विष्णु नागर का व्यंग्य: तुम हमें सरकार दो, हम तुम्हें खून चूसने के और अवसर देंगे‌!

सरकार यह तो मानती है कि मजदूरों का खून पीने की जितनी आवश्यकता पूंजीपतियों को है, उतनी ही खटमलों और मच्छरों को भी है। ये इनके भी जीवन -मरण का सवाल है। पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

बहुत समय से सरकार के उच्चतम स्तर पर यह महसूस किया जा रहा है कि मच्छरों और खटमलों ने बेहद गुंडागर्दी मचा रखी है। ये भारतवासियो का इतना अधिक  खून पी रहे हैं कि बेचारे पूंजीपति संकट में आ गये हैं। मजदूरों में इतना खून बचा नहीं है कि उसे वे भी चूस सकें, निचोड़ सकें। उसका आनंद ले सकें। पूंजीपति  कब से यह शिकायत करते आ रहे थे मगर सरकार आम जनता और खटमलों तथा मच्छरों के तुष्टिकरण में व्यस्त थी। पूंजीपतियों की ताज़ा धमकी के बाद सरकार चिंतित हो उठी है। वह इस दिशा में कठोर कदम उठाने के बारे में गंभीर है।

 पहले ये जीव पूंजीपतियों के चूसने के लिए भी पर्याप्त खून छोड़ देते थे। इस कारण कोई समस्या नहीं थी। दोनों की पार्टनरशिप संतोषजनक ढंग से चल रही थी। इधर ये अधिक लालची और निर्भय हो चले हैं। ये इतने निरंकुश हो गये हैं कि इन्हें देश के बड़े से बड़े पूंजीपतियों तक का खयाल नहीं है। ये उनके शोषण के लिए  मनुष्य -रक्त की चार बूंद तक नहीं छोड़ रहे हैं।‌ इन्हें सरकार, पुलिस , अदालत किसी का डर नहीं। सीबीआई -ईडी का न इन्हें पता है, न सीबीआई-ईडी वगैरह यह जानती है कि इनसे पूछताछ कैसे करे, कैसे धमकाये और न माने तो कैसे इन्हें गिरफ्तार करे! सरकार, देश और प्रधानमंत्री को तो ये मानते तक नहीं। देशभक्ति इनका विषय नहीं। पार्टी में ज्वाइन करते नहीं। ये जानते नहीं कि हर चीज की एक कीमत होती है। खून पीने के लिए भी सरकार की इजाजत की जरूरत होती है, चुनावी बांड खरीदना पड़ता है।

 सरकार यह तो मानती है कि मजदूरों का खून पीने  की जितनी आवश्यकता पूंजीपतियों को है, उतनी ही खटमलों और मच्छरों को भी है। ये इनके भी जीवन -मरण का सवाल है। उनका जीवित रहना भी जरूरी है मगर मुफ्त में खून पी -पीकर ये कुछ अधिक मस्ताने लगे हैं। जनता गवाह है कि  सरकार ने आज तक इनके काम में कभी बाधा नहीं डाली। इनकी स्वतंत्रता का हमेशा सम्मान किया है मगर अब पानी सिर से गुजरने लगा है तो सरकार को कुछ करना पड़ेगा। सरकार यह कैसे सहन कर सकती है कि उसके सहायक, उसके अभिन्नतम, उसके सगे पूंजीपति तो खून का शोषण करने के लिए तरसें और इधर ये जो न कभी टैक्स देते हैं,न वोट ,न जाति-धर्म को मानते हैं, न अयोध्या जाते हैं, न प्रधानमंत्री को कुछ मानते हैं, मौज करते रहें। ये इतने नाशुक्रे हैं कि उनके मन की बात तक नहीं सुनते तो उनके प्रति सरकार उदार क्यों हो? अपने वोट बैंक को नाराज़ क्यों करे?

 वैसे भी पूंजीपतियों के लिए गरीबों के खून के शोषण का प्रबंध करना सरकार के पुनीत कर्तव्यों में से एक है। आशंका यह है कि अगर यह स्थिति कुछ समय तक और चलती रही तो देश के सारे उद्योग-धंधे चौपट हो जाएंगे। पूंजीपति वर्ग के साथ जनता भी नाराज़ हो जाएगी। पूंजीपति वर्ग का सरकार से विरत हो जाना सरकार के अस्तित्व के लिए ख़तरनाक है क्योंकि जनता को तो मंदिर आदि से बहकाया -बहलाया-सहलाया जा सकता है मगर पूंजीपति होशियार होते हैं, नशा करके भी बहकते नहीं। उन्हें मंदिर नहीं, मुफ्त का या औने-पौने दाम में ठोस माल चाहिए। बैंक से कर्ज के नाम पर मुफ्त का जनता का पैसा उड़ाने के लिए चाहिए।

 पूंजीपतियों ने सरकार को तुरंत कदम उठाने की चेतावनी दी है। कहा है कि जल्दी ही उनके लिए कुछ नहीं किया गया तो वे ऐन चुनाव के बीच इस सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेंगे ।उन्हें मजबूर होकर वैकल्पिक राजनीतिक उपायों के बारे में सोचना पड़ेगा। उन्हें सरकार के विरुद्ध खुल कर आने में भी हिचक नहीं होगी।

 बताते हैं कि सरकारी क्षेत्र में इस धमकी से हड़कंप मच गया है। सरकार ने तत्काल अधिकारियों, न्यायविदों और पूंजीपतियों की उच्चस्तरीय समिति नियुक्त कर दी है, जो जून के दूसरे सप्ताह में निश्चित रूप से अपनी रिपोर्ट सौंप देगी। सरकार ने आश्वस्त किया है कि इसकी रिपोर्ट पूरी तरह पूंजीपतियों अनुकूल होगी। उनकी सारी मांगें मानी जाएंगी। यह समिति अंतिम निर्णय से पहले पूंजीपतियों की सहमति लेगी। बस चुनाव तक शोर न मचाया जाए। वातावरण न बिगाड़ा जाए।

 इस बीच लगातार ऐसी रिपोर्टें आ रही हैं कि चुनाव में सरकारी गठबंधन का सपना हकीकत में नहीं बदल रहा है। उसे 150 से अधिक सीटें नहीं मिलेंगी। अतः समिति के आधे सदस्य इस समिति के प्रति अब उदासीन हो चले हैं। वे नहीं चाहते कि आगामी सरकार की नजर में वे संदिग्ध बनें। अधिकतर सदस्यों ने निजी कारणों का हवाला देकर इससे त्यागपत्र दे दिया है। यह सरकार के लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं है।

 उधर सरकार की ओर से कहा गया है कि 150 सीटों की बात कोरी अफवाह है और इसे फैलानेवालों पर कार्रवाई शुरू कर दी गई है। इसके बावजूद 150 तो क्या हमारे गठबंधन की अगर कुल तीस सीटें भी आईं तो सरकार हमारी ही बनेगी और हमारी सरकार मतलब आपकी अपनी सरकार है। आप तन- मन से भले हमें सहयोग न दें मगर धन से दें!

तुम हमें सरकार दो, हम तुम्हें मानव रक्त देंगे‌।

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