मणिपुर जले तो जले, खिलाड़ी धरना दें तो दें, टीवी एंकर तो सुप्रीम लीडर के लिए कव्वाली सुनाने में मशगूल हैं...

जब मणिपुर जल रहा था, कश्मीर में सैनिक मर रहे थे, इंसाफ पाने के लिए ओलंपियन जंतर मंतर पर बैठे थे, उस समय हमारे प्रधानमंत्री दक्षिण प्रशांत में तारीफें बटोरने में जुटे थे और टीवी एंकर प्राइम टाइम पर कव्वाली के अंदाज में ताली बजा रहे थे।

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अभय शुक्ला

आजकल मुझे भोज-भात में नहीं बुलाया जाता। ऐसा इसलिए कि मेरी पहचान के लगभग 80 फीसदी लोगों को यकीन हो गया है कि पेनिसिलिन की खोज के बाद मानव जाति को सबसे बड़ा तोहफा नरेंद्र मोदी हैं। मैंने 2014 में मोदी को वोट देने का पाप करने के कुछ समय बाद ही ताली बजाना बंद कर दिया था और मुझे मलाल है कि तब वोट डालने से पहले मैंने डब्ल्यू डब्ल्यू जैकब्स की शॉर्ट स्टोरी ‘दि मंकीज पॉ’ क्यों नहीं पढ़ी। इसे जरूर पढ़ें क्योंकि यह नतीजों को जाने बिना किसी चीज की ख्वाहिश करने से आगाह करती है। मेरे ज्ञान में हुए इस सुधार की वजह से मैं इन दिनों अकेले अपने डॉगी के साथ भोजन करने को मजबूर हूं क्योंकि परकाला प्रभाकर की तरह मेरी पत्नी भी आजकल उस शख्स, जिसका नाम नहीं लिया जा सकता, के विजयगान में मगन मंडली के साथ बाहर गई हुई हैं। 

फिर भी, जब कभी ऐसा दुर्लभ मौका मिलता है कि कोई मुझे बुला ही ले, तो मैं सबसे पहले अपने मेजबान का टीवी देखता हूं और फिर उसकी किताबों की अलमारी और उनके आकार की तुलना करता हूं। माजरा कुछ समझ में नहीं आया होगा। बताता हूं। मेरे पापा बहुत कम बोलते थे। न तो किसी को सलाह देते और न किसी से लेते। लेकिन एक बार उन्होंने यह नियम तोड़ते हुए मुझे बड़े काम की सलाह दी: कभी भी उस शख्स से बहस न करें जिसके टीवी का आकार उसके बुकशेल्फ से बड़ा हो।

उनके इस अपवाद व्यवहार से तालमेल बैठा पाता कि उन्होंने एक और सलाह देकर मुझे अवाक् ही कर दिया! कहा: किसी देश की प्रगति उसकी सामान्य जनसंख्या की कुल प्रजनन दर से नहीं बल्कि उसके मूर्खों की प्रजनन दर से तय होती है और ये दोनों दरें परस्पर उलटी दिशा में बढ़ने वाली होती हैं। 

न्यू इंडिया में हर रोज अपनी बातों को पूरा होते देख पाते, इसके पहले ही 2017 में पापा का निधन हो गया। ‘टेलीविजनजीवियों’ ने देश पर कब्जा कर लिया है और अब उन्हें अपने बैठकखाने में बुकशेल्फ की जरूरत नहीं रह गई है, इसकी जगह उन्होंने नए राम मंदिर के मॉडल या फिर बुलडोजर के मॉडल को अपना लिया है। देश मूर्खों के आबादी विस्फोट का सामना कर रहा है और इस किस्म के लोगों ने सरकार और नौकरशाही के शीर्ष पदों से लेकर, विश्वविद्यालयों, मीडिया, रक्षा बलों, सेल्युलाइड और कला की दुनिया, यहां तक कि आरडब्ल्यूए और वाट्सएप ग्रुप्स पर कब्जा कर लिया है। 

जरा ठहरें और सोचें, हम किसके खिलाफ हैं। जब मणिपुर जल रहा था, कश्मीर में सैनिक मर रहे थे, इंसाफ पाने के लिए ओलंपियन जंतर मंतर पर बैठे थे, उस समय हमारे प्रधानमंत्री दक्षिण प्रशांत में तारीफें बटोरने में जुटे थे और टीवी एंकर प्राइम टाइम पर कव्वाली के अंदाज में ताली बजा रहे थे।


