ तक विकास की बातें करते प्रधानमंत्री जी कब सामाजिक विकास के लिए सही में काम करना शुरू करेंगे यह तो आने वाला समय ही बतायेगा, यदि समाज भूख और पर्यावरण की मार के बाद भी जिंदा रहा ।
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