विष्णु नागर का व्यंग्य: 2014 से पहले जो नहीं हुआ, वो सब अब हो रहा है!

अभी हिन्दुत्व का स्वाद ठीक से हमने चखा ही कितना है, अभी हिन्दू राष्ट्र बना कहां है, अभी तो निर्माण कार्य जारी है। हवनकुंड बन रहे हैं। समिधा की प्रतीक्षा है।

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

कुछ लोग अब भी कहते हैं, यह भारत है, विविध धर्मों, विश्वासों, संस्कृतियों, भाषाओं का प्राचीन और विशाल देश है। यहां की लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष परंपराएं काफी मजबूत हैं। यहां किसी भी कीमत पर ये नहीं हो सकता, वो नहीं हो सकता। यह बीसवीं सदी की जर्मनी नहीं है, इटली नहीं है। यह इक्कीसवीं सदी का भारत है। यहां इन जैसे बहुत से आए और जाने कहां बिला गए! ससुरों का दुबारा पता नहीं चला। यह भारत है। महात्मा बुद्ध, महात्मा गांधी, भगत सिंह, बाबासाहेब का देश है। यह चिरकुटों का देश कभी था नहीं, बन नहीं सकता!

इतने आशावादी भी मत बनिए। इत्मीनान से देखिए। यहां भी कुछ भी हो सकता है, हो रहा है और आगे भी हो सकता है। यह अब कितना गांधी-नेहरू का देश है, इसे देखिए-समझिए। फिर रोना चाहें, तो रोइए। हंसना चाहें तो हंसिए मगर घर के किसी अंधेरे कोने में। अकेले में। मोबाइल पर, लैपटाप पर, फेसबुक-व्हाट्स एप पर नहीं! देखिए कि कहीं यह मोदी-शाह-आदित्यनाथ का देश तो नहीं बन चुका? बन चुका है तो गला घोट दिया जाए, आंखें फोड़ दी जाएं, हाथ-पांव तोड़ दिए जाएं, उल्टा लटका दिया जाए तो भी कैसे जिया और लड़ा जाता है, कैसे लोग जिये और लड़े हैं, यह जानना-सीखना पड़ेगा। नाक बंद कर दी जाए तो मुंह से सांस लेकर जीना पड़ेगा पर जीना पड़ेगा और सिर्फ जीना नहीं पड़ेगा। कार्बन डाइऑक्साइड कितनी ही बढ़ा दी जाए, आक्सीजन के स्रोत ढूंढ-ढूंढ कर जीना पड़ेगा। पहली शर्त  है, जीना पड़ेगा, जीना पड़ेगा। इनकी नाक में दम करना पड़ेगा।


2014 से पहले बहुत कुछ जो नहीं हुआ था, वह सब अब हुआ है, हो रहा है। अभी शुक्रवार को हुआ है, शनिवार को हुआ है और आज रविवार भी खाली नहीं जाएगा। 2022 तक न जाने क्या- क्या बेहिसाब हुआ है और 2023 में भी हो रहा है और अभी इसके नौ महीने बचे हैं। फिर 2024 को भी आना है। इसके जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल सबको आना है। फिर मई को भी आना है। फिर इसकी क्या गारंटी है कि यह जो हो रहा है, मई के बाद नहीं होगा? रीढ़ तो बहुतों की पहले ही तोड़ी जा चुकी, बाकी की हड्डियां भी शायद तोड़ी जाएं,खून की नदियां बहाई जाएं। जो चुप हैं, वे बचेंगे नहीं। उनसे भी पूछा जाएगा कि वे समर्थन क्यों नहीं आए? अभी हिन्दुत्व का स्वाद ठीक से हमने चखा ही कितना है, अभी हिन्दू राष्ट्र बना कहां है, अभी तो निर्माण कार्य जारी है। हवनकुंड बन रहे हैं। समिधा की प्रतीक्षा है।

होने को तो वह सब हो सकता है, जिसकी कल्पना दुनिया के बड़े से बड़े तानाशाहों ने भी नहीं की थी। जार्ज आरवेल जैसे लेखक की कल्पनाशक्ति भी जहां चूक गई थी! इसलिए कृपया इतने आशावादी मत होइए कि जो हो चुका, हो चुका, अब सबकुछ अच्छा होगा मगर इतने निराशावाद भी मत बनिए वही सब होगा, होने दिया जाएगा, जो यूरोप में बीसवीं सदी में हुआ था!

