आकार पटेल का लेख: भारत ने क्यों छिपा लीं FATF की रिपोर्ट की असली बातें, सच्चा शासन तो असहमति को बदनाम नहीं करता
भारत सरकार की तरफ से जारी विज्ञप्ति में सिर्फ अपनी तारीफों के पुल ही बांधे गए थे और एफएटीएफ की असली सिफारिशों को छिपा दिया गया था।
इस महीने जो सुर्खियां अहम रहीं।
इनमें से एक है ‘आतंकवाद के वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए भारत की कोशिशों को एफएटीएफ की मंजूरी: क्यों महत्वपूर्ण है यह।’ दूसरी है ‘एफएटीएफ ने भारतीय एनजीओ क्षेत्र में आतंकवाद के वित्तपोषण की खामियों की तरफ ध्यान दिलाया।’
आइए देखते हैं इन दोनों सुर्खियों में कही गई बातों का क्या अर्थ है। अगर कोई ध्यान से मौजूदा दौर की खबरों पर नज़र रखता हो, तो उसे पता चल जाएगा कि भारत सरकारउर हर महीने कम से कम एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को गैरकानूनी घोषित कर रही है। लेकिन इन एनजीओ के बंद होने की कोई न कोई जानकारी तो अखबारों में होती ही है।
इसके अलावा बहुत से ऐसे संगठन भी हैं, जो खामोशी से बंद हो गए और उनके कामकाज समेट लेने या बंद हो जाने की कोई खबर देखने को नहीं मिलती। ऐसा इसलिए है क्योंकि मौजूदा शासन में एनजीओ के बंद होने के आंकड़ों को उन सरकारी वेबसाइटों से हटा दिया गया है, जहां इन सबके बारे में जानकारियां पहले सार्वजनिक होती थीं। भारत सरकार द्वारा नागरिक स्थानों को लगातार कम किए जाने के खिलाफ उभरे आक्रोश और विरोध को भी अपराध घोषित कर दिया गया है। नागरिक समाज को मजबूर करने के लिए हर दिन जानबूझकर कोशिशें की जाती हैं।
लेकिन इसी सब पर हमें साफ तौर पर और जोरदार तरीके से सवाल उठाने की ज़रूरत है। ऐसा करने के लिए यह एक खास मौका भी है क्योंकि वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) ने 14 साल के लंबे अंतराल के बाद भारत की पारस्परिक मूल्यांकन रिपोर्ट (MER) का प्रकाशन किया है, जिसमें गैर-लाभकारी क्षेत्र (यानी एनजीओ) के लिए तय मानकों का पालन न करने या उनकी अनदेखी के लिए भारत सरकार को कुछ हद तक दोषी ठहराया गया है।
आप पूछ सकते हैं कि आखिर वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) है क्या और यह क्यों महत्वपूर्ण है? वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) दरअसल 40 सदस्यों वाला एक अंतर-सरकारी निकाय है, जिसका काम दुनिया भर में धन शोधन, आतंकवादी वित्तपोषण और सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार के वित्तपोषण का मुकाबला करना है। यह देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक निर्धारित करके और फिर उन मानकों के अनुसार देशों के धन शोधन विरोधी और आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने वाले तौर-तरीकों और नियमों का नियमित रूप से मूल्यांकन और रैंकिंग करता है। भारत भी FATF के सदस्य देशों में शामिल है।
वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) अहम इसलिए है क्योंकि 2023 में, भारत में सिविल सोसायटी समूहों ने इस बात को दस्तावेजों के जरिए साबित किया कि भारत सरकार ने FATF की सिफारिशों के आधार पर बनाए गए या सख्त किए गए विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) जैसे तीन कानूनों का सरकार के खिलाफ बोलने की हिम्मत करने वालों का सरकारी तौर पर उत्पीड़न करने में बेरहमी से इस्तेमाल किया है।
खासतौर से देखें तो FATF अपने सदस्य देशों द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग पर अपनी 40 सिफारिशों और आतंकवादी वित्तपोषण पर 9 विशेष सिफारिशों के पूर्ण और प्रभावी अमल का पारस्परिक रूप से मूल्यांकन करने के लिए ऐसी व्यवस्था का पालन करता है जिसमें देश एक दूसरे के कामों का मूल्यांकन करते हैं। यानी किसी देश के अनुपालन की जांच अन्य FATF सदस्य देशों द्वारा की जाती है, जिसके आधार पर सामने आई कमियों को दूर करने के एफएटीएफ के परिणामस्वरूप कमियों को दूर करने के लिए लक्षित सिफारिशों के साथ एक गहन मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार की जाती है जिसे पारस्परिक मूल्यांकन रिपोर्ट कहा जाता है।
