विष्णु नागर का व्यंग्यः आजकल शर्म से कौन डूब मरता है!
जहां तक मुखिया जी का सवाल है, उन्हें अगर मजबूरन नरक भी जाना पड़ा तो वहां भी अपना मामला फिट करके स्वर्ग पहुंच जाएंगे। और आप जैसों से कहेंगे कि मुन्नों-मुन्नियों मैंने बहुत पहले कहा था कि आत्मनिर्भर बनो। नहीं बने तो अब भुगतो। जयश्री राम।
क्यों जी, ये बताओ, इस सरकार की रोज-रोज निंदा किए बगैर क्या आप जिंदा नहीं रह सकते? नहीं रह सकते, जी। क्या प्राब्लम है, आपको? अब आपको क्या बताएं जी, ये समझ लो कि हमें खुजली होने लग जाती है और फिर रुकती नहीं, जब तक कि.....। तो आप अपनी खुजली मिटाने के लिए सरकार की निन्दा करते हो? ऐसे आदमी को शर्म से डूब मरना चाहिए।
क्या कहा, शर्म से डूब मरना चाहिए? अरे, आजकल शर्म से कौन डूब मरता है जी? सारे बेशर्म तो यहां से वहां तक ऐश ही ऐश कर रहे हैं। नाम लूंगा तो आपको बुरा लग जाएगा। आप कहोगे कि वे तो देशसेवा कर रहे हैं। उन पर कोई टिप्पणी बर्दाश्त नहीं होगी, समझे...। देशसेवा ही कर रहे हैं वे। और आपको तो डूब ही मरना चाहिए। और भैया, आपको खुजली है तो डाक्टर से इलाज करवाओ।
दुनिया भारत की ओर देख रही है और आप दुनिया को ये दिखा रहे हैं। कोई देशभक्त ऐसा काम नहीं करेगा। आप जैसों की वजह से ही विदेशों में प्रधान जी का एक तरफ भव्य स्वागत होता है, दूसरी तरफ अतिभव्य विरोध। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, फ्रांस सब जगह यही नजारा है। देशद्रोही हैं आप। बंद कीजिए यह सब। खुजली का इलाज कराने के लिए पैसे न हों तो हमसे ले जाइए।
बहुत मेहरबानी है आपकी। कितने उदार हृदय हैं आप! भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में आपकी यह उदारता दर्ज की जाएगी। कोई और नहीं करेगा तो मैं करूंगा। पाठ्य-पुस्तकों में आपका यह उदाहरण पढ़कर भावी पीढ़ियां प्रेरणा ग्रहण करेंगी। इसके बावजूद मैं बता दूं कि आपकी सरकार के समस्त प्रयासों के बावजूद मैं अभी इतना गरीब नहीं हुआ हूं कि डाक्टर के पास न जा सकूं। वैसे डाक्टर ने ही यही इलाज बताया है।
उसने मुझसे पिछले नौ साल से चल रही इस बीमारी का पूरा इतिहास पूछा। फिर कहा कि इसका एक ही इलाज है- आप सरकार की खूब ऐसी-तैसी करें। बीच-बीच में आप कुछ और करने लग जाते हैं तो समस्या विकट हो जाती है। आगे से एक दिन भी नागा किया तो खुजली बेकाबू हो जाएगी। लाइलाज हो जाएगी।
डाक्टर साहब, आपको नहीं लगता कि ऐसा करने से मुझे खतरा हो सकता है? आप मेरे पास खुजली का इलाज कराने आए हैं या अपना भविष्य जानने? मैंने कहा, गलती हो गई थी डाक साहब। माफ करें। खुजली हर भावी खतरे पर भारी है। तो इसलिए अब मैं रोज निंदा, फिर निंदा, फिर निंदा करता हूं।
लगता है आपने यह डाक्टरवाली स्टोरी गढ़ी है। दुनिया का कोई डाक्टर ऐसा इलाज नहीं बताता। आप मुझसे मजाक कर रहे हैं। मुझे आपने बेवकूफ क्या समझ रखा है? इतना समय लगा आपको इतनी सी बात समझने में? फिर भी मैं आपकी तारीफ करूंगा कि आपकी विचारधारा जिन मंद बुद्धियों का उत्पादन करती है, उस हिसाब से आप बुद्धिमान हैं। वैसे व्यंग्य को भी आपके यहां गाली समझने का चलन है। आपको बस जेल भिजवाना और सोशल मीडिया पर झूठ का खेल खेलना आता है।
इसे छोड़िए। मेरे दिमाग में अभी भी यह सवाल घूम रहा है कि कोई ऐसा कोई डाक्टर क्या सचमुच में है?अरे वाह, है, क्यों नहीं? है। आप उससे मिलना चाहेंगे? आपको मेरे वाली खुजली है या सामान्य लोगों वाली खुजली? समझिए आप जैसी मगर उसके कारण दूसरे हैं। रोज होती है क्या? नहीं किसी-किसी दिन। समझा। जिस दिन आपको प्रधानसेवक जी की प्रशंसा का उचित और पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाता होगा, उस दिन यह समस्या बढ़ जाती होगी। बिलकुल ठीक।
तब तो आपकी और मेरी बुनियादी समस्या लगभग एक जैसी है। आपको उस डाक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं। इतनी डाक्टरी तो मैं भी जानता हूं। आप ऐसा कीजिए, प्रधान जी की जितनी प्रशंसा आप आज करते हो, उसकी मिकदार दुगनी कर दो। धीरे-धीरे उसे और बढ़ाते जाओ। तीन गुना पर ले आओ। फिर भी रुको मत, देश के जवान की तरह आगे बढ़ते जाओ। तब तक आगे बढ़ो, जब तक कि साहेब खुद गद्दी से नीचे लुढ़क न पड़ें।
इससे आपका कोई नुक़सान नहीं होगा। आप देश हित में इस से उस पार्टी में कूद जाना। वहां मौज करना। वैसे जहां तक मुखिया जी का सवाल है, उन्हें अगर मजबूरन नरक भी जाना पड़ा तो वहां भी अपना मामला फिट करके स्वर्ग पहुंच जाएंगे। और आप जैसों से कहेंगे कि मुन्नों-मुन्नियों मैंने बहुत पहले कहा था कि आत्मनिर्भर बनो। नहीं बने तो अब भुगतो। जयश्री राम।
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