विष्णु नागर लिखित व्यंग्य : आइए खयाली पुलाव पकाते हैं!
खयाली पुलाव का चक्कर ऐसा है कि ये खुद ही पकाने पड़ते हैं और खुद ही खाने भी पड़ते हैं। कोई और,नौकर-शौकर भी इसे पकाकर आपकी टेबल पर गरम-गरम नहीं पड़ोस सकता।
खयाली पुलाव आपने कभी पकाए हैं? अच्छा, अच्छा ओह, आप तो पक्के मर्द ठहरे मेरी तरह।आपको खाना बनाना नहीं आता, आपको नमक, मिर्च, हल्दी, प्याज, पानी, चावल और बाकी मसाले कितने और कब पड़ते हैं, कितने चावल में कितना पानी डालना होता है, कितनी देर तक धीमी आंच पर पकाना होता है, यह सब नहीं आता। सबकुछ आपकी बीवी जानती है और खाना लाजवाब बनाती है। यही नहीं, आपकी बीवी घर का बाकी सारा काम भी जानती है, झाडू-पोंछा-बर्तन मांजना सब। और सही भी है, वह नहीं जानेगी तो बताइए कौन जानेगा? क्या आप? आपने शादी क्या खुद खाना पकाने के लिए की थी? कतई नहीं की थी साहब। गलती हो गई हमसे, कान पकड़ते हैं। सर जी ऐसी गृहिणी और ऐसे महान पति को शादी की जो भी सालगिरह , जब भी पड़ती हो, एडवांस में मुबारक।
मगर सर जी, खयाली पुलाव का चक्कर ऐसा है कि ये खुद ही पकाने पड़ते हैं और खुद ही खाने भी पड़ते हैं। कोई और,नौकर-शौकर भी इसे पकाकर आपकी टेबल पर गरम-गरम नहीं पड़ोस सकता। अपनी बीवी से तो कभी आप भूल से भी मत कहना कि रानी, तुमने आज तक एक से एक उम्दा पुलाव बनाए हैं, खिलाए हैं मगर कभी खयाली पुलाव नहीं पकाया, जबकि इसका नाम मैंने सबसे ज्यादा सुना है। आज के शुभ दिन वही पका देना न, मेरी प्यारी- दुलारी बीवी। ऐसी बात पर वह शौहर को दो जूते लगाए तो भी कम है, मगर जूते की जगह वह जो भी जवाब देगी, उसकी कीमत जूते खाने से कम न होगी, उसका स्वाद जूते खाने के स्वाद के बराबर होगा।
वैसे भी हमने बचपन में कहीं पढ़ा था- अपना हाथ, जगन्नाथ। तो आओ, पकाओ और खाओ खयाली पुलाव। इसके लिए किचन में जाने की जरूरत नहीं, गैस जलाने, बर्तन- भांडे- तेल- नमक- प्याज वगैरह-वगैरह जुटाने की जरूरत नहीं, सरसों के तेल में पकाएं या मूंगफली के तेल में, इस झंझट में पड़ने की आवश्यकता नहीं। पाक-कला की कोई किताब, कोई टीवी प्रोग्राम बिल्कुल नहीं देखे , कोई लाभ नहीं होगा। अच्छा से अच्छा शेफ भी आपको इस किस्म का बढ़िया पुलाव बनाने की न तो विधि बता सकता है, न बनाकर दे सकता है। और गारंटी है कि पहली ही बार में ही इतने अच्छे, इतने स्वादिष्ट बनते हैं ये पुलाव कि आप उंगलियां चाटते रह जाएं।आप सोचेंगे अपने बारे में, वाह रे पट्ठे, तू इतना बड़ा कलाकार है, शेफ है और तुझे यह बात पता नहीं थी, जिंदगी व्यर्थ जा रही थी।
मेरी सलाह मानिए, खयाली पुलाव लगातार पकाते रहिए, खाते रहिए, तंदरुस्ती का असली राज, खयाली पुलाव।यह टिप कोई नहीं देगा, मेरे सिवाय। देखा, मैं आपका कितना बड़ा हितैषी हूं? हूं न? मैं तो बार- बार, हजार बार पकाकर इन्हें खा चुका हूं, खाली पेट तो खाया ही है, इतना डटकर डकारों पर डकारें ली हैं कि कहना ही क्या! गरीबी तो इसी पुलाव को बनाकर- खाकर गुजारी है, वरना भूखे मर गए होते सड़क किनारे कहीं। भारी से भारी खाना खाकर भी ये पुलाव खा सकते हैं, नो डर, नो बदहजमी । खाइए और खाते जाइए और इस बंदे को जनम भर दुआएं दीजिए।
वैसे हो सकता है आप ये पुलाव बहुत पहले से खाते रहे हों, मेरी इस सलाह से बहुत ही पहले से, लेकिन मुझे इस बात का कतई बुरा नहीं लगा, बल्कि आत्मीयता का बोध हुआ है। आप भी इसकी खूबियां गिनाने में मेरी मदद कीजिए न, प्लीज। लेकिन किसी को मेरे लिखने से प्रेरणा मिली हो, तो फिर इन्हें आज ही और अभी ही बनाइए और डटकर खाइए। जहां हैं, जिस हालत में हैं, वहीं इन्हें बनाइए और वहीं खाइए। टायलेट तो इसे बनाने की सर्वोत्तम जगह है, वहां बनाने और खाने में बिल्कुल मत शरमाइए। तो आइए, मेरे तो बाल अब पक चुके, पेट अब पहले जितना साथ नहीं देता, लेकिन सांस लेने के लिए कुछ खाना-पीना पड़ जाता है, मगर आप आइए, बनाइए, खाइए-पचाइए। अपनी पाचन शक्ति बढ़ाइए। हाजमे की गोलियों से छुटकारा पाइए।
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Published: 30 Sep 2017, 3:17 PM