आकार पटेल का लेख: हिंदुत्व नीतियों पर दुनिया की चिंता के सवाल पर क्यों भाग खड़े हुए विदेश मंत्री !
विदेश मंत्री एस जयशंकर हाल में अमेरिकी दौरे में पूर्व अमेरिकी एनएसए के उस सवाल को गोल-मोल कर टाल गए जिसमें पूछा गया था कि भारत की हिंदुत्ववादी नीतियों को लेकर दुनिया की चिंता कितनी सही है। दरअसल जयशंकर के पास इसका जवाब था ही नहीं।
भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर हाल ही में (शनिवार तक) अमेरिकी दौरे पर थे। उनके दौरे का पहला आधा हिस्सा तो कोई खास नहीं रहा क्योंकि वे अमेरिकी विदेश मंत्री से मिलने गए थे, लेकिन उन्हें इमरजेंसी में मध्यपूर्व जाना पड़ा। इस दौरान एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में भारतीय दलों के साथ मेल-मुलाकात कीं। उन्होंने ट्रंप प्रशासन में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे जनरल एच आर मैकमास्टर के साथ एक इंटरव्यू किया। मैकमास्टर भारत के हालात से वाकिफ हैं और यहां का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने इस इलाके में बढ़ते कट्टरपंथ पर बात की कि कैसे चरमपंथ पाकिस्तान को नुकसान पहुंचा रहा है। इसके बाद उन्होंने एस जयशंकर से पूछा, “मैं जानना चाहता हूं कि आप भारत में राजनीतिक हालात को किस तरह देखते हैं। आपने तो बहुत शानदार तरीके से वेश विभाग में नौकरी की है, और आप पक्षपात वाले व्यक्ति नहीं हैं। इन दिनों महामारी के बीच ही एक और चिंता है कि देश में बढ़ते हिंदुत्व के कारण भारतीय लोकतंत्र की सेक्युलर प्रकृति को नुकसान हो रहा है...और हाल के दिनों में जो कुछ देखने सुनने को मिल रहा है, इसे लेकर क्या भारत के मित्र देशों में की चिंता वाजिब है?”
इसके जवाब में एस जयशंकर ने सबसे पहले तो मैकमास्टर को दुरुस्त कराया कि वे पक्षपाती हैं। उन्होंने कहा, “मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूं, मैंने कई सरकारों में एक सिविल सर्वेंट के तौर पर सेवाएं दी हैं। लेकिन आज मैं एक निर्वाचित संसद सदस्य हूं। क्या मेरा अपना राजनीतिक नजरिया और राजनीतिक रूचि है? हां, बिल्कुल है। और उम्मीद है मैं उन हितों और रुचियों को अच्छे से सामने रख सकूंगा, जिनका मैं प्रतिनिधि हूं।” इसके बाद बाद उन्होंने कहा कि वे दो जवाब देंगे, एक “सीधा सा राजनीतिक जवाब” और दूसरा “एक थोड़ा सा सामाजिक जवाब।” उनका सीधा सा राजनीतिक जवाब था कि पूर्व में भारत वोट बैंक की राजनीति करता था लेकिन अब ऐसा नहीं होता क्योंकि बीजेपी के नेतृत्व में लोकतंत्र और मजबूत हुआ है। और ऐसा राजनीति में, नेतृत्व में और सिविल सोसायटी में विविध प्रतिनिधित्व के कारण हुआ है, ऐसे लोगों के कारण हुआ है जो अपनी संस्कृति को लेकर बहुत आत्मविश्वासी हैं, अपनी भाषा को लेकर सहज हैं और जो अंग्रेजी भाषी दुनिया से नहीं हैं, जो वैश्विक केंद्रों से जुड़े हुए नहीं हैं। जयशंकर ने कहा कि और इस सबके बीच चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि भारत में कोई समस्या ही नहीं है, और जिन लोगों की बात आप कर रहे हैं वे चीजों एक खास राजनीतिक चश्मे से देखते हैं और कई बार एक किस्म का आभासी माहौल बना देते हैं।
और सामाजिक जवाब जो कि बहुत ही छोटा था उसमें उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार भेदभाव नहीं करती है। एस जयशंकर ने कहा कि, “...क्योंकि महामारी के दौर में हमने लोगों को अतिरिक्त राशन दिया, लोगों के जनधन खाते में पैसा डाला और इसमें हमने किसी धर्म को नहीं देखा।”
हमें शायद एस जयशंकर का शुक्रिया करना चाहिए कि भारत ने कम से कम अभी तक गरीबों को उनका हक देने के लिए धर्म को आधार नहीं बनाया है। लेकिन हम शुक्रगुजार होने के साथ यह नहीं भूल सकते कि जयशंकर ने उस सवाल का जवाब तो दिया ही नहीं जो उनसे पूछा गया था। मैकमास्टर का सवाल तो साफ तौर पर हिंदुत्व और हिंदुत्ववादी नीतियों पर था। आखिर ये नीतियां क्या हैं? दरअसल यही नागरिकता में धर्म को आधार बनाने वाली नीतियां हैं। संयुक्त राष्ट्रस यूरोपीय यूनियन के सदस्य और अमेरिकी कांग्रेस भारत के नागरिकता संशोधन कानून पर अपनी नाराजगी और चिंता जाहिर कर चुके हैं।
धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र के आयोग क 2021 की रिपोर्ट ने साफ तौर पर इस कानून को भेदभावपूर्ण बताया है जिसमें धर्मांतरण, खासतौर से महिलाओं के धर्मांत्रण को अपराध घोषित किया गया है। यह कानून बीजेपी शासित उत्तराखंड के धार्मिक स्वतंत्रता कानून 2018, हिमाचल के धार्मिक स्वतंत्रता कानून 2019, मध्य प्रदेश के धर्म स्वातंत्र अध्यादेश 2020, उत्तर प्रदेश के विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिशेध अध्यादेश 2020 और गुजरात के धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2021 में स्पष्ट हैं। संयुक्त राष्ट्र के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की रिपोर्ट (आयोग ने भारत पर प्रतिबंध की सिफारिश की है) ने कहा है कि ये सारे कानून “अंतर धार्मिक विवाहों को निशाना बनाते हैं, अन्य राज्य बहुत वाहियात किस्म के आधार पर धर्मांतरण को अपराध बनाते हैं इसमें लालच, शोषण और हिंसा आदि शामिल हैं। ये कानून अधिकतर बार झूठे आरोपों पर पर आधारित होते हैं, मसलन इन्हीं झूठे आरोपों की आड़ में चर्चों और अन्य धार्मिक सेवाओं पर हमले होते हैं।”
मोदी के नेतृत्व में भारत ने ऐसे कई कानून बनाने में ऊर्जा लगाई है जिसमें अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया है। गुजरात का पशु संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2017 गाय काटने वाले को सजा देता है, जबकि यह एक आर्थिक अपराध है, लेकिन इसमें आजीवन कारावास की सजा दी जाती है। किसी और आर्थिक अपराध में आजीवन कारावास की सजा नहीं होती है। उत्तर प्रदेश में 2020 के दौरान जितने भी लोगों को रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के तहत गिरफ्तार किया गया उनमें से आधे से अधिक गाय काटने के अपराध थे। इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना किसी अपराध के भी हिरासत में लेकर सलाखों के पीछे डाला जा सकता है। सिर्फ मुस्लिम पुरुषों पर ही तलाक का मामला सिविल अपराध न होकर आपराधिक श्रेणी में आता है। यह कानून है मुस्लिम महिलाएं (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019। इसमें एक गैर अधिनियम को अपराधीकरण की श्रेणी में डाला गया है। भारत में अब एक बार में तीन तलाक कानूनी नहीं रहा। अगर को अपनी पत्नी को एक बार में तीन तलाक बोलता है तो शादी खत्म नहीं होती, बल्कि एक अपराध हो जाता है।
भारत एक राज्य में प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए एयरगन चलाती है, लेकिन कश्मीर में भीड़ पर पेलेट गन का इस्तेमाल करती है। इससे हजारों लोगों को आंखों की रोशनी चली गई और लोग जख्मी हुए। जख्मी होने वालों में बच्चे भी शामिल हैं जो प्रदर्शन की जगह पर मौजूद तक नहीं होते।
तमाम ऐसी मिसालें हैं। यही कुछ ऐसे मामले हैं जिन्हें लेकर भारत के मित्र देश चिंतित हैं। यह वे कानून हैं जो हिंदुत्व की नीतियों से हमारे ऊपर थोपे गए हैं, और मैकमास्टर का सवाल यही था। लेकिन जयशंकर ने मैकमास्टर को जो जवाब दिया उसमें हिंदुत्व शब्द का प्रयोग नहीं किया गया और न ही उन कानूनों का जिन्हें लेकर भारत की दुनिया भर में आलोचना हो रही है। दरअसल वह इस सवाल से यूं भाग खड़े हुए क्योंकि इसका कोई रक्षात्मक जवाब उनके पास था ही नहीं। इस आरोप का जवाब देने का एकमात्र तरीका यही था कि इस पर अस्पष्टता बनी रहने दी जाए और मुद्दे से बच लिया जाए। और यह सही भी है क्योंकि भारत हिंदुत्व के माध्यम से खुद को और अपने ही लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है।
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