विष्णु नागर का व्यंग्य: वो मनुष्य जैसा दिखता है, बोलता है तो फिर बोलता ही चला जाता है, जैसे वो आदमी नहीं, बुलेट ट्रेन हो!

वो हंसता तो हमेशा है लेकिन अपने पर नहीं, हम पर और पूरे सोलह घंटे हंसता है। बोलता हुए भी हंसता है। चुप रहते समय भी हंसता है। हंसता है मगर वह नफ़रत की नाव का खिवैया है। फिर शक की गुंजाइश बचती कहां है उसके मनुष्य होने में?

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

विष्णु नागर

यूं तो लगता है कि वह मनुष्य है। उसके दो हाथ, दो आंखें ,दो पैर ,एक मुंह ,एक नाक वगैरह है। वह भी पैरों के बल चलता है और हाथों से ही खाता है बल्कि 'सभ्य ' होने के कारण छुरी- चम्मच से डाइनिंग टेबल विराज कर खाता है। रोटी तक कांटे- छुरी से काट कर खाने का अभ्यास उसने कर लिया है। वह खाना खुद उठा कर प्लेट में नहीं रखता, दस लोग उसकी सेवा में लगे होते हैं। फिर किस आधार पर उसे मनुष्य मानने से इनकार किया जा सकता है? तो क्या अंतिम रूप से उसका मनुष्य होना स्वीकार कर लिया जाए?

मैं कह चुका हूं कि दिखता वह मनुष्य जैसा है। फिर वह बोलता भी है और धड़ल्ले से हिन्दी बोलता है। और बोलता है तो फिर बोलता ही चला जाता है। जैसे वह आदमी नहीं, बुलेट ट्रेन हो। अगर किसी बात पर चुप रहना चाहता है तो फिर इतना चुप रहता है, जैसे बेचारा छोटा बच्चा है। बोलना सीखने में अभी उसे वक्त लगेगा। वह कभी- कभी मुस्कुराता भी है। हंसता तो हमेशा है लेकिन अपने पर नहीं, हम पर और पूरे सोलह घंटे हंसता है। बोलता हुए भी हंसता है। चुप रहते समय भी हंसता है। हंसता है मगर वह नफ़रत की नाव का खिवैया है। फिर शक की गुंजाइश बचती कहां है उसके मनुष्य होने में? जानवर तो नफ़रत फैला नहीं सकते! क्या अपने आप में यह पुख्ता सबूत नहीं है, उसके मनुष्य होने का?

मतलब जो भी लक्षण मनुष्य नामक जीव में हो सकते हैं, वे सब उसमें हैं। निश्चित रूप से उसकी पूंछ नहीं है। पूंछ होती तो हम उसे बंदर कह सकते थे। सम्मान से कहना होता तो उसे हनुमानजी कह सकते थे। वह पेड़ पर नहीं रहता। वह घर में रहता है। उसे घर कहना भी उसका और उसकी हैसियत का अपमान करना है, दरअसल वह बंगले में रहता है। बंगला भी कोई साधारण नहीं, बंगलों के राजा में रहता है। यानी उसे आदमी मानें तो भी वह आपके -हमारे जैसा मामूली आदमी नहीं है! फिर हम यह सवाल क्यों उठा रहे हैं कि क्या वह मनुष्य है? क्या किसी का मनुष्य जैसा दिखना, रहना, खाना, बोलना उसका मनुष्य होना नहीं है?

अरे हां वह तो अपने धर्म को भी मानता है, जाति को भी, उपजाति को भी। गोत्र को भी। ऊंच-नीच को भी। इन सबको न लकड़बग्घा मानता है, न शेर, न बंदर, न चींटी। फिर वह कपड़े भी रोज नये -नये पहनता है। कमीज की जगह कमीज, पैंट की जगह पैंट, कुर्ते की जगह कुर्ता और पायजामे की जगह पायजामा। वह जो भी पहनता है, भद्दा और हास्यास्पद हो सकता है पर फिर भी पहनता तो है! और मनुष्य के अलावा हास्यास्पद हो भी कौन सकता है? कपड़े पहन कर इतरा भी कौन सकता है?

एक मत यह आया है कि उसे मनुष्य न भी मानें उसे पुरुष तो मानना ही पड़ेगा। चलिए तो अब संशोधित प्रश्न यह है कि वह पुरुष है मगर मनुष्य नहीं है? क्यों नहीं है? है क्योंकि वह बहुत बड़े पद पर है। अपने मुल्क के बहुत बड़े पद पर। कोई जानवर तो दुनिया में कभी किसी पद पर पहुंच नहीं पाता। क्या हिटलर जानवर था? क्या मुसोलिनी जानवर था? अच्छा जानवर नहीं साहब, संशोधन कर लेता हूं , क्या ये शेर थे? जानवर शब्द हिटलर और मुसोलिनी के लिए सुनकर भी बहुतों की भावनाएं आहत हो सकती हैं, इसलिए मेरा संशोधित प्रस्ताव है- ये शेर थे। और अगर जानवरों की भावनाएं उनकी तुलना हिटलर और मुसोलिनी से करने पर आहत हो रही हों तो उनसे भी माफी। और शेर से तो सबसे पहले माफी।

तो क्या मान लें कि वह इंसान है? क्या बड़ा पद किसी के इंसान होने का और छोटा पद या कोई पद न होना, उसके इंसान न होने का सबूत होता है? तो सवाल वहीं का वहीं धरा है कि क्या वह मनुष्य है? क्या इन आधारों पर आप किसी को मनुष्य मानने को तैयार हैं? आपकी राय सिर माथे पर मगर मेरी असहमति दर्ज कर लीजिए।

ऐसे प्राणी को मनुष्य मानने के बावजूद आप इतने मनुष्य तो रह गए होंगे कि मेरी असहमति को दर्ज कर सकें!

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia