विष्णु नागर का व्यंग्य: 22 तारीख को राम के नाम पर टोटल फर्जीवाड़ा, इसका किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं!
यह आज तक के सभी राजनीतिक खेलों का खेल है। इसके पीछे एक ही उद्देश्य है कि इस पार्टी, इसके नेता के सभी विरोधियों को राम मंदिर के नाम पर चुनाव में चारों खाने चित कर देना। पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।
राम का हो या रहीम का, हिंदुस्तान का बच्चा- बच्चा जानता है कि कल 22 तारीख को अयोध्या में राम के नाम पर टोटल फर्जीवाड़ा होने जा रहा है। यह केवल हिंदूवादियों का चुनावी खेल है, जिसमें कानून और संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सरकारी संसाधनों का अपहरण किया जा रहा है। इस जमावड़े का किसी रामलला से, किसी अयोध्या से, किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। लालकृष्ण आडवाणी जिस खेल को समाप्त हुआ समझ रहे थे, ये उसके आगे का, उससे बड़ा खेल खेला जा रहा है। ये नीचे से नफरत का, ऊपर से 'श्रद्धा' का खेल है। ये पैसे का, सत्ता की ताकत का खेल है। इसमें ऊपर- ऊपर हिंसा नहीं है मगर नीचे उसी की अजस्र धारा बह रही है। यह आज तक के सभी राजनीतिक खेलों का खेल है। इसके पीछे एक ही उद्देश्य है कि इस पार्टी, इसके नेता के सभी विरोधियों को राममंदिर के नाम पर चुनाव में चारों खाने चित कर देना। ये कभी दुबारा उठ न पाएं, जमीन में गहरे धंसा दिए जाएं, इसका पुख्ता इंतजाम करना। राम-राम, मरा-मरा जपने को इन्हें मजबूर कर देना। ये और इनका ये खेल अनंत काल तक इस तरह चले कि जनता का होना, न होना, वोट देना न देना सब निरर्थक हो जाए। इस पाले में भी ये हों, उस पाले में भी ये। ये नूराकुश्ती करें और दर्शकों को लगे कि ये तो पहले की तरह का जनतंत्र-जनतंत्र का संवैधानिक खेल है। दर्शक ताली बजाएं और बक अप करें, कहें कि ये कितना अच्छा, कितना स्मार्ट खेल है। रामलला इनके लिए लोकसभा की चार सौ सीटें हैं। तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की कुर्सी है। हिंदू राष्ट्र की अनौपचारिक घोषणा का अवसर है।
ये 1992 से बड़ा फर्जीवाड़ा है। ये रामलला का नहीं, इनका खुद का अपना मंदिर है। यहां रामलला नहीं, ये स्वयं कल विराजित होंगे। यहां ये अपनी मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा पुनः करेंगे। अपने ही गुण ये गाएंगे। अपने आराधक ये खुद होंगे और अपने आराध्य भी यही होंगे। अपने रामलला, ये स्वयं होंगे। ये ही मूर्तिमान होंगे, ये ही सजीव रूप में होंगे। ये ही आमंत्रित हैं, ये ही आमंत्रणकर्ता। ये ही पुरोहित हैं, ये ही देवता। अपनी आरती ये यहां स्वयं उतारेंगे। ये सारा तामझाम इनका है, इनके लिए ही है। इनके आगे किसी भगवान, किसी रामलला की क्या हस्ती!ये रामलला से नहीं हैं, रामलला इनसे हैं। इनके प्रकाश से रामलला प्रकाशित हैं। इनकी हस्ती ही, आज रामलला की हस्ती है। ये हैं, इसलिए ये मंदिर है। ये जो कल आ रहे हैं या नहीं आ रहे हैं, इनके कारण आ या नहीं आ रहे हैं। ये जो अपने सब जरूरी काम छोड़कर आ रहे हैं, इनके प्रति अपनी निष्ठा, अपना भक्तिभाव दिखाने आ रहे हैं। ये अपने 'आराध्य' को अपना चेहरा दिखाने आ रहे हैं। बिना कहे, यह कहने आ रहे हैं कि भगवन, हम भी हैं, हमारा भी खयाल रखते रहना। आपकी सेवा करने का, आपके चरणों में शीश नवाने का भरपूर मौका हमें भी देना। राम के नाम की लूट में हमारा हिस्सा भी रखना। आशीर्वाद हमें भी देना। द गुड़-चना का नहीं, असली घी से तर माल देना। हम कुछ होकर भी कुछ नहीं हैं और जब तक आप हैं, हम आपके परम भक्त हैं। ये अपनी तरह की, अभी तक की सबसे बड़ी इन्वेस्टमेंट समिट है। इसमें अडानी-अंबानी का ही नहीं, इसमें धर्मगुरुओं, वकीलों, जजों आदि का इन्वेस्टमेंट भी चाहिए। जो भी वोट ला सके, दिला सके, इनकी पुन: प्राण-प्रतिष्ठा करवा सके, सबका निवेश चाहिए। यह समिट इस धमकी के साथ शुरू हो रही है कि जो इसमें इन्वेस्टमेंट नहीं करेगा, गच्चा खाएगा। कुचल दिया जाएगा, मसल के फेंक दिया जाएगा।
कल यहां सबके सब परम धार्मिक होने का ए वन नाटक करेंगे। एक से बढ़कर एक भक्तिभाव का प्रदर्शन करेंगे। इनके सामने दांत निपोरेंगे। इनकी निगाह पड़ जाए, इनका नोटिस लिया जाए, इसके लिए सर्वांगासन करेंगे। और ये सबकी तरफ देखेंगे भी नहीं। दिखाएंगे कि आ गए, तो क्या अहसान किया। तुम न आते तो जाते कहां? तुम्हें बुलाया, समझो, यही तुम्हारा सम्मान है।
इनकी देखा- देखी अब सारी पार्टियां मंदिर- उद्योग चला रही हैं। पिट कर भी यही खेल, खेल रही हैं। ममता बनर्जी तक कह चुकी हैं, हम इनसे ज्यादा मंदिर बनाकर दिखाएंगे। घर-घर में, कोने-कोने में मंदिर हैं, फिर भी मंदिर बहुत कम पड़ रहे हैं। यह राम मंदिर इनकी सारी बेहूदगियां दबाने-छिपाने ने के लिए लाया गया है। लोगों की मजबूरियों का मज़ाक़ बनाने के लिए लाया जा रहा है। बेरोजगारी मुंह बारे खड़ी होगी मगर उसकी बदसूरती को मंदिर की छाया में कोई नहीं देखेगा। भूख उस तरह दफा हो जाएगी, जैसे जी-25 के समय झोपड़ियां हवा कर दी गई थीं। जैसे हर कड़कड़ाती ठंड में झुग्गी-बस्तियां गिरा दी जाती हैं चीखें कांपतीं-कुनमुनाती रह जाती हैं।
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