21 मई की शाम एनडीटीवी का प्राइम टाइम पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री द्वारा हमारे प्रधानमंत्री के पैर छूने पर चर्चा को समर्पित रहा। दर्शकों को समझाने के लिए उनके पास राजनीतिक विश्लेषकों और राजनयिकों का एक पैनल भी था कि यह हमारे विश्वगुरु की स्थिति का जैसे अंतिम समर्थन था। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश में पापुआ न्यू गिनी की आबादी कोलकाता की आबादी से भी कम है या संबित पात्रा भी जानते हैं या नहीं कि यह देश आखिर हैं कहां। 

राष्ट्रपति बिडेन के एक मजाक (मोदी से ऑटोग्राफ के लिए पूछने) को अमेरिका की एक बड़ी नीतिगत पहल में तब्दील कर दिया गया, जबकि उसी अमेरिका ने लगातार चौथे साल हम पर मजहबी आजादी को दबाने का आरोप लगाया है और यूरोपीय संघ रूस पर लगे प्रतिबंधों की अनदेखी करने के लिए भारत के खिलाफ कार्रवाई पर विचार कर रहा है।

झुंड के एंकर हमें यह तो बताते हैं कि ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने कहा कि मोदी ‘बॉस’ हैं लेकिन उसके अगले ही दिन ऑस्ट्रेलिया की संसद में बीबीसी के ‘द मोदी क्वेश्चन’ को  प्रदर्शित किया जाता है। ऐसे लोगों से कोई बहस हो सकती है क्या? 

हम अब तक अपने मंत्रियों की बकवास सुनने के आदी हो चुके हैं। लेकिन त्रिपुरा के मुख्यमंत्री ने तो इसमें भी एक नई ही तलहटी खोज निकाली जब उन्होंने दावा किया था कि हिन्दुओं ने 9,000 साल पहले इंटरनेट का आविष्कार किया था और तब यह ‘इंद्रजाल’ के रूप में जाना जाता था। उन्होंने यह बताने की जहमत नहीं उठाई कि उस ‘इंद्रजाल’ को बिजली कहां से मिलती थी; संभवतः यह जानकारी हमारे वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के पास हो। और तो और, इसरो के अध्यक्ष ने बताया है कि समय, धातु विज्ञान, ब्रह्मांड की संरचना, उड्डयन वगैरह से जुड़ी वैज्ञानिक अवधारणाएं सबसे पहले वेदों में पाई गई थीं। बहुत बाद में यह सब अरबों के जरिये पश्चिम तक पहुंच सका। तो देर किस बात की? वह इसे पब्लिश क्यों नहीं कराते? उनका नोबेल पुरस्कार पक्का हो जाता।

लेकिन हमें अपने मंत्रियों के प्रति बहुत कठोर नहीं होना चाहिए। वे तो बस उस दौर के लक्षण हैं जिसमें हम रह रहे हैं। हमारी नौकरशाही भी कम ‘आविष्कारशील’ नहीं। हमारे नेट जीरो लक्ष्य से प्रेरित होकर, मध्य प्रदेश ने फैसला किया है कि वह यह अपने बूते हासिल करेगा और इसके लिए सरकार ने सभी प्रमुख शहरों में ‘तंदूर’ के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है क्योंकि वे बहुत ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करते हैं।


यह वैसा ही तर्क है जैसे आरबीआई गवर्नर का यह कहना कि दो हजार के नोट को चलन से हटाया जा रहा है क्योंकि उसने अपना जीवन चक्र पूरा कर लिया है। तो क्या वह अन्य मूल्यों वाले नोटों के लिए भी ऐसा ही करेंगे जो कहीं लंबे समय से चलन में हैं? (अटकलें तो यह भी हैं कि भविष्य में नोटों पर एक्सपायरी डेट छपी होगी, ताकि आरबीआई को हर सात साल में प्रेस कॉन्फ्रेंस न करनी पड़े)।

एक और बात, क्या शशिकांत दास को एहसास है कि वह अपनी गैर-आर्थिक पृष्ठभूमि का खुलासा कर देते हैं जब वह कहते हैं कि नोटों को 30 सितंबर, 2023 तक वापस करना होगा लेकिन यह भी जोड़ते हैं कि उस तारीख के बाद भी दो हजार के नोट वैध करेंसी बने रहेंगे? 

