विष्णु नागर का व्यंग्य: अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर आदमी, टके सेर घृणा
यह अँधेर नगरी है। इसमें निरपराध फँसाये जाते हैं, अपराधी छोड़े जाते हैं। थके हुए, बिके हुए बूढ़े राज करते हैं, तेजस्वी युवा जेलों में सड़ते हैं। इसमें राजा बिकता है। यह अँधेर नगरी है,चौपट राजा है। यहाँ टके सेर आदमी है, टके सेर घृणा है।
मोदी जी ने दीपावली का ' तोहफा ' दिया है- पेट्रोल -डीजल के भाव में छूट दी है। राजा जी ने जनता पर किरपा बरसाई है। बहुत धन्यवाद मोदी जी। मजबूरी में यह ' तोहफा ' देना पड़ा है आपको, पर छोड़ो इसे। अभी तो और भी मजबूरियाँ सामने आएँगी और भी घुटने टिकवाएँगी। चलो छोड़ो इसे भी अभी। मोदी जी हैं राजा आदमी। प्रधानमंत्री तो पद है उनका मगर असल में हैं वह राजा। अँधेर नगरी चौपट राजा। राजा चौपट है मगर अँधेर नगरी का राजा है! राजा किसी को उसका हक नहीं देते, ' तोहफा ' देते हैं। तो हमारे राजा जी भी प्रजा को 'तोहफा' देते रहते हैं। फिर इसका गाना फटे बाँस के सुर में खुद गाते हैं और गवाते भी हैं, ढोल मंजीरे बजाते भी हैं, बजवाते भी हैं। दे दिया, दे दिया, मैंने दे दिया। हमारे दयालु राजा जी ने दे दिया। दानी कर्ण ने दे दिया। सुनो -सुनो परजा, तुम्हें राजा ने देखो, क्या दिया है। अरे वाह,तोहफा दिया है।
हमारा निवेदन बस इतना है राजा जी कि जो भी देना हो, अपने लाड़लों-अडानी-अंबानी को ही दे दिया करो। राजा जी आपको मालूम न हो तो बता दें हमारे पास 'तोहफे' रखने की जगह बिल्कुल नहीं है। छोटे- छोटे घर हैं हमारे। ज्यादातर किराए के हैं। इतने छोटे हैं कि परिवार के चार सदस्य ही मुश्किल से अँट पाते हैं। हममें से बहुतों के तो झोपड़े हैं, जो किसी भी दिन, किसी भी घंटे, बगैर नोटिस देकर आपकी आज्ञा से तोड़ दिये जाते हैं। ऊपर से आपने तोहफे भी हमें बहुतेरे दे रखे हैं। हिन्दू- मुसलिम का जो तोहफा आपने हमें दिया है, वही इतना बड़ा और इतना भारी है कि हमसे वह नहीं उठाया जाता। कमर तो कमर पैर तक जवाब दे चुके हैं। जान छोटी सी है, ये भी इस 'तोहफे' के बोझ तले कब चली जाएगी,भरोसा नहीं।
हम फिर से कह रहे हैं, आप तो जी, जो भी देना हो, अडानी-अंबानी को ही दे दिया करो। वे आपके अपने हैं। उनके महल बड़े -बड़े हैं, उनके भंडार उससे भी हजार गुना बड़े हैं और उनके पेट? उनके पेट तो, उनके भंडारों से भी हजार गुना बड़े हैं। उन्हें दो। पूरा देश टुकड़े-टुकड़े में तो उन्हें दे ही रहे हो, पूरा भी एकसाथ दे दोगे तो वे खुशी खुशी ले लेंगे। काफी कुछ दे चुके हो, बाकी भी दे ही डालो अब, ताकि कोई मलाल न रहे कि हाय, मैंने अपने राज में इन्हें दिया मगर कितना कम दिया! यह व्यथा आपसे झेली न जाएगी।
वैसे आपने अपनी सरकार तो इन्हें तोहफे में दे ही रखी है।अब तो पता ही नहीं चलता कि इनकी सरकार है या आपकी? वैसे हम यह कैसे भूलें कि आप भी उन्हीं का हमें दिया हुआ एक तोहफा हो। आप जैसा तोहफा हमें मिल चुका हो, तो फिर किसी 'तोहफे' की चाहत नहीं रह जाती। आदमी ही मिट जाता है तो फिर चाहतों का क्या ?
वैसे आप हमसे चार गुना टैक्स लेकर 1/10 वापिस हम पर खर्च कर देते हो तो उसे तोहफा कहा जाता है। और अडानी-अंबानी को आप हजारों करोड़ देते रहते हो, उसे भी तो कभी तोहफा कहकर देखो? और अगर वह तोहफा नहीं है तो फिर क्या है, आपके और उनके बीच की कोई बिजनेस डील है ?आप कहोगे, अजी वह तो विकास है। उनको औने-पौने में सरकारी संपत्ति दे देना, लुटा देना विकास है,और हमारी जेब से कभी पेट्रोल-डीजल, कभी रसोई गैस, कभी प्लेटफार्म टिकट, कभी रेलवे टिकट, कभी वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली छूट खत्म कर,कभी बैंक ब्याज दर घटाकर छीनते रहते हो सरेआम, हमें महंगाई के गहरे दलदल में फँसाते रहते हो, वह क्या है? वह हमसे छीनकर आपकी सरकार द्वारा लिया गया तोहफा ही तो है? कभी सूझा आपको कि अर्थव्यवस्था के दलदल में गले गले तक डूबी जनता की बजाय इन पूँजीपति लाड़लों पर टैक्स बढ़ा दें?
नहीं राजाजी ऐसी बात आपको क्यों कर सूझेगी? ये सहनशील जनता है न, टैक्स का बोझ सहने के लिए? उसके पास खाने के लिए दाल-रोटी है तो उसकी दाल छीन लो। प्याज रोटी खाए तो प्याज छीन लो। चटनी रोटी खाए तो चटनी छीन लो। नमक रोटी खाए तो पहले एक, फिर दूसरी रोटी छीन लो। दो सूखी रोटी रह जाने दो ताकि आठ से बारह घंटे तुम्हारे-हमारे लिए खट सके।
और उधर इन्हें हवाई अड्डे पर हवाई अड्डे तोहफे में पचास साल के लिए देते जाओ। कांट्रेक्ट खेती करवा कर खेती में इनकी घुसपैठ करवाते जाओ। इनको बड़े बड़े गोदामों में अकूत अनाज जमा करने की छूट देते जाओ। यह तोहफा नहीं है। इसके लिए आपने उनसे कभी 'धन्यवाद मोदी जी' कहलवाया? नहीं,कभी नहीं। कभी कहलवा भी नहीं पाओगे क्योंकि यह अँधेर नगरी है। इसमें निरपराध फँसाये जाते हैं, अपराधी छोड़े जाते हैं। थके हुए, बिके हुए बूढ़े राज करते हैं, तेजस्वी युवा जेलों में सड़ते हैं। इसमें राजा बिकता है। यह अँधेर नगरी है,चौपट राजा है। यहाँ टके सेर आदमी है, टके सेर घृणा है।
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