विष्णु नागर का व्यंग्य: चार सौ सीटों का दावा है फर्जी, निर्मला सीतारमन ने खोल दी बीजेपी की पोल!
मामला अंदर से कुछ गड़बड़ है। एक तरह आपने अपने नेता के दावों पर पानी फेर दिया है! उनके झूठ की पोल खोल दी है। इशारों-इशारों में कह दिया है कि चार सौ सीटों का दावा फर्जी है, कोरी हवाबाजी है।
जब तमाम विपक्षी दलों के नेता अपने दलों से दशकों का नाता तोड़कर भाजपा की नाव में सवार होकर लोकसभा चुनाव जीतने का सपना देख रहे हैं, तब देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन कह रही हैं, ना मैं बाबा ना, मैं चुनाव नहीं लड़ सकती! चुनाव लड़ना बहुत महंगा हो गया है और मेरे पास इतना धन नहीं है। न मुझे जाति- धर्म का खेल, खेलना आता है।
वाह, निर्मला जी, वाह, चुनाव के मौके पर याद आ रही इस आदर्शवादिता के क्या कहने! एक तरफ आपके परमादरणीय नेता ये सारे खेल खेलकर लोकसभा की 400 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं और दूसरी ओर आप अचानक आदर्शवादिता की खोल में घुस गई हैं। मामला अंदर से कुछ गड़बड़ है। एक तरह आपने अपने नेता के दावों पर पानी फेर दिया है! उनके झूठ की पोल खोल दी है। इशारों-इशारों में कह दिया है कि चार सौ सीटों का दावा फर्जी है, कोरी हवाबाजी है। अकूत धन खर्च करने पर भी एक-एक सीट जीतना मुश्किल होगा! कभी-कभी भाजपा के बड़े नेता भी इशारों-इशारों में सच बोल देते हैं। इसके लिए धन्यवाद निर्मला सीतारमन जी। झूठ बोलने के इस त्योहारी मौसम में आपने नन्हा सा चुनावी सच तो उगला!
आपके नेता कह रहे हैं कि पूरे देश में मोदी- लहर चल रही है। मोदी की नहीं, पैसों की लहर पर लहर चल रही है। दुनिया जानती है कि अकूत पैसों की और मोदी जी की जुबान की लहर चल रही है। भाजपा के पास और कुछ नहीं है,बहुत पैसा है। जो सीधी ऊंगली से नहीं देता, उससे टेढ़ी ऊंगली से पैसा वसूलना भाजपा अच्छी तरह जानती है। इसके लिए ईडी का इस्तेमाल होता है। ईडी पैसों की खान है और वित्त मंत्री उस खान की औपचारिक मालकिन हैं। पिछले पांच साल में भाजपा ने इसी ईडी के जरिए खूब उगाही की है।
निर्मला जी चुनाव के लिए पैसों की चिंता करने की आपकी बात गले नहीं उतरती। जिन कारपोरेटों की आपने, आपकी सरकार ने अहर्निश सेवा की है, वे आखिर किस मर्ज की दवा हैं? जितना, जब चाहो, वे पैसा लेकर आज भी हाजिर हैं। और जब असली लहर चलती है न, तो निर्मला जी, जाति-धर्म अपने आप गौण हो जाते हैं। लहर में तो निर्मला जी कचरा भी बह जाता है, जबकि आप तो मोदी सरकार की नवरत्नों में से एक हैं। आपका जीतना पक्का था मगर लहर नहीं है और आप चुनाव लड़ने डर रही हैं। आपने तो लहर थ्योरी पर शक खड़ा कर दिया है। जब आपको संदेह है, तो फिर जनता को लहर कैसे दिखेगी? लहर वोटरों में नहीं, मोदी जी के दिमाग से उनकी जुबान तक है और मोदी जी की जुबान तो बारहों महीने चलती रहती है। हास्यास्पदता के नये-नये शिखर छूती रहती है।
और निर्मला जी, जब आपको अपने मंत्रालय से संबद्ध ईडी से दैनिक छापामारी करवाकर, पूंजीपतियों से आढ़े-टेढ़े ढंग से चुनाव फंड की वसूली करते हुए डर नहीं लगा, तो चुनाव लड़ने से डर क्यों लग रहा है?आपको विपक्ष के इतने सारे नेताओं को ईडी के जरिए जेल भिजवाते हुए, इतने विपक्षी नेताओं को सरकार के कदमों में लाकर बैठाते हुए, इतनों के भ्रष्टाचार पर पर्दा डालते हुए डर नहीं लगा, तो चुनाव लड़ने से डर क्यों लग रहा है? आपके मंत्रालय को कारपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के नाम पर कंपनियों के फर्जीवाड़े में मदद करने से भय नहीं लगा तो आपको चुनाव से डर क्यों लग रहा है? आपके इन 'सद्कर्मों ' के एवज में आपकी पार्टी और कारपोरेट आपको जिताने पर क्या सौ- दो सौ करोड़ भी खर्च नहीं करेंगे? आजकल पैसा और ईडी ही तो मिलकर आपकी और से चुनाव लड़ रहे हैं!
और निर्मला जी आप जानती हैं कि भाजपा के उम्मीदवार इतने बेवकूफ नहीं हैं कि अपने खुद के पैसों से चुनाव लड़ें?ऐसा होता तो भाजपा को आधे उम्मीदवार भी नहीं मिलते।आपसे बेहतर कौन जानता है कि किसके पैसों से और किसके लिए आपकी पार्टी चुनाव लड़ती और जीतती है?जन कल्याण तो बहाना है। मूर्ख बहाने का खेला है। चुनाव तो अडानियों- अंबानियों के धन से , उनके लिए लड़ा और जीता जाता है।भाजपा तो महज उनका मोहरा है।जब तक इनका मतलब भाजपा से सधेगा,तब तक ये भाजपाई मोहरों से खेलते रहेंगे वरना इनको छोड़ दूसरे मोहरे को ढूंढ लेंगे। इन्हें देश से उतना ही मतलब है,जितना कि मोदी जी को है।
वैसे आपका डर वाजिब है निर्मला जी। आंखें आपके और आपके नेता के पास ही नहीं है,लोगों के पास भी हैं। अकल पर भी आपका ठेका नहीं है,लोगों का भी है। लोग समझ रहे हैं अब आपका खेला। दस साल तक उन्होंने आपको मुक्त भाव से खेलने दिया। सोचा कि अंततः आप कुछ करेंगे मगर आपके नेता मंदिर बनाने लगे रहे, हर दिन नया षड़यंत्र रचते रहे, लोकतंत्र की जय बोलकर उसी की जड़ में मट्ठा डालते रहे। आतंक और डर की भाषा के अलावा कोई और भाषा वे जानते नहीं। विपक्षी सरकारों को लूला -लंगड़ा करने, जनता को कष्ट में डालने में वे लगे रहे। मनरेगा के मजदूरों तक की मजदूरी रोकने में झिझक नहीं दिखाई, उस भाजपा को लोग क्या इसलिए जिताएंगे कि वह महीने में पांच किलो अनाज देकर उन्हें बंधक बनाए रखे। आपका दुर्भाग्य कि लोग अब इतने भोले नहीं रहे। चतुराई आप ही नहीं जानते, वे भी जानते हैं। आप उन्हें अपना खिलौना समझते हो मगर वोटरों की खिलौनों से खेलने की उम्र कभी की गुजर गई, निर्मला जी।
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