हां एक बात पर विश्वास रखिए कि आपके-हमारे जीते जी, धरती अपनी धुरी पर घूमती रहेगी और सूरज पूरब से निकलेगा। प्रकृति में अभी इतना दम है कि आम, अमरूद, केले, पीपल के पत्ते, सूखने से पहले, हरे रहें। किसी तानाशाह, किसी मोदी का बस इन पर नहीं चल सकता वरना ये पूरी प्रकृति को भगवा रंग से रंग देते, हरे रंग को प्रतिबंधित कर देते!


हां इलाहाबाद, अब इलाहाबाद नहीं रहा मगर शुक्र है कि अमरूद बेचनेवाले अभी भी इन्हें इलाहाबाद के पेड़े बता  रहे हैं और किसी ने अभी तक इन पर मुकदमा नहीं किया कि ये प्रयागराज को किसकी इजाजत से इलाहाबाद कह रहे हैं, प्रयागराज के पेड़े क्यों नहीं कह रहे? सब फल बेचनेवालों को गिरफ्तार किया जाए। अभी भी शायद 99 फीसदी जजों में इतनी न्याय बुद्धि बची है कि इन अमरूदवालों को सजा नहीं देंगे। राहुल गांधी की तरह दो साल की सजा तो बिल्कुल नहीं देंगे। वैसे इस खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता कि फलवालों को जेल भी हो सकती है और दो साल भी बहुत कम समझे जाएं, आजीवन हो सकती है!

मैं ईश्वर में विश्वास नहीं करता मगर आश्चर्यों में करता हूं। मैंने बहुत सीधे- सादे- सच्चे, बेहद भोले, ईश्वरविश्वासी, निर्दोषों को जेल में घुट -घुट कर मरते देखा है और भ्रष्टाचारियों-हत्यारों को सांडों की तरह खाते-पीते, एक सौ एक वर्ष तक बिना बीमार हुए ,आराम से चाय पीने के बाद कुर्सी पर हार्ट अटैक से मरते देखा है।बताया जा रहा है कि ये सभी सींग सहित स्वर्ग में घुस गए और कोई इन्हें रोक नहीं पाया!

लोग गुरुवार तक शर्त लगा रहे थे कि राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता खत्म नहीं होगी। अगले ही दिन वे गलत साबित हो गए। अभी शुक्रवार को चौदह दलों ने सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई-ईडी के मनमाने इस्तेमाल के विरुद्ध याचिका मंजूर कर ली। निर्णय इनके अनुकूल आया, तब तो पहले की तरह सबकुछ चलता रहेगा और प्रतिकूल आया तो क्या रुकेगा?

किसने सोचा था कि जो अपने को शाकाहारी बताते हैं और जिन्होंने मुर्गी के अंडे छोड़ो, मुर्गी की तरफ भी नहीं देखा है, वे गोमांस के इतने बड़े विशेषज्ञ हो जाएंगे कि उसे फ्रिज में से निकाल कर  अखलाक की जान ले लेंगे! जो सोचते थे कि प्रधानमंत्री किसी भी पार्टी का हो,  प्रधानमंत्री होता है, सबका होता है और इतना गया बीता तो बिलकुल नहीं होता कि कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता को 'कांग्रेस विधवा' कहे मगर हमने देखा है कि ऐसा कहा गया है! हमने देखा- सुना है कि प्रधानमंत्री होकर भी कोई  क्या-क्या कह और कर नहीं सकता? देखिए आज भी उनकी तरफ से कोई खबर आई होगी और इससे अलग हो तो समझिए कि अगले एक घंटे तक सब ठीक रहनेवाला है! हां भूकंप का कुछ पता नहीं। वह प्रधानमंत्री की इजाज़त लेकर नहीं आता। और कमाल यह है कि प्रधानमंत्री ने आज तक इसका बुरा नहीं माना!

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