लेकिन मेरे लिए चिंता की इससे बड़ी वजह आरडब्ल्यूए और वाट्सएप ग्रुप्स में मूर्खों की आबादी दर में आई वृद्धि है। वर्षों तक सभी तरह के पाप करने के बाद उन्होंने अचानक ईश्वर को ‘खोज’ लिया और उन्हें पता चल गया है कि ईश्वर तो सिर्फ हिन्दू ही हो सकता है। मुगलई खाना खाकर, गजल और कव्वाली सुनते हुए, उर्दू शब्दों से भरी हिन्दुस्तानी जुबान बोलते हुए, गालिब और गुलजार की शायरी पर वाह-वाह करते हुए और दिलीप कुमार, मधुबाला, वहीदा रहमान की अदाकारी का झूम-झूमकर लुत्फ उठाते हुए बड़े हुए लोगों को अचानक लगने लगा है कि ये सभी तो समाज पर बुरे प्रभाव डालने वाले और हिन्दू संस्कार और लड़कियों के लिए खतरा हैं। लिहाजा, इन्हें इस जमीन से भगा दिया जाना चाहिए।

‘सुप्रीम लीडर’ नया भगवान है और वह कुछ भी गलत नहीं कर सकता। वह अडानी, राफेल, सस्ते रूसी तेल से निजी क्षेत्र की बेतहाशा कमाई के बाद भी बर्फ की तरह शुद्ध है; इस देश की सभी बुराइयों के लिए गांधी, नेहरू और ममता बनर्जी जिम्मेदार हैं; कर्नाटक में कांग्रेस केवल मुसलमानों के तुष्टिकरण के कारण जीती; जंतर-मंतर पर महिला पहलवानों के धरने के लिए विपक्ष पैसे दे रहा  रहा है।

उत्तर प्रदेश कानून और व्यवस्था का एक मॉडल है, भले ही 2022 के एनसीआरबी आंकड़ों के अनुसार वहां प्रति व्यक्ति अपराध दर (7.4) यानी सबसे अधिक है; हमने चीन को सबक सिखाया है, भले ही वह लद्दाख में हमारी हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कुंडली मारे बैठा हो; कश्मीर शांति और समृद्धि की भूमि है, भले ही यह दुनिया के सबसे अधिक सैन्यीकृत क्षेत्रों में हो।

भारत जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में विश्व चैंपियन है, भले ही हम दुनिया के 8वें सबसे प्रदूषित देश हैं और 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 39 भारत में हों (क्वालिटी ऑफ एयर रिपोर्ट 2022) और हमने अभी एक प्रस्ताव को मंजूरी दी हो जिसके तहत अंडमान में 160 वर्ग किलोमीटर के अछूते वर्षा वन में आठ लाख पेड़ गिराए जाने वाले हैं ताकि उनके जाने-माने उद्योगपति साथी कुछ अरब और की कमाई कर लें। 


भ्रांतियों की यह सूची बढ़ती चली जाती है लेकिन उन लोगों जिनके यहां बुक शेल्फ से बड़े टीवी हैं, का दिमाग तर्क के लिए उतना ही खुला है जितना सप्ताहांत को सरकारी दफ्तर खुले होते हैं। इसलिए मैं ऐसे लोगों से बहस नहीं करता। जहां बड़े आकार का टीवी दिखा, फौरन कदम पीछे खींचकर अपने फ्लैट में अपने प्यारे डॉगी के पास आ गया जिसके पास आरडब्ल्यूए के सभी सदस्यों को मिलाकर जितनी बुद्धि होगी, उससे ज्यादा ही है।

मैंने अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीप लर्निंग के एल्गोरिदम पर अपनी उम्मीदें टिका दी हैं। मुझे पता चला है कि जल्द ही हमारे पास ऐसा टीवी होगा जो स्क्रीन पर अर्नब गोस्वामी, राहुल शिवशंकर, नविका कुमार या संबित पात्रा के दिखते ही अपने आप चैनल बदल देगा या फिर टीवी ही बंद कर देगा। तो खुश हो जाएं दोस्तों, कृत्रिम बुद्धिमानी अब हमें प्राकृतिक मूर्खता से बचा सकता है। 

(अभय शुक्ला रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं।)

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