गुजरात चुनाव : कांग्रेस ने क्या खोया,क्या पाया
गुजरात चुनाव में कांग्रेस भले ही हारी हो, लेकिन आने वाले दिनों में उसके लिए अच्छे संकेत उभर कर आए हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों के मुकाबले कांग्रेस के वोट शेयर में 47 फीसदी का इजाफा हुआ है।
गुजरात चुनावों में बीजेपी की विजय और कांग्रेस की नैतिक जीत पर चर्चाओं से उठा शोर अब थमने लगा है। राजनीतिक विशेषज्ञों ने अपने अपने विश्लेषण पेश कर दिए हैं। लेकिन एक बात जो सभी विश्लेषणों में नजर नहीं आई वह यह कि इस चुनाव के बाद कांग्रेस कहां खड़ी है। राज्यसभा टीवी के पूर्व सीआईओ गुरदीप सिंह सप्पल का दिलचस्प विश्लेषण:
गुजरात चुनावों से कांग्रेस के लिए कुछ अच्छे संकेत निकल कर आए हैं।
कांग्रेस के वोट शेयर में जबरदस्त उछाल
- कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 85 लाख वोट मिले थे।
- इस बार 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हिस्से में करीब 1 करोड़ 25 लाख वोट आए हैं। यानी करीब 47 फीसदी वोटों का इजाफा
- बीजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 1 करोड़ 52 लाख वोट मिले थे
- इस बार 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के वोट गिरकर 1 करोड़ 47 लाख पहुंच गए
- हालांकि कुल पड़े वोटों की संख्या करीब 39 लाख बढ़ी है, फिर भी बीजेपी के वोटों में 5 लाख की कमी आई
- हां, बीजेपी को इस चुनाव में 49.1 फीसदी वोट हासिल हुए
वो सीटें जो फिसल गईं हाथ से
- कांग्रेस उन 15 सीटों को नहीं बचा पाई जो उसने 2012 में जीती थीं। इसी से सारा फर्क पड़ा
- इनमें से 4 सीटें अनुसूचित जाति के लिए थीं। पिछली बार कांग्रेस ने इनमें से 3 सीटें 15 से 25 हजार वोटों के अंतर से जीती थीं
- अन्य 4 सीटें वो थीं, जहां के विधायकों ने बगावत कर दी थी
- इन्हीं सीटों ने सरकार और विपक्ष के बीच अंतर बड़ा किया
फुस्स हो गई वघेला की बगावत
- जिन 14 सीटों पर कांग्रेस के विधायकों ने बगावत की थी, उनमें से 10 कांग्रेस ने जीत लीं
- बाकी 2 सीटों पर कांग्रेस 258 और 1164 वोटों के मामूली अंतर से हारी
- कांग्रेस ने शंकर सिंह वघेला और उनके बेटे की कपाडवंज और बयाड सीटें 27,226 और 7901 वोटों के अंतर से जीतीं
- वघेली की पार्टी को मात्र 84 हजार वोट ही मिले
16 सीटों पर कांटे के मुकाबले में हारी कांग्रेस
- कांग्रेस ने 3 सीटें 1000 से भी कम वोटों से हारीं
- 5 सीटें ऐसी थीं जहां जीत का अंतर 1000 से 2000 के बीच रहा
- कांग्रेस ने ऐसी 8 सीटें हारीं जहां अंतर 2000 से 3000 के बीच रहा
- कांटे के मुकाबले वाली 12 सीटें बीजेपी के हाथ से फिसलीं
- बीजेपी ने 4 सीटें 1000 से भी कम अंतर से गंवाईं
- 5 सीटें बीजेपी ने 1000 से 2000 वोटों के अंतर से हारीं
- बीजेपी ने 3 सीटें 2000 से 3000 वोटों के अंतर से खोईं
शहरों ने नहीं दिया कांग्रेस का साथ
- शहरी इलाकों की 36 में से सिर्फ 3 सीटें ही मिलीं कांग्रेस को
- उपनगरीय इलाकों की 27 में से सिर्फ 12 सीटें ही हाथ लगीं कांग्रेस के
- ग्रामीण इलाकों की 119 सीटों में से कांग्रेस+ ने 65 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी ने महज 51
- कांग्रेस गठबंधन ने 21 आदिवासी सीटों में से 13 पर जीत हासिल की और जीत का अंतर औसत 17 हजार वोट रहा
कितना अंतर रहा वोटों का
- कांग्रेस ने अपनी मौजूदा सीटों में से 15 बीजेपी के हाथों गंवा दी
- बीजेपी ने अपनी 82 मौजूदा सीटें जीतीं
- बीजेपी की जीत का औसत अंतर 29967 वोट रहा
- कांग्रेस की जीत का औसत अंतर 13354 वोट रहा
- शहरों की 33 सीटों पर बीजेपी का औसत जीत का अंतर 47626 वोट रहा
- उपनगरीय इलाकों बीजेपी की जीत का औसत अंतर 20526 वोट रहा जबकि कांग्रेस का 14249 वोट रहा
- ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की जीत का औसत अंतर 21316 और कांग्रेस का 13155 वोट रहा
- अनुसूचित जाति वाली सीटों पर बीजेपी की जीत का औसत अंतर 19716 वोट और कांग्रेस का 17,218 वोट रहा
कैसे कामयाब हुई गुजरात में कांग्रेस
- कांग्रेस का प्रचार बेहद कामयाब रहा
- कांग्रेस ने वोटरों से सीधे संवाद में कामयाबी हासिल की
- राहुल गांधी ने खुद प्रचार की कमान संभाली और वोटरों से सीधे जुड़े
- कांग्रेस के सोशल मीडिया अभियान की खूब चर्चा रही
- सोशल मीडिया अभियान ने बीजेपी और पीएम के हमलों का बखूबी और त्वरित जवाब दिया
- कांग्रेस ने सफलतापूर्वक सोशल गठबंधन किए
- ग्रामीण वोटरों से बहुत अच्छी तरह पहुंच पाई कांग्रेस
- बागी विधायकों की सीटों के हासिल करने में कामयाब रही कांग्रेस
क्या कमी नजर आई गुजरात में कांग्रेस के प्रचार में
- जमीनी स्तर पर कांग्रेस का संगठन बेहद कमजोर था
- बीजेपी के ‘राष्ट्रवाद’ और ‘मुस्लिम विरोधी’ प्रचार का ताकत से जवाब नहीं दे पाई कांग्रेस
- उप-जातीय स्तर पर कांग्रेस सोशल इंजीनियरिंग करने में चूकी
- शहरी इलाकों के वोटरों से अभी तक कांग्रेस सीधे जुड़ने में कामयाब नहीं हो सकी
- बीजेपी-संघ की तरफ से शुरु हुए राहुल और कांग्रेस विरोधी सोशल मीडिया प्रचार का असर अब भी शहरों में कायम
- जीएसटी और रोजगार के मुद्दों ने वोटरों को आकर्षित तो किया, लेकिन शहरी वोटर को और ज्यादा समझाने की जरूरत थी
- कांग्रेस शहरी वोटरों को अपने दौर के आर्थिक और इंफ्रास्ट्रक्चरल विकास के बारे में नहीं समझा पाई
- कांग्रेस शहरी वोटरों को खुद पर लगे भ्रष्टाचार के उन आरोपों पर सफाई नहीं दे पाई, जिसका सीएजी ने महज आंकलन किया था
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Published: 19 Dec 2017, 1:42 PM