जो देश मानकों का पालन करने में नाकाम साबित होते हैं, उन पर कड़ी निगरानी रखी जाती है और उन्हें “अधिक जोखिम क्षेत्राधिकार” कहा जाता है, जिसे “ग्रे या ब्लैक लिस्ट” कहा जाता है। पूर्व में, तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों को इन सूचियों में रखा गया है।
कई बार की देरी के बाद, आखिरकार भारत की पारस्परिक मूल्यांकन प्रक्रिया नवंबर 2023 में शुरू हुई और जून 2024 में पूरी हुई। मूल्यांकन प्रक्रिया खत्म होने पर, FATF ने अपने सारांश निष्कर्षों को प्रकाशित किया है। FATF ने एक तरफ तो संस्था यानी FATF के अन्य मानकों के साथ "उच्च स्तर के तकनीकी अनुपालन" के लिए भारत की सराहना की है।
वहीं दूसरकी तरफ, और ऐसा दूसरी हेडलाइन में लिखा था कि एफएटीएफ ने भारत से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया है कि आतंकवादी वित्तपोषण के लिए गैर-लाभकारी क्षेत्र के दुरुपयोग को रोकने के लिए उसने जो उपाय किए हैं, उन्हें FATF की सिफारिश 8 में बताए गए जोखिम-आधारित दृष्टिकोण के अनुरूप लागू किया जाए।
हमने इसी बारे में बात की शुरुआत की थी जिसका जिक्र पहली सुर्खी में था।
तो आखिर इसका क्या अर्थ है?
एफएटीएफ की 8वीं सिफारिश कहती है कि कानून और नियम मनी लॉन्ड्रिंग और आंतकवाद वित्तपोषण से मुकाबले के लिए कानून और नियम केवल उन गैर-लाभकारी संगठनों (एनपीओ) को लक्षित करें, जिन्हें देश ने - सावधानीपूर्वक, लक्षित "जोखिम-आधारित" विश्लेषण के माध्यम से - आतंकवाद के वित्तपोषण के दुरुपयोग के प्रति संवेदनशील समूह के रूप में पहचाना है, और जो एफएटीएफ की एनपीओ की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं।
इसमें यह भी सिफारिश की गई है कि एनपीओ की कानूनी गतिविधियों में रुकावट को रोकने के लिए सुधार वाले उपाय होने चाहिए। हालांकि, 8वीं सिफारिश की पूरी अनदेखी करते हुए भारत ने न केवल ऐसे कानून पारित किए हैं जिनकी प्रकृति बहुत व्यापक है, बल्कि नागरिक समाज संगठनों और मानवाधिकार रक्षकों के खिलाफ उनके वैध मानवाधिकार कार्य करने के लिए उनका शोषण करना जारी रखा गया है।
यह सर्वविदित है कि भारत के आतंकवाद निरोधक कानून के तहत दर्ज किए गए सिर्फ 2.2% मामलों में ही 2016 से 2019 के बीच आरोपों को सिद्ध किया जा सका है और 2022 के आखिर तक कम से कम 83% मामले अदालतों में लंबित हैं। ऐसे में FATF ने भारत से गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुकदमों को निपटाने में होने वाली देरी को दूर करने का भी आह्वान किया है। धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मुकदमों के लिए भी यही सिफारिश की गई है, जिसमें बीते नौ वर्षों में सिर्फ 31 मामलों में सुनवाई पूरी हुई है।
लेकिन इन सिफारिशों को खबरों में जगह नहीं मिली, क्योंकि भारत सरकार की तरफ से जारी विज्ञप्ति में सिर्फ अपनी तारीफों के पुल ही बांधे गए थे और एफएटीएफ की असली सिफारिशों को छिपा दिया गया था। एफएटीएफ की सिफारिशों में से अपनी पसंदीदा सिफारिशें चुनने का चलन इस बात से भी साबित होता है कि भारत सरकार लगातार एनजीओ के विदेशी चंदा लाइसेंस को निरस्त कर रही है, हालांकि इस मामले में यूएपीए और पीएमएलए के दुरुपयोग का बातें भी सामने आती रही हैं।
इस मोर्चे पर भारत की तीन साल बाद फिर से समीक्षा की जाएगी। इस दौरान सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह गैर-लाभकारी क्षेत्र का ध्यान रख रही है और पर्याप्त जोखिम मूल्यांकन कर रही है या नहीं, ताकि ऐसे उपाय लागू किए जा सकें जो केंद्रित और आनुपातिक हों और एफसीआरए की तरह अतिव्यापक और अस्पष्ट न हों। इसे भारत के आतंकवाद विरोधी और मनी लॉन्ड्रिंग कानूनों के तहत राजनीतिक रूप से प्रेरित मुकदमों को भी समाप्त करने की आवश्यकता है।
सच्चा शासन असहमति को बदनाम करने वाला नहीं होता है।
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