विष्णु नागर का व्यंग्य: हर दिन गहरा दुख व्यक्त करना उनकी जिम्मेदारी, राष्ट्रीय दायित्व!
रोज ही बेचारे गहरे दुख से लथपथ रहते हैं। समस्या यह भी है कि गहरे से कम दुख उन्हें होता नहीं। उन्हें दुख हो मगर गहरा न हो, ऐसा आज तक हुआ नहीं। गहरे दुख की उन्हें लत सी पड़ चुकी है, जो छूटती नहीं।
भयंकर बाढ़ आती है तो उन्हें दुख होता है और ऐसा- वैसा नहीं गहरा दुख होता है। भयंकर सूखा पड़ता है तो उन्हें गहरा दुख होता है। ठंड कड़ाके की पड़ती है, लोग पटापट मरने लगते हैं तो उन्हें गहरा दुख होता है। भूकंप से वाही- तबाही मचती है तो उन्हें गहरा दुख होता है। रेल दुर्घटना में दो सौ मर जाएं तो उन्हें गहरा दुख होता है। हवाई दुर्घटना में तीन सौ मर जाएं तो उसका दुख तो इतना गहरा होता है कि उसे प्रकट करने के लिए उनके पास शब्द कम पड़ जाते हैं। गहरा दुख बयान के बाहर हो जाता है। फलां देश के राष्ट्रपति मर जाते हैं तो गहरा दुख और फलां देश का प्रधानमंत्री मर जाएं तो गहरा दुख। उन्हें अफ़सोस बस इसका है कि जब उनका अंतिम काल आएगा तो वह स्वयं इस पर गहरा दुख व्यक्त कर नहीं पाएंगे। कोई और उनकी मृत्यु पर गहरा दुख प्रकट करेगा, इस पर उन्हें गहरा संदेह है।
रोज ही बेचारे गहरे दुख से लथपथ रहते हैं। समस्या यह भी है कि गहरे से कम दुख उन्हें होता नहीं। उन्हें दुख हो मगर गहरा न हो, ऐसा आज तक हुआ नहीं। गहरे दुख की उन्हें लत सी पड़ चुकी है, जो छूटती नहीं। दिन में एक बार भी अगर इन्हें गहरा दुख प्रकट करने का अवसर न मिले तो वे छटपटाने लगते हैं। उनकी तबियत खराब सी हो जाती है। रात करवट बदलते गुजरती है। रात के ग्यारह बजे तक तो ये वैसे भी इंतजार करते हैं कि कहीं से कोई गहरे दुख का समाचार आए तो गहरा दुख व्यक्त करने के बाद निश्चिंत होकर सोयें मगर ऐसे भी कुछ दुर्भाग्यशाली दिन होते हैं, जब उन्हें इसका सुअवसर नहीं मिलता। इस कारण इनका स्टाफ भी दुखी हो जाता है क्योंकि चार लोगों के स्टाफ की एकमात्र ड्यूटी हर दिन इनके लिए गहरे दुख का इंतजाम करना है। सड़क या रेल दुर्घटना में चार मामूली लोगों के मरने की खबर पर इनकी ओर से गहरे दुख का शोक संदेश भेजने की फाइल तैयार करके भेज दो तो हुजूर बुरी तरह बिगड़ जाते हैं। फाइल लानेवाले के मुंह पर उसे मार देते हैं। एक बार एक पीए को ऐसी सड़ी फाइल तैयार करके भेजने के अपराध में उन्होंने नौकरी से निकाल दिया था। संयोग है कि किसी दिन सुबह होते ही गहरा दुख प्रकट करने योग्य समाचार मिल जाता है, तो किसी दिन दोपहर तक वरना शाम तक तो मिल ही जाता है क्योंकि कोई न कोई ऐसा प्राणी इस दुनिया से चला ही जाता है, जो इनके द्वारा गहरा दुख प्रकट करने की योग्यता प्राप्त है !
एक दिन रात ग्यारह बजे तक भी ऐसा समाचार नहीं मिला तो वह इतने व्यथित हो गए कि उन्होंने हुक्म दिया कि जैसे भी हो, आज रात बारह बजे से पहले मेरे लिए गहरे दुख का प्रबंध किसी भी हालत में किया जाए वरना संबद्ध कर्मचारियों को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। ऐसी विकट स्थिति में एक बड़े नेता जो कई दिनों से आक्सीजन पर थे, उनका आक्सीजन सपोर्ट बंद करवाया गया। एक बार उनकी ही पार्टी के विरोधी गुट के एक मंत्री की इनके गहरे दुख के खातिर सड़क दुघर्टना करवानी पड़ी। रोजी-रोटी के लिए स्टाफ को इस तरह के प्रबंध साल में दो -चार बार करने पड़ते हैं। ऐसी एक घटना प्रायोजित करवाने के बाद एक कमजोर दिल अफसर गहरे अवसाद में चले गए और फिर कभी लौट कर नहीं आए मगर वह इतने बड़े अफसर भी नहीं थे कि उनकी मृत्यु इनके गहरे दुख का कारण बन पाती।
वह जी रहे हैं मगर गहरे दुख से हर दिन पीड़ित हैं। रोज डट के खीर -पूड़ी- मालपुआ उड़ाते हैं मगर किसी दिन गहरा दुख नहीं होता तो खाना -पीना सब व्यर्थ हो जाता है। इतने दुखों को लेकर बेचारे न ठीक से जी पाते हैं, न मर पाते हैं। फिर भी उन्हें जीना पड़ता है क्योंकि हर दिन गहरा दुख व्यक्त करना उनकी जिम्मेदारी है, राष्ट्रीय दायित्व है। वह मर जाएंगे तो यह काम कौन करेगा? कोई इतने योग्य है नहीं! कौन गहरे दुख से दुखी होना जानता है? इस बात की गहरी चिंता उन्हें मरने के बारे में भी सोचने नहीं देती! कैसी ट्रेजेडी है नीच!
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